________________
| अध्यात्म साधना के शास्वत स्वर
भारतीय दर्शन में सत्य की खोज
अर्थात् धर्म को जानते हुए भी मैं उसमें प्रवृत्त नहीं होता, और
अधर्म को जानते हुए भी मैं उससे निवृत्त नहीं हो पाता। भारतीय दर्शन में सत्य को प्राप्त करने के लिये जितनी । उछल-कूद, जितना संघर्ष दिखाई देता है, उतना अन्यत्र दिखाई नहीं
। एक शराबी इस बात से भलीभाँति परिचित है कि शराब पीना देता। उपनिषद्-साहित्य सत्य पाने की इस खोज से भरा पड़ा है। सत्य
अच्छा नहीं, फिर भी वह अपनी आदत से लाचार है, शराब की क्या है ? ब्रह्म क्या है ? सृष्टि क्या है ? सृष्टि का आधार क्या है? गंध पाते ही उसके मुंह में पानी आ जाता है और उसे पीने के क्या आकाश और पृथ्वी एक दूसरे से जुड़े हैं जो गिर नहीं पड़ते?
लिए वह मचलने लगता है। पहले क्या था? सत् या असत् ? क्या पूर्वकाल से सर्वत्र जल ही जल
अनेकान्तवाद था? फिर जल से पृथ्वी, अन्तरिक्ष, आकाश, देव, मनुष्य, पशु, पक्षी, तृण, वनस्पति, जंगली जानवर और कीट-पतंग पैदा हुए।।
अनेकान्त वाद का सिद्धान्त हमें व्यापक दृष्टि प्रदान करता है, बृहदारण्यक उपनिषद् ५.१) ? इस प्रकार के ऊहापोहात्यक विचार
सहिष्णु बनने के लिए प्रेरित करता है। अनेक वर्ष पूर्व जैन-दर्शन जगह-जगह दिखाई देते हैं जिससे उपनिषद्कारों की असीम जिज्ञासा
के प्रकाण्ड पण्डित उपाध्याय यशोविजय जी लिख गये हैंका अन्दाजा लगाया जा सकता है। यही भारतीय दर्शन की शुरुआत । “अनेकान्तवादी समस्त नयरूप दर्शनों को उसी वात्सल्य है जिसमें जिज्ञासा की ही मुख्यता है।
दृष्टि से देखता है जैसे पिता अपने पुत्रों को, फिर किसी को कम प्राचीन यूनानी साहित्य में भी इसी जिज्ञासा वृत्ति के दर्शन होते ।
और किसी को ज्यादा समझने की बुद्धि उसकी कैसे हो सकती हैं। यूनान का महान् विचारक सुकरात जीवन में जिज्ञासा वृत्ति को
है। जो व्यक्ति स्याद्वाद का सहारा लेकर, मोक्ष प्राप्ति के उद्देश्य छानबीन करने की वृत्ति को मुख्य मानता था। उसका कहना था ।
को सामने रखकर समस्त दर्शनों में समभाव रखता है, वही कि यदि इन्सान में यह वृत्ति नहीं हो तो उसमें रह ही क्या जाता।
शास्त्रवेत्ता कहलाने का अधिकारी है। अतएव माध्यस्थ भाव है? वह निष्प्राण है। प्लेटो ने यूनानवासियों में बालकों जैसी सुलभ । शास्त्रों का गूढ़ रहस्य है, यही धर्मवाद है, शेष सब बच्चों की बाल्यावस्था की जिज्ञासा वृत्ति की प्रशंसा की है। उसने अपने तीस बकवास है; तथा माध्यस्थ भाव की प्राप्ति होने पर एक पद का से अधिक लिखे हुए संवादों में इसी जिज्ञासा वृत्ति को प्रोत्साहित ।
ज्ञान भी पर्याप्त है, अन्यथा करोड़ों शास्त्रों के पठन करने से भी किया है जिनमें वह राजनीति जैसे गम्भीर विषयों पर चर्चा किया कोई लाभ नहीं इस बात को महात्मा पुरुषों ने कहा है।" करता और जहाँ निष्कर्ष का प्रश्न आता उसे वह अपने पाठकों पर । (अध्यात्मसार) छोड़ देता।
लेकिन क्या इन सब बातों का बार-बार स्वाध्याय करते रहने चीन के सुप्रसिद्ध विचारक लाओ-से ने एक सचमुच के पर भी हमने अपने मटमैले मन को शुद्ध किया? क्या हमने गच्छ, भलेमानस व्यक्ति के बारे में कहा है
बादों और आचार-विचार सम्बन्धी साम्प्रदायिक मतभेदों से ऊपर "वह प्रेरणा देता है लेकिन उसके स्वामित्व को स्वीकार नहीं
उठकर सच्चा अनेकान्तवादी बनने का प्रयत्न किया? करता, वह क्रियाशील है लेकिन उसका दावा नहीं करता, वह । लगता है, सत्य की खोज अभी जारी है, अभी तक हम सत्य योग्यता से सम्पन्न है लेकिन उसका कभी विचार नहीं करता, और } की पहचान करने में असफल रहे हैं। क्योंकि वह उसका विचार नहीं करता इसलिए उससे उसका
आशा है, हमारी यह मंजिल जल्दी ही पूरी होगी और. एक छुटकारा नहीं।"
दूसरे के प्रति सद्भावना शील रहते हुए हम पिछड़ी हुई प्रचलित लेकिन त्रासदी यह है कि सचमुच का भलामानस व्यक्ति कैसे परम्पराओं को उखाड़ फेंकने में सफलता प्राप्त करेंगे। बनाया जाये!
पतासंस्कृत में श्लोक है
१/६४, मलहार को-ओप. हाऊसिंग सोसाइटी जानामि धर्म न च मे प्रवृत्तिः
बांद्रा, रैक्लेमेशन (वेस्ट) जानाम्यधर्म न च मे निवृत्ति।
बम्बई - ४०० ०५०
* अहिंसा के सामने हिंसा बालू की दीवार की तरह बैठ जाती है। * जिसका वैराग्य जाग गया है, उसे फिर मोह की जंजीरें नहीं बांध सकतीं।
-उपाध्याय श्री पुष्कर मुनि
Peed
Jan Education intémational
G
For Private
Personal use only
www.jainelibrary.org