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| जन-मंगल धर्म के चार चरण
६१३ ।
तम्बाकू एक : रूप अनेक
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-उपाध्याय श्री पुष्कर मुनि जी म. मिर्जा गालिब उर्दू-फारसी के प्रसिद्ध कवि थे। उन्हें तम्बाकू- । तम्बाकू के घातक तत्वसेवन, धूम्रपान बड़ा प्रिय था। एक बार वे अपने एक मित्र के साथ
तम्बाकू-सेवन और धूम्रपान अनेक रोगों का जनक है। कतिपय तम्बाकू के खेत में खड़े थे। पास ही कुछ गधे भी चुप-चाप खड़े थे।
रोग तो सर्वथा असाध्य एवं मारक भी होते हैं, अन्य भी घोर उनकी ओर संकेत करते हुए मित्र ने कहा-"मिर्जा, देखो-गधे भी
पीड़ा-दायक होते हैं। धूम्रपान चाहे कितना ही आनन्दप्रद क्यों न तम्बाकू नहीं खाते" [तम्बाकू की खेती बड़ी सुरक्षित रहती है, उसे
प्रतीत होता हो, अन्ततः तो वह नारकीय यातनाओं का ही कारण कोई पशु नहीं चरते]। गालिब ने मित्र के व्यंग्य को समझते हुए बनता है। जर्दा अनेक घातक तत्वों से युक्त होता है उसी के ये मुस्करा कर उत्तर दिया-हाँ भाई, गधे ही नहीं खाते।"
मारक और त्रासद परिणाम होते हैं। ____ मिर्जा गालिब ने उक्त कथन कदाचित् विनोदपूर्वक किया था,
सिगरेट के धुएँ में लगभग ४000 तत्वों की खोज हुई है। किन्तु आज प्रतीत होता है, मानो नये युग की नयी पीढ़ी ने तो इस इनमें से निकोटीन नामक तत्व अत्यन्त प्रचण्ड रूप से हानिकारक कथन को जैसे अपना जीवन मंत्र ही बना लिया है। इनकी मान्यता होता है। इसकी विषाक्तता और घातकता का अनुमान इस तथ्य से में धूम्रपान सभ्यता का प्रतिमान है। जो सिगरेट नहीं पीता वह लगाया जा सकता है कि अनेक कीटनाशक रसायनों और दवाओं असभ्य, वन्य और पिछड़ा हुआ माना जाता है। सभ्य सोसायटी की, में निकोटीन का उपयोग किया जाता है। निरन्तर और प्रचुर मात्रा शान और वैभव की यही अभिव्यक्ति रह गयी है। आश्चर्य है जिस में जब निकोटीन शरीर में प्रवेश करता है तो इससे हृदय की पीढ़ी से समाज और देश प्रगति के प्रकाश की प्रतीक्षा करता है। धमनियों में जमाव होने लगता है, धमनियाँ सँकरी होने लगती हैं वही धुएँ के अंधियारे गुबार में घिरा हुआ है। भारत ही नहीं सारे । और रक्त प्रवाह अवरुद्ध हो जाता है। दुष्परिणाम स्वरूप हृदय रोग विश्व की स्थिति यही बनी हुई है। न केवल पुरुष, अपितु स्त्रियाँ | हो जाता है। आँतों में अल्सर भी हो सकता है और धूम्रपान से भी, कम आयु के बालक-बालिकाएँ भी इस अभिशाप से ग्रस्त हैं। कार्बन मोनोक्साइड नामक अन्य तत्व रक्त में मिश्रित होकर एक ग्रामीण क्षेत्रों में और नगरों में, शिक्षितों में और अशिक्षितों में, ऐसी प्रतिक्रिया देता है जिससे शरीर की रोग-निरोधक क्षमता कम धनाढ्यों और निर्धनों में सभी ओर इस व्यसन को सर्वथा हो जाती है। धूम्र से निकले अनेक तत्व कैंसर (विशेषतः गले, विकसित रूप में देखा जा सकता है। भारत में कम से कम दस । फेफड़े के) को जन्म देते हैं। कुछ तत्व रक्त में मिलकर गुर्दे, करोड़ पुरुष और ५ करोड़ महिलाएँ इस अभिशाप के काले साये | मूत्राशय और पाचन थैली का कैंसर विकसित कर देते हैं। विज्ञान से घिरी हुई हैं। भारत में कुल जितने धूम्रपान करने वाले हैं, उनमें वेत्ताओं का मत है कि निकोटीन और कार्बन मोनोक्साइड के से ५६% ग्रामीण क्षेत्रों में और ३४% शहरी क्षेत्र में हैं। २५% अतिरिक्त भी २२ अन्य प्रकार के विष तम्बाकू में रहते हैं; यथा महिलाएँ और ७५% पुरुष हैं। भारत में लगभग १० लाख लोग मार्श (नपुंसकता का कारण), अमोनिया (पाचन शक्ति का क्षय), प्रतिवर्ष तम्बाकू सेवन और धूम्रपान के कारण अकाल मृत्यु को कार्बोलिक एसिड (अनिद्रा, स्मरण शक्ति का क्षय, चिड़चिड़ापन), प्राप्त हो जाते हैं। अमरीका और चीन के पश्चात् भारत विश्व का परफेरोल विष (दन्त क्षय), एजालिन विष (रक्त विकार) सबसे बड़ा तम्बाकू उत्पादक देश माना जाता है। स्वाभाविक है कि आदि-आदि। भारत में इसके उपभोक्ताओं की संख्या भी अधिक हो। यह और भी
इन विषैले पदार्थों और तत्वों की मारक शक्ति का अनुमान इस अधिक दुर्भाग्यपूर्ण है कि किशोरावस्था से ही यह कुटेव जड़
तथ्य से लगाया जा सकता है कि यदि एक सिगरेट का सारा का पकड़ने लगी है। एक अध्ययन से पता चलता है कि गोवा में १८%
सारा धुआँ शरीर में रह जाय तो वह मृत्यु के लिए पर्याप्त होता है। स्कूली बच्चे धूम्रपान करते हैं। बीस वर्ष से अधिक आयु के ऐसे
एक सिगरेट का उपभोग १४ मिनट आयु कम कर देता है। युवक ५०-६४% और युवतियाँ १४-२३% है। कहा जाता है कि सद्गुणों को समाज में फैलाने के लिए बहुत श्रम करना होता है,
| तम्बाकू सेवन-भयावह संहारककिन्तु दुर्गुणों का प्रचार-प्रसार स्वतः ही हो जाता है। उन्हें तम्बाकू अपनी विषैली तात्विक संरचना के कारण विशेष रूप जनसामान्य का अपनाव भी बड़ी गहराई के साथ मिलता है। से इस शताब्दी का भयावह और प्रचण्ड संहारक हो गयी है। तम्बाकू-सेवन और धूम्रपान का साथ भी ऐसा ही है। “गली-गली अनेक-अनेक रोगों और पीड़ाओं का आश्रय एक धूम्रपान ही नाना गोरस फिरै, मदिरा बैठि बिकाय।"
विध नरक का स्रष्टा हो गया है। मानव जाति वर्तमान शताब्दी में
अनेक रोगों की शिकार हुई है जिसके अनेकानेक कारण हैं और १. इण्डियन कौंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च का सर्वेक्षण
उन कारणों में तम्बाकू-सेवन का बहुत ही महत्वपूर्ण स्थान है।
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