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2009
इतिहास की अमर बेल
इतिहास हमारी गति/प्रगति का आईना होता है। वह बीते हुए कल का लेखा-जोखा है। भूतकाल की भूलें और समझदारियाँ, क्रिया और प्रतिक्रियाओं का बिम्ब इतिहास के आईने में प्रतिबिम्बित होता रहता है, इसलिए इतिहास मनुष्य जाति की प्रगति का थर्मामीटर भी है। इतिहास शिक्षक है और पथ दर्शक भी। साथ ही इतिहास हमारे गौरव की गाथाओं का महाकाव्य भी है।
जैन परम्परा का इतिहास बहुत प्राचीन है। इतना कि इसका आदि सूत्र खोज पाना भी संभव नहीं है। काल की आँख उस छोर को देख नहीं पाती। इसलिए उसे कालातीत या अनादि कहकर ही विश्राम लेना पड़ता है। भगवान ऋषभदेव से भगवान नेमिनाथ तक का प्राग् इतिहास पौराणिक काल के नाम से जाना जाता है। भगवान अरिष्टनेमि श्री कृष्ण युग के महापुरुष थे। उस युग को इतिहासकार काल गणना की परिधि में समेट लेते हैं। भगवान पार्श्वनाथ और भगवान महावीर निस्संदेह ऐतिहासिक महापुरुष है। उनका इतिहास आज अनेक साक्ष्यों के आधार पर जीवंत है। वह इतिहास का स्वर्णकाल है।
भगवान महावीर के उत्तरकाल की जैन परम्परा विभिन्न उतार-चढ़ाव, आरोह-अवरोह से गुजरी है। इस युग में अनेक ज्योतिर्धर प्रभावक आचार्य हुए, जिन्होंने जैन धर्म और जैनशासन की गरिमा में चार चाँद लगाये, परन्तु इस काल खण्ड में ऐसी घटनाएँ भी हुईं जिनके कारण यशस्वी जैन परम्परा की गरिमा धुंधली पड़ी। जैनधर्म का सूर्य पारस्परिक राग-द्वेष व भौतिक अभीप्साओं के बादलों से आच्छादित हुआ और परम्परा की पुण्य सलिला गंगा का प्रवाह छोटी-छोटी धाराओं में विभक्त होकर प्रदूषित होता गया।
इतिहास करवट लेता है। काल पुरुष जागता है। अवनति की तन्द्रा टूटती है। पुनः उन्नति का प्रभास्वर सहस्ररश्मि चमकने लगता है।
भगवान महावीर निर्वाण की १८वीं सदी में लोंकाशाह की धर्म क्रांति जागृति का संदेश देती है। शिथिल प्रायः श्रमण परम्परा में क्रियोद्धार होता है और श्री लवजीऋषि आदि की परम्परा पुनः भगवान महावीर के सिद्धान्तों का सच्चा प्रतिनिधित्व करती हुई आगे बढ़ती है और फिर इस परम्परा में प्रकट होते हैं आचार्यश्री अमरसिंह जी महाराज।
इस स्मृति ग्रन्थ के नायक गुरुदेव उपाध्यायश्री पुष्कर मुनिजी महाराज की परम्परा के आदि पुरुष थे आचार्यश्री अमरसिंह जी महाराज। अतः इतिहास के विस्तार में नहीं जाकर प्रस्तुत में आचार्यश्री अमरसिंह जी महाराज से वर्तमान आचार्यश्री देवेन्द्र मुनिजी तक की इस इतिहास बेल को रूपायित किया गया है प्रस्तुत खण्ड में।
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