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। इतिहास की अमर बेल और साध्वीरत्न श्री पुष्पवती जी म. को गुरुणी बनाया। आपने +आपको संस्कृत, प्राकृत, हिन्दी, अंग्रेजी आदि भाषाओं का ज्ञान संवत् २०३० कार्तिक शुक्ला १३ दिनांक ९ नवम्बर १९७३ को है। जैन शास्त्र तथा थोकड़ों का अध्ययन है। कर्मग्रन्थ, तत्त्वार्थ सूत्र अजमेर में पूज्य उपाध्यायश्री पुष्कर मुनि जी म. के सान्निध्य में । आदि का अच्छा अभ्यास किया है। अनेक स्तोत्र, स्तवनादि कंठस्थ आर्हती दीक्षा अंगीकार की।
हैं। आप प्रखरवक्ता और कई प्रकार के त्याग-प्रत्याख्यान के धारक आपने जैन सिद्धान्त विशारद परीक्षा श्री धार्मिक परीक्षा बोर्ड
हैं। गर्म कपड़ों का आपने त्याग किया हुआ है, आपने राजस्थान, पाथर्डी से उत्तीर्ण की, आपने जैन आगम साहित्य और अन्य जैन
हरियाणा, पंजाब, दिल्ली, उत्तर प्रदेश, हिमाचल प्रदेश आदि क्षेत्रों
में विचरण किया है। साहित्य का अध्ययन किया। आपने हिन्दी साहित्य के लेखन में गीत, भजन, स्तवन, स्तोत्र आदि की रचनाएँ की हैं। कहानियों की
श्री सुरेन्द्र मुनिजी म. रचना और संकलन भी किया है। सूक्तियों का संग्रह भी किया है।
आपका जन्म ईस्वी सन् १९७४ श्रावण शुक्ला सप्तमी के दिन आपकी प्रकाशित पुस्तकें इस प्रकार हैं
हुआ। आपके पिताजी चांदमलजी बम्ब तथा माताश्री प्रेमबाई है। एक राग भजन अनेक, प्रिय कहानियाँ, अमर गुरु चालीसा, पूज्य साध्वीरत्न महासती पुष्पवती जी म. की सद्प्रेरणा एवं पुष्कर गुरु चालीसा, अध्यात्म साधना, अध्यात्म प्रेरणा, भक्तामर सदुपदेश से प्रतिबोधित होकर आपने पूज्य गुरुदेवश्री के पौत्र शिष्य स्तोत्र, पुष्कर सूक्ति कोष, बोध कथाएँ, अध्यात्म कहानियाँ आदि। डॉ. राजेन्द्र मुनिजी का शिष्यत्व ग्रहण किया। अहमदनगर में दिनांक साध्वीरत्न श्री पुष्पवती जी म. के अभिनन्दन ग्रन्थ का आपने
२९.११.८७ को आपने भगवती दीक्षा ग्रहण की। आचार्यश्री देवेन्द्र मुनिजी म. के सान्निध्य में सफल संपादन किया है। आप आचार्यसम्राट श्री देवेन्द्र मुनिजी म. के मार्गदर्शन तथा आपका स्वभाव मधुर, मिलनसार एवं सेवा परायण है। आपका डॉ. राजेन्द्र मुनिजी की देखरेख में संस्कृत, प्राकृत, अंग्रेजी आदि व्यक्तित्व भी आकर्षक और मनोहर है। आप व्यवहार निपुण और भाषाओं तथा आगमों आदि का अध्ययन कर रहे हैं। कुशल आयोजक हैं। आचार्यसम्राट श्री देवेन्द्र मुनिजी म. की
आपने महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, राजस्थान, हरियाणा, हिमाचल साहात्यक साधना म आर अन्य प्रवृत्तिया म आपका सहयाग प्रदेश एवं पंजाब आदि की यात्राएँ की हैं। भुलाया नहीं जा सकता। उपाध्यायप्रवर श्री पुष्कर मुनिजी म. और आचार्यसम्राट श्री देवेन्द्र मुनि जी म. की बहुआयामी जिम्मेदारियों
मुनिश्री शालिभद्र जी म.
The के निर्वहन में तथा वैयावृत्यादि द्वारा एक विनीत अन्तेवासी का आपका जन्म दिनांक २४.६.७९ को जयपुर के प्रसिद्ध धर्मप्रेमी कर्तव्य आप भली भांति निभाते हैं।
श्रावक परिवार में हुआ। आपके पिता श्री भंवरलालजी श्रावक तथा सामाजिक संस्थाओं की स्थापना के लिए आप प्रयत्नशील रहते माताश्री किरणदेवी श्रावक अच्छे धर्मशील व्यक्ति हैं। हैं। आपकी प्रेरणा से श्री पुष्कर गुरु धार्मिक पाठशाला बैंगलोर, श्री आपने महासती श्री चारित्रप्रभाजी के सदुपदेश से प्रतिबोधित वर्द्धमान पुष्कर गुरु जैन पुस्तकालय, किशनगढ़, श्री पुष्कर बाल होकर पूज्य गुरुदेव उपाध्यायश्री के शिष्य श्री नरेश मुनिजी का मण्डल एवं गुरु पुष्कर देवेन्द्र जैन पुस्तकालय करमावास आदि शिष्यत्व ग्रहण किया। दिनांक २८.३.९३ को उदयपुर में आपने बड़े संस्थाएँ स्थापित हुई हैं। परोपकारमय सेवाभावी प्रवृत्तियों में आपको ही उत्साह ठाट-बाट से पूज्य गुरुदेव उपाध्यायश्री पुष्कर मुनिजी के विशेष दिलचस्पी है, आप एक होनहार, प्रतिभासंपन्न संतरत्न हैं। सान्निध्य में भगवती दीक्षा ग्रहण की। आपश्री नरेश मुनिजी के प्रस्तुत स्मृति के संयोजक/सम्पादक
शिष्य बने। दीक्षापूर्व भी आपने अच्छा अध्ययन किया। दीक्षा के
पश्चात् भक्तामर, कल्याण मन्दिर, दशवैकालिक, तत्त्वार्थ सूत्र, श्री नरेश मुनि जी म.
उत्तराध्ययन आदि के अध्ययन से संलग्न हैं। आपकी ज्ञान जिज्ञासा आपका जन्म दिल्ली में हुआ। आपके पिताश्री का नाम श्रीमान तथा अध्ययन दृष्टि के साथ बुद्धि का विकास भी अच्छा है।
906009 रतनलाल जी लोढ़ा और माता जी का नाम श्रीमती कमलादेवी आपने आचार्यश्री के साथ-साथ राजस्थान, हरियाणा, पंजाब लोढ़ा है। आपने संवत् २०३९ जेठ सुदी १४ दिनांक ५ जून की यात्राएँ की हैं। १९८२ को राजस्थान के बाड़मेर जिले के गांव गढ़ सिवाना में उपाध्याय अथ्यात्मयोगी श्री पुष्कर मुनिजी म. के पास दीक्षा ग्रहण
श्री गीतेश मुनि जी म. की। आपका व्यावहारिक शिक्षण बी. कॉम तक हुआ। गृहस्थ आपश्री साहित्य मनीषी श्री गणेश मुनि जी शास्त्री के शिष्य हैं। अवस्था में आपने जैन सिद्धान्त प्रवेशिका परीक्षा में १00 में से । आपका स्वर मधुर तथा अध्ययनशील प्रवृत्ति के हैं। आपकी सेवा ९६ अंक प्राप्त कर बोर्ड में प्रथम स्थान प्राप्त किया था। दीक्षा लेने । भावना तथा साहित्य रूचि प्रशंसनीय है। आपका विशेष परिचय के बाद आपने परीक्षाएँ न देने का निर्णय किया।
यथा समय प्राप्त नहीं हो सका।
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