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| अध्यात्म साधना के शास्वत स्वर
तरह है। वहीं 'शब्द ब्रह्म' या 'नाद ब्रह्म' है। स्पन्दनशून्य होने के रेखा मिट जावे तब जप सिद्ध हुआ कहा जाता है। आत्मा और कारण वह बिन्दुरूपा है। यह निर्विकल्प, अव्यक्त अवस्था में है। परमात्मा की ऐक्यता। इसे जप का सर्वस्व कहा जाता है। ध्वनि अपने बीज रूप में है।
शब्दाज्जापान्मौन-स्तस्मात् सार्थस्ततोऽपि चित्तस्था (२) पश्यन्ती-परा स्तर से ऊपर चलकर नाभि तक आने
श्रेयानिह यदिवाऽऽवात्म-ध्येयैक्यं जप सर्वस्वम्॥ वाली उस हवा से अभिव्यक्त होने वाली ध्वनि मनोगोचरीभूत होने
शब्द जप की अपेक्षा मौन जप अच्छा है। मौन जप की अपेक्षा से पश्यन्ती कही जाती है। सविकल्प ज्ञान के विषय रूप है। यही
सार्थ जप अच्छा है। सार्थ जप की अपेक्षा चित्तस्य जप अच्छा है मानस के चिन्तन प्रक्रिया के रूप ध्वनि संज्ञा की तरह चेतना का
और चित्तस्थ की अपेक्षा ध्येक्य जप अच्छा है क्योंकि वह जप का अंग बन जाती है।
सर्वस्व है। (३) मध्यमा-ध्वनि उच्चारित होकर भी श्रव्यावस्था में नहीं आ
। तीसरी अपेक्षा से जाप के तेरह प्रकार हैं-(१) रेचक, (२) पाती है।
पूरक, (३) कुम्भक, (४) सात्विक, (५) राजसिक, (६) तामसिक, (४) वैखरी-श्रव्य वाक् ध्वनि रूप से मान्य है। यह मुख तक (७) स्थिर कृति-चाहे जैसे विघ्न आने पर भी स्थिरता पूर्वक जप आने वाली हवा के द्वारा ऊर्ध्व क्रमित होकर मूर्धा का स्पर्श करके किया जाय, (८) स्मृति-दृष्टि को भ्रूमध्य में स्थिर कर जप किया सम्बन्धित स्थानों से अभिव्यक्त होकर दूसरों के लिये सुनने योग्य जाय। (९) हक्का-जिस मंत्र के पद क्षोभ कारक हों अथवा जिसमें बनती है।
श्वास लेते और निकालते समय 'ह' कार का विलक्षणता पूर्वक शास्त्रों में जप के कई प्रकारों का वर्णन है, कुछ
उच्चारण करते रहना पड़ता है। (१०) नाद-जाप करते समय निम्नानुसार हैं।
भ्रमर की तरह गुंजार की आवाज हो। (११) ध्यान-मंत्र पदों का
वर्णादि पूर्वक ध्यान करना। (१२) ध्येयैक्य-'ध्याता और ध्येय की एक अपक्षा क जप क तान प्रकार ह-(१) भाष्य, (२) उपाशु, । जिसमें ऐक्यता हो। (१३) तत्व-पंच तत्व-पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु (३) मानस।
और आकाश तत्वों के अनुसार जप करना। (१) भाष्य-'यस्तु परैः श्रूयते भाष्यः' जिसे दूसरे सुन सकें वह
इस प्रकार जप के कई प्रकार हैं। भाष्य जप है। यह जप मधुर स्वर से, ध्वनि श्रवण पूर्वक बोलकर वैखरी वाणी से किया जाता है।
उच्चारण की अपेक्षा से जाप तीन प्रकार से होता है-(9)DS.DOD..
हस्व, (२) दीर्घ, (३) प्लुत। (२) उपांशु-'उपांशुस्तु परैरश्रूयमाणोऽन्तर्जल्प रूपः'। इसमें
शास्त्रों के अनुसार ओंकार मंत्र का जप ह्रस्व करने से सब मध्यमा वाणी से जप किया जाता है। इसमें होठ, जीभ आदि का
पाप नष्ट होते हैं। दीर्घ उच्चारण करने से अक्षय सम्पत्ति प्राप्त होती EDGE: हलन-चलन तो होता रहता है किन्तु वचन सुनाई नहीं देते।
है तथा प्लुत उच्चारण करने से ज्ञानी होता है, मोक्ष प्राप्त करता है। (३) मानस-'मानसो मनोमात्र वृत्ति निर्वृत्तः स्वसंवेद्य।' पश्यन्ती
जीवात्मा के चार शरीर माने गये हैं-(१) स्थूल, (२) सूक्ष्म,BA D . वाणी से जप करना। यह जप मन की वृत्तियों द्वारा ही होता है
(३) कारण, (४) महाकारण। | तथा साधक स्वयं उसका अनुभव कर सकता है। इस जप में काया की और वचन की दृश्य प्रवृत्ति-निवृत्त होती है।
जब जप जीभ से होता है तो उसे स्थूल शरीर का जाप; जप
जब कण्ठ में उतरता है तो सूक्ष्म शरीर का; हृदय में उतरने पर जब मानस जप अच्छी तरह सिद्ध हो जाता है तब नाभिगता
कारण शरीर का तथा नाभि में उतरने पर महाकारण शरीर का परा ध्वनि से जप किया जाता है। उसे अजपा जप कहते हैं। दृढ़
जप समझना चाहिये। अभ्यास होने पर इस जप में चिन्तन बिना भी मन में निरन्तर जप होता रहता है। श्वासोच्छ्वास की तरह यह जप चलता रहता है।
जप में मौन जप सर्वश्रेष्ठ बताया है। मौन जप करने से शरीर
के अन्दर भावात्मक एवं स्नायविक हलन-चलन चलती है। उससे मनुस्मृति २/८५-८६ के अनुसार कर्म यज्ञों की अपेक्षा जप
उत्पन्न ऊर्जा एकीकृत होती जाकर शरीर में ही रमती हुई रोम-रोम | यज्ञ दस गुना श्रेष्ठ, उपांशु जप सौगुना और मानस जप सहस्र गुना से निकलती है। शरीर के चारों ओर उन तरंगों का वर्तुल बनता है श्रेष्ठ है।
| जिससे व्यक्ति का आभामण्डल प्रभावशाली होता जाता है। उससे दूसरी अपेक्षा से जप पांच प्रकार के हैं-(१) शब्द जप, (२) उनकी स्वयं की कष्टों को सहन करने की अवरोधक शक्ति तो मौन जाप, (३) सार्थ जाप, (४) चित्तस्थ जप = मानस जप-इस बढ़ती ही है, साथ ही शरीर से निकली तरंगों के प्रभाव से साधु जप में एकाग्रता बहुत चाहिए। चंचलता वाले यह जप नहीं कर सन्तों के सामने शेर और बकरी का पास पास बैठना; अरहंतों के सकते। अभ्यास से ही चित्त स्थिर होता है। (५) ध्येयैकत्व जप- 1 प्रभाव से आसपास के क्षेत्र में किसी उपद्रव का, बीमारी का न आत्मा का ध्येय से एकत्व होना। ध्याता और ध्येय के मध्य की भेद होना जो शास्त्रों में वर्णित है, हो सकता है।
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