Book Title: Pushkarmuni Smruti Granth
Author(s): Devendramuni, Dineshmuni
Publisher: Tarak Guru Jain Granthalay

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Page 703
________________ Cac 90. 000. 000 đ 09005006660030050000 000oC29 SODIG062800620030365 GOOD 00.0000000000 220.000000.0. 5050 00.000000 6.0000000000000 Patna जन-मंगल धर्म के चार चरण हैं। (अग्नि के प्रज्वलित होने पर) पृथ्वी के आश्रित, तृण (घास महावीर ने वायुकाय पर संयम रखने की बात कही तथा 2004 चारे) के आश्रित, पत्तो के आश्रित जो काष्ठ के आश्रित, गोबर के वायुकायिक हिंसा के कारण भयंकर हानि बताते हुए कहा-"तं PEOPos आश्रित तथा कचरे कूड़े के आश्रित जीव रहते हैं उनकी भी हिंसा से अहियाए तं से अबोहिए।" अर्थात्-वायुकायिक हिंसा उन मानवों हो जाती है। साथ ही, उड़ने वाले कई प्राणी आकर (प्रज्वलित के लिए अहितकर है तथा सम्यक् बोध से रहित कर देने वाली अग्नि में) सहसा गिर जाते हैं और मर जाते हैं।१० अतः अग्नि । बनती है। प्रदूषण भी कम हानिकारक नहीं है। जल-प्रदूषण भी विनाश और महा हानि का कारण वायु-प्रदूषण और असन्तुलन का कारण : वायुकायिक हिंसा पानी हमारी दुनिया के जीवन-धारण का एक मुख्य स्रोत है। वायु का प्रदूषण भी वर्तमान युग की गम्भीर समस्या है। गैस । परन्तु आज उसमें भी भयंकर प्रदूषण पैदा हो रहा है। जैनधर्म की के रिसाव से भोपाल में हुए वायु-प्रदूषण से कितने धन-जन की दृष्टि से पानी भी एक सजीव तत्व है। उसमें अप्काय के स्थावर हानि हुई, इससे इस खतरे का अनुमान लगा सकते हैं। जीव पाये जाते हैं। अप्काय के आश्रित वनस्पतिकाय के तथा कार्बन-डाइ-ऑक्साइड की मात्रा में पिछले १०० वर्षों में १६ द्वीन्द्रिय-त्रीन्द्रिय प्राणी, यहाँ तक कि मछली आदि जल जन्तु भी प्रतिशत की वृद्धि हुई है। अगर इसी तरह वातावरण में इसकी । पलते हैं। मनुष्य का मल-मूत्र एवं गंदगी, कचरा आदि पानी के मात्रा बढ़ती रही तो मनुष्यों और जानवरों के शरीर हेतु आवश्यक साथ मिलता है, और वह खुला रहता है, उसमें अनेक कीटाणु प्राण वायु का अनुपात घट जाएघा। इसी घटते अनुपात के कारण मक्खी, मच्छर, बिच्छू आदि नाना प्रकार के जीव पैदा हो जाते हैं, महानगरीय इलाकों में रक्त चाप, श्वासरोग, हृदयरोग तथा नेत्ररोग, । मरते हैं, तथा जनता के स्वास्थ्य को भयंकर हानि पहुँचाते हैं। त्वचारोग, कैंसररोग आदि बढ़ रहे हैं। अनेक कल-कारखानों में पानी का भारी मात्रा में उपयोग होता है, नैसर्गिक शुद्ध हवा का प्रदूषण मुख्यतः कारखानों में जलने जब वह पानी रासायनिक प्रक्रियाओं से गुजर कर आता है तो वाले ईंधन तथा विविध प्रक्रियाओं से हवा में छोड़े जाने वाले इतना प्रदूषित हो जाता है कि मनुष्यों के ही क्या, पशुओं, पक्षियों पदार्थों के कारण होता है। कारखानों से निकलने वाले धुंए से, तथा जल-जन्तुओं तक के लिए हानिकारक और अपेय हो जाता है। संसद सदस्य मुरली मनोहर जोशी के अनुसार दिल्ली के पानी में वाहनों से निकलने वाले दूषित पदार्थों से तथा कोयला जलाने वाले इतना अधिक अमोनिया हो गया कि वह पानी पेशाव से भी खराब कारखानों से निकलने वाली गन्धकीय भाप, दावानल तथा अन्य हो गया है। गोआ के एक खाद के कारखाने को इसी लिए बंद ads खुदरा ईंधन के जलने से वायु तीव्र गति से प्रदूषित होता जाता है। यह श्वसन-क्रिया द्वारा शरीर में पहुँचकर रक्त की लाल रुधिर करना पड़ा। वर्तमान सर्वेक्षणों से ज्ञात हुआ कि दिल्ली में प्रतिवर्ष लगभग दो लाख व्यक्ति जल-प्रदूषण से मर रहे हैं। स्विट्जरलैण्ड के कणिकाओं की ऑक्सीजन-परिसंचरण-क्षमता कम कर देती है, जिससे मानव समूह की मृत्यु की भी संभावना है। इसकी १०० पी. जिनेहासागर का पानी एक समय अतिस्वच्छ और शीतल था। आज यदि कोई उस पानी का सेवन कर ले तो वह अनेक दुःसाध्य रोगों पी. एम. सान्द्रता होने पर चक्कर, सिर दर्द एवं घबराहट का से आक्रान्त हो जाता है। जर्मनी की राइन नदी में खतरे के कारण अनुभव होता है, तथा करीब १००० पी. पी. एम. पर मृत्यु हो प्रदूषित जल से करोड़ों मछलियाँ मर गईं। ये यंत्रीकरण जल और जाती है। ईंधनों के जलने से प्रमुख हानिकारक नाइट्रोजन वायु के प्रदूषण के मुख्य अंग हैं। भारत की ८० प्रतिशत आबादी पर-ऑक्साइड, नाइट्रोजन डाइ-ऑक्साइड तथा नाइट्रोजन मोनो जो देश की १४ बड़ी नदियों के किनारे पर बसी हुई है, पानी के ऑक्साइड है, जिनसे खाँसी श्वासरोग तथा पेफड़ों के रोग (टी. बी. प्रदूषण से प्रभावित है। इसीलिए भगवान् महावीर ने कहा था-जो आदि) उत्पन्न होने का खतरा है। यह अनेक प्रकार के शस्त्रों (प्रदूषणवर्द्धक) से जल कर्म समारम्भ कलकत्ता के वैज्ञानिक टी. एम. दास ने बताया है कि के लिए जलीय शस्त्रों का समारम्भ (हिंसा) करते हुए, जल के ही pos वायुमण्डलीय (पर्यावरणीय) प्रदूषण मानव के लिए ही नहीं, नहीं, तदाश्रित अनेक प्राणियों की हिंसा करते हैं।११ जलीय हिंसा 6 0 % वनस्पति और जल के लिए भी हानिकारक है। वायु में तैरते कण । अनेक लोगों के स्वास्थ्य धन-जन के विनाश का कारण है। सूर्य के प्रकाश का अवचूषण करते हैं, जो पौधों के फोटो सिंथेसिस बम्बई जैसे शहरों में जल-प्रदूषण इतना बढ़ गया है कि वहाँ के लिए अत्यन्त हानिकारक हैं। ऐसे प्रदूषित वातावरण से पाँच के निकटवर्ती समुद्र में स्नान करना खतरे से खानी नहीं है। प्रदूषण लाख बच्चे प्रतिवर्ष दमा रोग से पीड़ित हो जाते हैं। फेंफड़ों का की यदि यही गति रही तो एक दिन नदी तालाब समुद्र आदि सभी कैंसर तथा रक्तवाहिनी नाड़ियों में कड़ापना आना, आँखों की जलाशयों में प्रदूषण अत्यधिक बढ़ सकता है। रोशनी धुंधली होना भी वायु-प्रदूषण का परिणाम है। जापान में जिंक के कारखानों में काम करने वाले श्रमिकों की मृत्यु का कारण ध्वनि प्रदूषण और वायुकायिक हिंसा प्रदूषित वातावरण में काम करना है। इससे उनके मूत्राशय में काफी ध्वनि के अत्यधिक प्रयोग, तीव्र ध्वनि के संक्रमण एवं 2600 प्रमाण में केडमियम इकट्ठा हो जाना बताया गया। इसीलिए भगवान् । अत्यधिक बोलते से मनुष्य की जीवनी शक्तियों का तो ह्रास होता asoompass-0000000000000000 पलाम ORG290928 SDEODOORDIODOOD DOAD

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