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उपाध्याय श्री पुष्कर मुनि स्मृति-ग्रन्थ । उपर्युक्त को ध्यान रखते हुए क्रियाएँ, आचरण या व्यवहार कोई रोग या विकार उसे पीड़ित नहीं कर सकता। वही संयम जब
करना विहार कहलाता है। इसके लिए आयुर्वेद में दिनचर्या, बिगड़ जाता है तो उसका प्रभाव शरीर में स्थित दोषों पर पड़ता 8000 निशाचर्या और ऋतु चर्या का निर्देश किया गया है और यह कहा जिससे उनमें विषमता उत्पन्न हो जाती है और फिर रोग उत्पन्न होने 50566 TOS गया है कि इन चर्याओं का नियमानुसार आचरण करने वाला की प्रक्रिया प्रारम्भ हो जाती है। 30909 व्यक्ति स्वस्थ रहता है और जो उनके अनुसार आचरण नहीं करता
मनुष्य के आहार-विहार के अन्तर्गत आयुर्वेद में तीन उपस्तम्भ है वह अस्वस्थ या रोगी हो जाता है। निम्न आर्ष वचन द्वारा
बतलाए गए हैं-आहार, निद्रा और ब्रह्मचर्य। ये तीनों ही सुदृढ़ 600 उपर्युक्त कथन की पुष्टि होती है
स्वास्थ्य के आधार माने गए हैं। सम्पूर्ण आहार विहार इन तीन दिनचर्या निशाचर्या ऋतुचर्या यथोदिताम्। उपस्तम्भों में ही समाविष्ट है। यही कारण है कि प्राचीन काल में आचरन् पुरुषः स्वस्थः सदा तिष्ठति नान्यथा॥
इनके पालन-आचरण पर विशेष जोर दिया जाता रहा है।
स्वविवेकानुसार यदि इनका पालन एवं आचरण किया जाता है तो प्रातःकाल उठकर नित्य क्रियाएँ करना, शौच आदि से निवृत्त
मनुष्य आजीवन स्वस्थ तो रहता ही है, वह दीर्घायुष्य भी प्राप्त होकर आवश्यकता एवं क्षमता के अनुसार अभ्यंग, व्यायाम आदि
करता है। करना, तदुपरान्त स्नान करना, समयानुसार वस्त्रा धारण करना, देव दर्शन करना, स्वाध्याय करना, ऋतु के अनुसार आहार लेना, पता: अन्य दैनिक कार्य करना, सायंकालीन आहार लेना, विश्राम करना, सुशीला देवी जैन, रात्रि के प्रथम प्रहर में अध्ययन-स्वाध्याय करना आदि, तत्पश्चात् आरोग्य सेवा सदन, शयन करना-यह सब विहार के अन्तर्गत समाविष्ट है। मनुष्य यदि सी. सी./११२ए, शालीमार बाग, अपने आचरण को देश, काल, ऋतु के अनुसार संयमित रखता है तो दिल्ली-११००५२
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माँसाहार के कारण किस तरह हमारी खनिज संपदा उजड़ रही है इसे मात्र इस तथ्य से जाना जा सकता है कि यदि मनुष्य माँस केन्द्रित आहार छोड़ दे तो जो पेट्रोल भण्डार उसे प्राप्त है वह २६० वर्षों तक चल सकता है; किन्तु यदि उसने ऐसा नहीं किया तो यह भण्डार सिर्फ १३ वर्ष चलेगा (रिएलिटीज १९८९)। वस्तुतः हम पेट्रोल का दोहन तो बेतहाशा कर रहे हैं; किन्तु फॉसिल-ऊर्जा के रूप में वनों द्वारा उसे धरती को वापिस नहीं कर रहे हैं।
-डॉ. नेमीचन्द जैन (शाकाहार मानव-सभ्यता की सुबह : पेज ८१ से)
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