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। जन-मंगल धर्म के चार चरण
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दो-ढाई हजार तक आबादी होती है, वहाँ महानगरों की जनसंख्या अधिक ध्वनि उत्पन्न करते हैं कि वे किसी भी स्वस्थ व्यक्ति के करोड़ों तक पहुँच रही है। इन महानगरों में एक स्थान से दूसरे कानों को बहरा कर देने के लिए पर्याप्त हैं। विगत २५-३० वर्षों स्थान की दूरी भी बहुधा ५०-६० कि. मी. तक पहुँचने लगी है। से आकाशवाणी और दूरदर्शन का प्रसार होने के बाद कुछ श्रोता सेवा-संस्थानों तथा औद्योगिक इकाइयों में कार्यरत व्यक्तियों को उनका प्रयोग इस प्रकार तीव्रतम ध्वनि (Full Volume) के साथ लम्बी दूरी तय करने के लिए स्कूटर, कार, बस आदि वाहनों की करते हैं कि पास-पड़ोस के कम से कम चार-पांच घरों में शान्त आवश्यकता आ पड़ी है। इन महानगरों में वानस्पतिक (पेड़-पौधों बैठकर एकाग्रतापूर्वक कोई किसी कार्य को सम्पन्न करना चाहे, तो वाले) वनों के स्थान पर कंकरीट के जंगल (ऊँची-ऊँची।
वह सम्भव नहीं है। होली आदि पर्व, विवाहादि पारिवारिक उत्सव अट्टालिकाएँ) तैयार होने लगे हैं जिनमें मनुष्य घोंसलों में पक्षी की
अथवा रामायण, कीर्तन, देवीजागरण आदि धार्मिक उत्सवों पर तरह रहने को विवश हो रहा है। फलतः ग्रामों की तुलना में नगरों
ध्वनिविस्तारक यन्त्रों का इस बहुतायत के साथ प्रयोग होने लगा है। में वायवीय पर्यावरण प्रदूषण अत्यधिक मात्रा में होता है।
कि उसकी तीव्रता को न सह पाने के कारण अनेक लोगों की कभी-कभी तो इस प्रदूषण की मात्रा इतनी अधिक हो जाती है कि
श्रवण और स्मरण शक्ति भी क्षीण हो गयी है। इससे भी भयंकर वह पर्यावरण मनुष्य के रहने योग्य नहीं रह जाता।
स्थिति दिवाली, दशहरा, नववर्ष आदि पर्यों पर प्रयोग होने वाले आजीविका की खोज में निरन्तर ग्रामों से शहरों की ओर आने । पटाखों और आतिशबाजी से होती है, जिसके फलस्वरूप प्रायः सभी वाली गरीब जनता के आवासीय क्षेत्र में, जिन्हें झुग्गी-झोपड़ी या जन (विशेषतः बच्चे और रोगी) बार-बार चौंक उठते हैं, विश्राम झोपड़-पट्टी के नाम से जाना जाता है, जल-मल व्यवस्था न होने (निद्रा) नहीं ले पाते। अध्ययनशील विद्यार्थी और साधनारत तपस्वी
और आवासियों की अधिकता होने के कारण जो प्रदूषण होता है, तो ऐसे दिनों में आवासीय क्षेत्र का त्याग करके बाहर (अन्यत्र) सामान्य व्यक्ति उसकी कल्पना भी नहीं कर सकता। दिल्ली, बम्बई, चले जाने की कामना करते हैं। महावीर स्वामी ने 'स्वयं जिओ कलकत्ता आदि महानगरों के साठ से अस्सी प्रतिशत लोग इन्हीं। और जीने दो' का जो संदेश दिया था, यदि उसकी प्रतिष्ठा बस्तियों में रह रहे हैं। विगत दस वर्षों से ग्रामों से नगरों की ओर । सर्वसामान्य के मानस में हो जाये, तभी ध्वनि-प्रदूषण की समस्या 555064 लोगों के भागने की प्रवृत्ति के फलस्वरूप आगामी कुछ वर्षों में का समाधान हो सकता है, अन्यथा नहीं। नगरों के पर्यावरण की स्थिति अत्यन्त शोचनीय होने जा रही है।
कृषि प्रदूषण-औद्योगिक प्रदूषण से उत्पन्न दूषित जल अनेक इतनी बड़ी जनसंख्या के लिए शुद्ध पानी की व्यवस्था करना प्रकार के विषों से मिश्रित होकर कृषि क्षेत्रों में पहुँचता है, भूमि में निश्चित ही एक समस्या है, इसलिए उपलब्ध जल में क्लोरीन । उन विषैले तत्त्व का अवशोषण होता है। आणविक विस्फोटों से मिलाकर उसे कीटाणु रहित करके उपलब्ध कराया जाता है। वायुमंडल में जो रेडियोधर्मी तत्त्व पहुंचते हैं अथवा रासायनिक क्लोरीन स्वयं में विष है, अतः विवशता में शुद्धि के नाम पर यह
प्रदूषणों स वायुमण्डल में जो गैसें प्रविष्ट हो जाती है, वर्षा के जल प्रदूषण महानगरीय संस्कृति की देन हैं।
माध्यम से उनके विष तत्त्व कृषि क्षेत्रों में पहुँचते हैं, जहाँ अन्न,
फल, साक, सब्जी के पौधों द्वारा उनका अवशोषण होता है। फलतः इन महानगरों में मल-व्ययन की समस्या और भी कठिन है।।
अन्न फल आदि सब विषैले हो जाते हैं, जो भोजन के रूप में सीवरों के माध्यम से प्रायः नगरों का सम्पूर्ण मल एकत्र होकर ।
प्राणियों के शरीर में पहुँच जाते हैं। यह सब कृषि प्रदूषण कहलाता नदियों में गिराया जा रहा है, जिससे नदियों का अमृतमय जल
है। इसके अतिरिक्त चूहों तथा कृषि को हानि पहुँचाने वाले अन्य प्रदूषित होकर इतना विषमय हो रहा है कि पीने को कौन कहे, वह
। कीड़ों के संहार के लिए जिन कीटनाशक रसायनों का प्रयोग होता 900 स्नान योग्य भी नहीं रह गया है।
है अथवा खरपतवार के उन्मूलन के लिए भी विविध रसायनों का ध्वनि प्रदूषण-महानगरीय संस्कृति के प्रचार-प्रसार के जो प्रयोग आज प्रचलन में आ चुका है, उनसे भी अन्न, फल आदि DDRE फलस्वरूप एक नवीन प्रकार का प्रदूषण सुरसा के मुख की भाँति विषाक्त होते जा रहे हैं, जो जन स्वास्थ्य के लिए अतिशय हानिकर निरन्तर विस्तृत होता जा रहा है, जिसे ध्वनि प्रदूषण कहते हैं। हैं। नगर और महानगरों के निवासियों में बहुधा पीलिया जैसे रोग नगरों में यातायात के रूप में प्रयुक्त होने वाले यन्त्र स्कूटर, कार, महामारी के रूप में फैलते दिखायी पड़ रहे हैं, वे औद्योगिक कचरे 20% बस, ट्रक आदि अपने इंजन के द्वारा अथवा हार्न के द्वारा जो तीव्र से उत्पन्न कृषि प्रदूषण का ही परिणाम है। साथ ही उत्पादन में वृद्धि ध्वनि उत्पन्न करते हैं, उसने नयी प्रकार की समस्या उत्पन्न कर दी । के लिए रसायनों तथा सुरक्षा के उद्देश्य से कीटनाशकों के प्रयोग के है। बहुधा रोगी व्यक्ति हार्न की ध्वनि सुनकर बेचैन हो उठता है । फलस्वरूप अन्न और फल आदि की गुणवत्ता भी नष्ट हो रही है।
और वह बैचैनी कई बार प्राणघातक बन जाती है। तीव्र गति वाले रासायनिक प्रदूषण औद्योगिक प्रदूषणों के समान ही युद्धलिप्सा जेट और सुपरसोनिक आदि विमान अपनी उड़ान के समय इतनी से विविध प्रकार के पारम्परिक शस्त्र-अस्त्र, नाभिकीय और
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