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उपाध्याय श्री पुष्कर मुनि स्मृति-ग्रन्थ । उसकी प्रतिक्रिया स्वरूप न कहने योग्य कहने और न करने योग्य । मंत्र जप से अनेक लाभ करने की स्थिति निर्मित हो जाती है।
वैज्ञानिकों ने अनुभव किया है कि समवेत स्वर में उच्चारित अच्छे-बुरे शब्दों का अचूक प्रभाव
| मंत्र पृथ्वी के अयन मण्डल को घेरे हुए विशाल चुम्बकीय प्रवाह वीतरागी या समतायोगी को छोड़कर शब्द का प्रायः सब लोगों
शूमेन्स रेजोनेन्स से टकराते हैं और लौटकर समग्र पृथ्वी के के मन पर शीघ्र असर होता है। अच्छे-बुरे, प्रिय-अप्रिय शब्द के
वायुमण्डल को प्रभावित करते हैं। शूमेन्स रेजोनेन्स के अन्तर्गत जो असर से प्रायः सभी लोग परिचित हैं।
गति तरंगों की रहती है, वही गति मंत्रजाप करने वाले साधकों की
तन्मयता एवं एकाग्रता की स्थिति में मस्तिष्क से रिकार्ड की जाने महाभारत की कथा प्रसिद्ध है। दुर्योधन को द्रौपदी द्वारा कहे
वाली अल्फा-तरंगों की (७ से १३ सायंकाल प्रति सैकण्ड) होती है। गए थोड़े से व्यंग भरे अपमानजनक शब्द-"अंधे के पुत्र अंधे ही
व्यक्ति चेतना और समष्टि चेतना में कितना ठोस साम्य है, यह होते हैं" की प्रतिक्रिया इतनी गहरी हई कि उसके कारण महाभारत
साक्षी वैज्ञानिक उपलब्धि देती है। इतना ही नहीं, मंत्रविज्ञानवेत्ता के ऐतिहासिक युद्ध का सूत्रपात हुआ, जिसमें अठारह अक्षौहिणी
विभिन्न मंत्रों द्वारा शाप-वरदान, विविध रोगों से मुक्ति, आधिसेना मारी गई।
व्याधि-उपाधि से छुटकारा, भूत-प्रेतादिग्रस्तता-निवारण तथा मारण, स्वामी विवेकानंद के पास कुछ पंडित आए। वे कहने लगे क्या मोहन, उच्चाटन, कृत्याघात आदि प्रयोगों का दावा करते हैं और पड़ा है-शब्दों में। जप के शब्दों का कोई प्रभाव या अप्रभाव नहीं कर भी दिखाते हैं। होता। वे जड़ हैं। आत्मा पर उनका क्या असर हो सकता है? स्वामीजी कुछ देर तक मौन रहकर बोले-"तुम मूर्ख हो, बैठ
संगीतगत शब्दों का विलक्षण प्रभाव जाओ।" इतना सुनते ही सब आगबबूला हो गए और उनके चेहरे
लय-तालबद्ध गायन तथा सामूहिक कीर्तन संगीत के रूप में क्रोध से लाल हो गए। उन्होंने कहा-“आप इतने बड़े संन्यासी
शब्दशक्ति की दूसरी महत्वपूर्ण विधा है। इसका विधिपूर्वक होकर गाली देते हैं। बोलने का बिल्कुल ध्यान नहीं है आपको?" सुनियोजन करने से प्रकृति में वांछित परिवर्तन एवं मन-वचन-काया विवेकानंद ने मुस्कराते हुए कहा-“अभी तो आप कहते थे, शब्दों को रोग मुक्त करना संभव है। संगीत से तनाव शैथिल्य हो जाता का क्या प्रभाव होता है? और एक "मूर्ख" शब्द को सुनकर । है। वह अनेकानेक मनोविकारों के उपचार की भी एक नोवैज्ञानिक एकदम भडक गए। हुआ न शब्दों का प्रभाव आप पर?" वे सब
विधा है। संगीत के सुनियोजन से रोग-निवारण, भावात्मक पंडित स्वामी विवेकानंद का लोहा मान गए।
अभ्युदय, स्फूर्तिवर्धन, वनस्पति-उन्नयन, गोदुग्ध-वर्धन तथा प्राणियों जैन इतिहास में प्रसन्नचन्द्र राजर्षि की घटना प्रसिद्ध है। वे वन
की कार्यक्षमता में विकास जैसे महत्वपूर्ण लाभ संभव हैं। में प्रसन्न-मुद्रा में पवित्र भावपूर्वक ध्यानस्थ खड़े थे। मगध नरेश । विभिन्न रागों का विविध प्रभाव श्रेणिक नृप भगवान महावीर के दर्शनार्थ जाने वाले थे। उनसे पहले
गन्धर्ववेद में बताया गया है-श्री राग, मालकोष राग, दो सेवक आगे-आगे जा रहे थे। उनमें से एक ने उनकी प्रशंसा की,
भैरवराग, हिण्डोलराग, मेघ मल्हारराग, विहागराग आदि का जबकि दूसरे ने उनकी निन्दा की और कहा-"यह काहे का साधु
नियमानुसार ऋतु, समय एवं प्रकृति के विधानानुसार प्रयोग किया है? यह जिन सामन्तों के हाथ में अपने छोटे-से बच्चे के लिए
जाए तो इनसे जड़ चेतन सभी पर संगीत शक्ति का वांछित प्रभाव राज्यभार सौंपकर आया है, वे उस अबोध बालक को मारकर
पड़ता है। गायक की पात्रता, पवित्रता एवं शुद्ध भावना की भी स्वयं राज्य हथियाने की योजना बना रहे हैं। इस साधु को अपने
इसमें अनिवार्यता है। शास्त्रीय संगीत का प्रभाव प्राचीनकाल में भी अबोध बच्चे पर बिल्कुल दया नहीं है।" इस प्रकार के निन्दा भरे ।
था, आज भी है। दीपक राग में दीपकों के जल जाने का, शब्द सुनते ही प्रसन्नचन्द्र राजर्षि अपने आपे में न रहे। वे मन ही
मेघमल्हार राग में बादलों को बरसने के लिए विवश कर देने का, मन शस्त्रास्त्र लेकर शत्रुओं से लड़ने का उपक्रम करने लगे।
शंकर राग से मदमस्त हाथियों को वश में करने का और श्रीराग में श्रेणिक राजा द्वारा भगवान महावीर से पूछने पर उन्होंने सारी सखे वृक्षों को हरा कर देने का सामर्थ्य था। संगीत विज्ञानवेत्ता घटना का रहस्योद्घाटन करते हुए राजर्षि की पहले, दूसरे से बताते हैं कि भैरवी राग से कष्ट का प्रकोप, मल्हारराग से बढ़ते-बढ़ते सातवें नरक गमन की अशुभभावना बताई परन्तु कुछ मानसिक चंचलता एवं क्रोध, तप्त रक्त की अशुद्धि आसावरी राग ही देर बाद राजर्षि की भावधारा एकदम मुड़ी वे पश्चात्ताप और ।
से मिट जाना संभव है। श्वास संबंधी असाध्य कष्ट, तपेदिक, तीव्रतम आत्मनिन्दा करते-करते सर्वोच्च देवलोक गमन की
खांसी, दमा आदि श्वास रोगों का भैरवीराग से, यकृत प्लीहा वृद्धि संभावना से जुड़ गए। फिर घोर पश्चात्ताप से घाती कर्मदलिकों को }
तथा मेदस्वृद्धि का हिंडोल राग से तथा जठराग्नि संबंधी रोगों का नष्ट करके केवलज्ञान को प्राप्त हुए और फिर सर्वकर्मों का क्षय
निवाया हो सकता है। बाल गजरिया मग करके सिद्ध बुद्ध मुक्त बन गए।
सुनाकर राणा राजसिंह को अनिद्रा रोग से मुक्ति दिलाई थी। यह था शब्द का अमोघ प्रभाव।
ऐलोपैथी ने अल्ट्रासाउण्ड को मान्यता देकर शब्दशक्ति की महत्ता
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