Book Title: Pushkarmuni Smruti Granth
Author(s): Devendramuni, Dineshmuni
Publisher: Tarak Guru Jain Granthalay

View full book text
Previous | Next

Page 669
________________ A60 .6.0.0.000/ o pe अध्यात्म साधना के शास्वत स्वर अनेकान्त : रूप-स्वरूप 000 6808006 -डॉ. राजबहादुर पाण्डेय, साहित्यरत्न (एम. ए. (हिन्दी) : एम. ए. (संस्कृत) पी एच.डी. सम्पादक : आनन्द बोध, दिल्ली) कहते हैं बहुत पहले कभी एक विशाल गुफा के समीप स्थित यह घटना न मालूम कब की है और यह घटी कहाँ थी, इसके किसी गाँव में पहली-पहली बार एक हाथी आया था। उस अद्भुत | विषय में निश्चित रूप से तो कुछ नहीं कहा जा सकता, किन्तु जब और अपूर्वदृष्ट जन्तु को भली-भाँति निरख-परख कर गाँव के भी घटी थी, तभी से यह दर्शन के एक दिव्य-सिद्धान्त के दृष्टान्त 8 मुखिया ने उसे गुफा के भीतर अँधेरे में बाँध दिया था। के रूप में सर्वत्र उद्धृत की जाती रही है। वह दिव्य सिद्धान्त ही गाँव में इस समाचार के फैलने पर कौतूहलवश गाँव के लोग। अनेकान्त है। हम अपने इस लेख में अनेकान्त की ही संक्षिप्त हाथी को देखने आए थे। उनमें से कुछ को अलग-अलग एक-एक व्याख्या प्रस्तुत करने जा रहे हैं। करके मुखिया ने हाथी का आकार जानने के लिए गुफा के भीतर सिद्धान्त शब्द की व्युत्पत्ति है-सिद्धः अन्तः यस्य स सिद्धान्तः भेजा था। अँधेरे में हाथ से स्पर्श करके और अपने स्पर्शानुभव के अर्थात सिद्ध यानी प्रमाणित है. 'अन्त' यानी पक्ष जिस मान्यता का आधार पर जन्तु (हाथी) के आकार की कल्पना करके उनमें से वह कहलाती है-सिद्धान्त। प्रत्येक व्यक्ति गुफा से बाहर आया था और मुखिया के पूछने पर किसी ने हाथी का आकार सूप के समान, किसी ने पेड़ के तने के । विश्व में प्रचलित एवं आचरित अनेक धर्मों (सम्प्रदायों) के समान और किसी ने मोटी रस्सी के समान बताया था तथा वे अपने-अपने अनेक दर्शन एवं अनेक सिद्धान्त हैं; किन्तु जैनधर्म के अपने-अपने प्रत्यक्ष अनुभव को ही सही मानकर दूसरों को गलत अपने दर्शन का अथवा जैनागम का 'अनेकान्त' सिद्धान्त मात्र बताते हुए परस्पर झगड़ने लगे थे। सिद्धान्त ही नहीं है, वह तो सिद्धान्तरत्न है तथा इसी सिद्धान्त के आधार पर जैन-धर्म को विश्वधर्म की संज्ञा प्राप्त हुई है। कहा तब मुखिया ने कहा था-लड़ो-झगड़ो मत। इसमें संघर्ष की । जाता है कि हाथी के 'पाँव में सबका पाँव' यानी हाथी के पद चिह्न बात बिल्कुल नहीं है। देखो तुममें से जिसने हाथी का आकार सूप इतने बड़े होते हैं कि उनमें सब जीवों के पद-चिह्न समा जाते हैं। के समान बताया है, वह भी अपने अनुभव के आधार पर सही है, मोटी रस्सी जैसा आकार है, यह बतलाने वाला भी सही है । अनेकान्त सिद्धान्त भी ऐसा व्यापक है कि उसमें सिद्धान्त मात्र के और तने जैसा आकार वाला हाथी होता है, यह बताने वाला भी मूल तत्त्व समाविष्ट हैं। जिसके आचार से वैचारिक तथा अन्य मूल तत्व समा सही है किन्तु प्रत्येक का अनुभव हाथी के आकार के एक पक्ष को प्रकार के सभी संघर्षों एवं अशान्ति का विसर्जन होकर विश्व में ही प्रकट करता है। अँधेरे में स्थित हाथी के कान पर हाथ । सर्वत्र सत्य, शान्ति एवं अहिंसा स्थापित हो सकती है। रखकर जिसने हाथी को स्पर्श किया है, उसने अपने स्पर्श- 'अनेकान्त' शब्द का सन्धि-विच्छेद करने पर उसमें से तीन अनुभव के आधार पर सही ही कहा है कि हाथी सूप जैसा होता शब्द निकलते हैं अन+एक+अन्त। ये तीन शब्द ही मानो त्रिविध है। पैरों को छूकर जो आया है, उसने भी सही ही कहा है कि तापों के शमन प्रतीक हैं। अन्+एक माने एक नहीं अनेक (कई) हाथी का आकार तने जैसा होता है तथा जो उसकी सूड़ का स्पर्श और अन्त माने पक्ष। सम्मिलित तीनों शब्दों का अभिप्राय है-'एक करके आया है, उसका कथन भी सही है कि वह मोटी रस्सी जैसा । नहीं कई पक्ष। होता है। किन्तु ये सब कथन हाथी के शरीर के एक-एक अंग के आकार को प्रस्तुत करते हैं-उसके आकार के एक पक्ष को ही जैनदर्शन का एक सूत्र है-वत्थु सहावो धम्मो अर्थात् वस्तुः प्रस्तुत करते हैं। हाथी के आकार की समग्रता को प्रकट नहीं करते स्वभावः धर्मः। वस्तु, पदार्थ व्यक्ति का स्वभाव ही उसका धर्म है। अतः सही होते हुए भी एकांगी अथवा एक पक्षीय हैं। हाथी के स्वभाव का अर्थ है-वह भाव जो उसका अपना बन गया है, उसमें आकार के अनेक पक्ष हैं। तुम सबने अपने सीमित अनुभव के सर्वथा रचा-बसा हुआ है, वह भाव जो प्रत्येक परिस्थिति में उसमें आधार पर ही हाथी के आकार का वाणी से प्रस्तुतीकरम किया है। बना ही रहता है, उससे कभी अलग नहीं होता। दर्शन कहता है कि सबका कथन सही है, किन्तु अपूर्ण है अतः इसमें एक-दूसरे को । प्रत्येक वस्तु का स्वभाव है कि उसका एक पक्ष नहीं होता वह गलत बताकर परस्पर संघर्ष की बात बिल्कुल नहीं है। तब मुखिया अनेक पक्षों-अन्तों-धर्मों वाली होती है। अर्थात् प्रत्येक पदार्थ, प्रत्येक का समझदारी भरा और तर्कसंगत यह कथन सुनकर सभी शान्त वस्त्र अथवा प्रत्येक व्यक्ति का व्यक्तित्व अनेक पक्षी, अनेक धर्मी हो गए थे। होता है। - DO.DODOOD .006aDDS00000001pa 000000

Loading...

Page Navigation
1 ... 667 668 669 670 671 672 673 674 675 676 677 678 679 680 681 682 683 684 685 686 687 688 689 690 691 692 693 694 695 696 697 698 699 700 701 702 703 704 705 706 707 708 709 710 711 712 713 714 715 716 717 718 719 720 721 722 723 724 725 726 727 728 729 730 731 732 733 734 735 736 737 738 739 740 741 742 743 744 745 746 747 748 749 750 751 752 753 754 755 756 757 758 759 760 761 762 763 764 765 766 767 768 769 770 771 772 773 774 775 776 777 778 779 780 781 782 783 784 785 786 787 788 789 790 791 792 793 794 795 796 797 798 799 800 801 802 803 804 805 806 807 808 809 810 811 812 813 814 815 816 817 818 819 820 821 822 823 824 825 826 827 828 829 830 831 832 833 834 835 836 837 838 839 840 841 842 843 844