Book Title: Pushkarmuni Smruti Granth
Author(s): Devendramuni, Dineshmuni
Publisher: Tarak Guru Jain Granthalay

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Page 734
________________ 330000000000 100000000 000000000 1590002 3 उपाध्याय श्री पुष्कर मुनि स्मृति-ग्रन्थ । अधिकांशतः देखा गया है कि मांसाहारी व्यक्ति के लिए नहीं खाली। उसके द्वारा जो कुछ शरीर को मिलता है उसमें अल्कोहल जैसी मादक वस्तुओं का सेवन अनिवार्य होता है। क्योंकि विजातीय तत्वों का बाहुल्य रहता है, जिसके कारण रोग निरोधक जो मांस खाया जाता है उसे पचाने के लिए या तो अधिक मात्रा में । क्षमता में कमी हो जाती है। यह पाया गया है कि जो लोग विभिन्न नमक का सेवन किया जाय या फिर अल्कोहल का सेवन किया । रोगों से ग्रसित होते हैं उनमें शाकाहारियों की अपेक्षा मांसाहारियों जाए। अल्कोहल का सेवन यद्यपि मांस पचाने में सहायक होता है, की संख्या अधिक होती है। किन्तु दूसरी ओर वृक्कों (गुर्दे) की क्रिया को प्रभावित कर उनमें वैसे १९वीं सदी के अन्त तक स्वास्थ्य शास्त्रियों की यह विकृति उत्पन्न करता है। अल्कोहल के रूप में प्रयुक्त मदिरा का धारणा जबर्दस्त रूप से रही है कि अच्छे स्वास्थ्य के लिए मांस का सीधा प्रभाव यकृत फुफ्फुसों पर पड़ता है। परिणामतः उनमें विकृति सेवन अत्यन्त आवश्यक है। यही कारण है कि बीसवीं शताब्दी के उत्पन्न होन का सम्भावना बढ़ जाता ह। साथ हा रक्तचाप बढ़ जाता। प्रारम्भ से मांसाहार को प्रोत्साहन मिला। इस धारणा के विरुद्ध है जो अन्ततः हृदय और उसकी क्रियाओं को प्रभावित किए बिना । बीसवीं शताब्दी में इटली के आहार विशेषज्ञों ने मनुष्य के आहार नहीं रहता। से मांस का बहिष्कार करने की सलाह दी। इसी सन्दर्भ में जोहंस D मांसाहार का समर्थन करने वाले कुछ आहार शास्त्रियों का यह हापकिंग्स इंस्टीट्यूट के प्रो. ई. वी. मैक्कालम ने कहा कि यदि मानना है कि मांस का सूप मनुष्य के लिए शक्ति का स्रोत होता है। मांसाहारी मांस खाना छोड़ दें तो कुछ समय में उनका स्वास्थ्य किन्तु दूसरी ओर वे इस तथ्य को नजर अन्दाज कर जाते हैं कि अधिक अच्छा हो जायगा। इसी प्रकार पश्चिम जर्मनी के हैजेजवर्ग इसमें विषैले तत्वों की भी भरमार होती है जो मनुष्यों के शरीर में । स्थित कैंसर अनुसंधान केन्द्र में किए गए अध्ययन से प्राप्त निष्कर्ष स्वतः निर्मित रोग प्रतिरोध क्षमता (इम्युनिटी) को कम करती है।। के आधार पर बतलाया गया है कि शाकाहारी व्यक्तियों की तुलना यह पाया गया है कि शारीरिक सहन शक्ति एवं रोगों का प्रतिरोध में मांस का भोजन करने वाले व्यक्तियों को दिल के दौरे तथा रक्त करने की शक्ति मांसाहारियों की अपेक्षा शाकाहारियों में अधिक परिभ्रमण सम्बन्धी घातक रोग अपेक्षाकृत अधिक होते हैं। संस्थान होती है। वैसे भी सामान्यतः मांस में ऐसा कोई विशेष तत्व नहीं ने अपने अध्ययन में यह भी पाया है कि शाक-सब्जी खाने वाले होता है जो शाकाहार में नहीं पाया जाता हो। कुछ परीक्षणों से यह रोगों को कैंसर होने का खतरा कम होता है। भी पुष्टि हुई है कि लगातार मांस का सेवन करने वाले व्यक्तियों के उक्त संस्थान में लगातार पाँच वर्ष तक लगभग दो हजार पेट में अपचित मांस के रह जाने से पेट में सड़न पैदा होती है जो शाकाहारियों पर परीक्षण किए गए। शोथकर्ताओं ने पाया कि एक Facead अनेक उदर विकारों एवं रोगों को जन्म देती है। तिहाई भाग की मृत्युदर में कमी हुई। जो शाकाहारी व्यक्ति अपने इस सम्बन्ध में डॉ. जे. एच. कैलाग द्वारा मांसाहार के विषय दैनिक भोजन में नियमित रूप से दूध, मक्खन और पनीर आदि R में की गई खोज और उसके परिणाम स्वरूप निकाला गया निष्कर्ष । साथ लेते हैं तो उन्हें अन्य पदार्थों की आवश्यकता नहीं रहती है। महत्वपूर्ण है कि मांस के प्रति मनुष्य की रुचि अति सामान्य उनका भोजन पूर्ण होता है और उन्हें कुपोषण की समस्या का (नार्मल) होती है और मांस खाने से उच्च रक्तचाप, वृक्क सम्बन्धी सामना नहीं करना पड़ता है। इस प्रकार परीक्षणों, शोधों एवं तथ्यों रोग, आन्त्रपुच्छ शोध (अपेण्डिसाइटित), कैंसर, पेट के जख्म, से स्पष्ट है कि मांस की अपेक्षा शाकाहारी भोजन अधिक अच्छा, आंत्रशोध, पित्ताशय की पथरी, कुष्ठ रोग आदि उत्पन्न होने की । पौष्टिक, विटामिनों से भरपूर तथा हानिरहित है। प्रबल सम्भावना रहती है। आहार सेवन क्रम में विशेषज्ञों ने लोगों को पोषण सम्बन्धी विभिन्न वैज्ञानिक खोजों ने तथा आधुनिक चिकित्सा विज्ञान ने कुछ परामर्श भी दिए हैं। उन्होंने लोगों से आग्रह किया है कि इस तथ्य की पुष्टि की है कि मांसाहारी मनुष्य की अपेक्षा यथासंभव खाद्य पदार्थों को प्राकृतिक रूप में ही प्रयोग करें। घर शाकाहारी मनुष्य हृदय विकृति, गुर्दे की बीमारी, विभिन्न चर्मरोगों, फैक्टरी आदि में भोजन को विभिन्न साधनों से प्रोसेस करने का दांतों की बीमारियों तथा अन्य अनेक रोगों विशेषतः उदर रोगों से अर्थ है भोजन की पोषण शक्ति घटाना तथा भोजन में हानिकारक बचे रहते हैं। पदार्थों का समावेश करना। उनके अनुसार भोजन में सामान्य और 8 नोबेल पुरस्कार प्राप्तकर्ता डॉ. माइफल ब्राउन ने मांसाहार के आसानी से उपलब्धता वाले खाद्य पदार्थों का ही प्रयोग करना सभी वर्गों का विश्लेषण किया है। उनका कथन है कि अण्डा चाहिए। मंहगे आहार या भोजन से अधिक पोषण की अपेक्षा नहीं कोलेस्ट्रोल रसायन उत्पन्न करता है जिससे रक्तचाप और हृदय रोग रखना चाहिए। उत्पन्न होने की संभावना बढ़ती है और कई प्रकार के रक्त विकार स्वास्थ्य विशेषज्ञों के अनुसार भोजन का पर्याप्त प्रभाव मनुष्य उठ खड़े होते हैं। मांस के बारे में उनका कथन है कि इसे खाने के मनोभावों और मानसिक क्रियाओं पर भी पड़ता है। इस बात के वाले अपने पेट की स्वस्थता गंवा बैठते हैं और मानसिक संतुलन प्रमाण पाए गए हैं कि निरामिष भोजन करने वाले व्यक्ति की दृष्टि से भी घाटे में रहते हैं। मछली की संरचना भी तालमेल अपेक्षाकृत शांत, सरल और मधुर स्वभाव के होते हैं, जबकि 0. 00 00:00A DDO त RITEORROR GOODD Pos0.0000002 POSdgadgedge EDDEDoDHAD

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