Book Title: Pushkarmuni Smruti Granth
Author(s): Devendramuni, Dineshmuni
Publisher: Tarak Guru Jain Granthalay

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Page 747
________________ 00%A8000000 SODDDOODSDes do । जन-मंगल धर्म के चार चरण ६११ 190 १४४, मैथी १५६.५, मसूर की दाल १७० किलौरी ऊर्जा देती है। स्पष्ट है कि नमक की यह राशि सारी की सारी अतिरिक्त मूंगफली द्वारा प्राप्त ऊर्जा तो अण्डे की अपेक्षा लगभग चार गुनी होती है। नमक के उपयोग की जो साधारण मात्रा होती है वह तो होती है। ५० ग्राम मूंगफली २३० किलौरी ऊर्जा की स्रोत बन ज्यों की त्यों ही बनी रहती है। अण्डे के श्वेतांश में नमक रहता है जाती है। और उसके पीतांश में कोलेस्टेरोल। अर्थात् उसका कोई भी भाग निरापद नहीं। अण्डा सारा का सारा ही हानिकारक और रोगजनक तात्विक दृष्टि से असंतुलित होता है। केलशियम की कमी के कारण अण्डा दाँतों की रक्षा और पूर्ववर्णित कतिपय तथ्यों से भी यही ध्यातव्य बिन्दु उभरता है । अस्थियों की सुदृढ़ता में भी सहायक नहीं हो पाता। अण्डे में एक कि अण्डे की संरचना में विभिन्न अनिवार्य तत्व संतुलित रूप में विशेष प्रकार का बैक्टेरिया३ भी होता है जो जान लेवा सिद्ध नहीं मिलते। कार्बोहाइड्रेट्स और केलशियम तो इसमें है ही नहीं, हुआ है। ब्रिटेन में लगभग ६-७ वर्षों पूर्व इस बैक्टेरिया के कारण इसमें लोहा, आयोडीन और विटामिन-ए की भी कमी होती है। इस } कोई डेढ़ हजार लोगों को अपने प्राणों से हाथ धोना पड़ा था। असंतुलन के कारण अण्डा मानव शरीर के संतुलित विकास में करोड़ों अण्डों और लाखों मुर्गियों को वहाँ उस समय नष्ट कर तनिक भी सहायक नहीं हो पाता। चिकित्सा विशेषज्ञों की तो यह दिया गया था। मान्यता भी है कि इस स्वरूप के कारण अण्डा-सेवन आंतों में सड़ान उत्पन्न कर सकती है। चिकित्सकीय विज्ञान में इस सड़ान को अण्डे के विषय में यह समस्या भी रहती है कि वह प्रयोग के "प्यूटीफेक्शन" कहा जाता है। पूर्व कहीं विकृत और दूषित होकर हानिकारक तो नहीं हो गया है-इसका आभास भी नहीं हो पाता। इसका पता भी नहीं चलता कोलेस्टेरोल-घातक तत्व का कोष कि अण्डा कितना पुराना है। अण्डों को शीतलता के साथ सुरक्षित कोलेस्टेरोल कलियुग का काल कूट बन गया है। चर्बी बसा रखने की व्यापक व्यवस्था भी संभव नहीं हो पाती। ४०° सेल्सियस युक्त पदार्थों में इस मारक तत्व की उपस्थिति रहती है। शरीर में तापमान पर ही अण्डा विकृत होने लग जाता है। यही नहीं उसके कोलेस्टेरोल का आधिक्य जीवन के लिए भयंकर संकट का ऊपर के श्वेत आवरण (खोल) में से होकर उसकी तरलता माप कारण बन जाता है। यह संकट "हाथ पर कोलेस्टेरोलियम" बनकर बाहर निकलने लग जाती है और बाहर से अनेक प्रकार के नामक असामान्य स्थिति के रूप में जाना जाता है। त्वचा के रोगाणु भीतर प्रविष्ट होकर उसे सड़ा देते हैं। कहा जाता है कि आन्तरिक भागों में, नसों में यह तत्व जम जाता है और नसों को अण्डे के खोल में पन्द्रह हजार से अधिक रन्ध्र होते हैं जो संकरा कर देता है। परिणामतः रक्त-प्रवाह बाधित हो जाता है। इसी । रोगाणुओं के लिए द्वार का काम देते हैं। ऐसे दूषित अण्डों का कारण हृदयरोग और रक्त चाप जैसे घातक रोग हो जाते हैं। सेवन निश्चित रूप से अनेक रोगों का कारण बन जाता है। अण्डा अपस्मार या लकवा जैसा दयनीय रोग भी इसका स्वाभाविक सेवन करने वालों के लिए आंतों का केंसर एक सामान्य रोग है। परिणाम होता है। कोलेस्टेरोल की पर्याप्त मात्रा अण्डों में विद्यमान । हृदय रोग का तो जैसा कि वर्णित किया गया है यह एक प्रबल रहती है। माना जाता है कि एक सौ ग्राम अण्डे में ५०० मिलिग्राम कारण है। एक सर्वेक्षण के आधार पर केलिफोर्निया के एक कोलेस्टेरोल होता है जो अपने मारक धर्म को देखते हुए बहुत विश्वविद्यालय ने यह निष्कर्ष निकाला है कि शाकाहारी हृदयरोगियों अधिक है। आज के विश्व के सम्मुख यह कोलेस्टेरोल भयावह की अपेक्षा अण्डाहारी हृदयरोगियों में मृतकों की संख्या १० अभिशाप बनकर खड़ा है। जिन्हें हृदयरोग और रक्तचाप की दारुण प्रतिशत अधिक रहती है। इस निष्कर्ष का आधार २४ हजार हृदय छाया घेरे हुए हैं, उन्हें तो अण्डा आहार की कल्पना भी नहीं रोगियों का अध्ययन रहा है। करनी चाहिए यह तो कगार पर खड़े व्यक्ति के लिए अंतिम धक्के का काम करेगा जिससे इहलीला का पटाक्षेप सर्वनिश्चित रूप अब वैज्ञानिकों-चिकित्सा शास्त्रियों की तो ये स्वीकारोक्तियां । में हो जाएगा। होने लगी हैं कि अण्डा खाद्य पदार्थ ही नहीं है, इसमें पोषण की क्षमता नहीं है। वे यह भी मानने लगे हैं कि इस अप्राकृतिक खाद्य अण्डा कारण है रोगों और हानियों का से नानाविध संकट और रोग उत्पन्न होते हैं। सुखी और स्वस्थ अण्डे की जो रासायनिक संरचना है-उसके अनुसार उसमें जीवन के लिए इस त्याज्य मानना ही हितकर ह। अब समय आ नमक (सोडियम) की प्रचुर मात्रा होती है। इस प्रचुरता का । गया है जब जन सामान्य को भी अण्डे की वास्तविकताओं को अनुमान इस प्रकार लगाया जा सकता है कि मात्र एक अण्डे का । पहचान लेना चाहिए और आत्मरक्षा के लिए चिन्ता करनी चाहिए। सेवन आधे चम्मच नमक का प्रवेश हमारे शरीर में कर देता है। अण्डा गुणहीन ही नहीं दुर्गुणों की खान भी है। यह जितना शुभ्र नमक का ऐसा आधिक्य शरीर में अनेक प्रकार के उपद्रव मचा और धवल दिखायी देता है-इसकी करतूत उतनी ही काली है। देता है। विशेषता यह है कि यह नमक रहता भी अदृश्यमान है।। दुष्प्रचार के भ्रष्ट तंत्रों से सावधानी बरतते हुए आज के आम SIDD Pat90204000%

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