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इतिहास की अमर बेल
आपके जीवन में सद्गुणों का ऐसा मधुर संगम है जो देखते ही बनता है।
आपका जन्म राजस्थान के उदयपुर नगर में संवत् १९८१ मृगशीर्ष कृष्णा सप्तमी दिनांक १८ नवम्बर १९२४ को हुआ । आपके पिताश्री का नाम श्रीमान् जीवनसिंह जी बरडिया और माताजी का नाम श्रीमती प्रेमदेवी है। आपकी द्वितीया माता श्री तीजकुंवरबाई हैं जो दीक्षित होकर महासती प्रभावती जी म. के नाम से विश्रुत हुई आपके छोटे भाई का नाम धन्नालाल था जो दीक्षित होकर आज आचार्यसम्राट श्री देवेन्द्रमुनिजी म. के रूप में श्रमणसंघ की गरिमा में चार चाँद लगा रहे हैं।
पुरातन पुण्य के उदय से और तथाविध संस्कारों के कारण केवल तेरह वर्ष की वय में आपने वि. सं. १९९४ माघ शुक्ला त्रयोदशी दिनांक १२ फरवरी १९३८ को उदयपुर में परम् विदुषी महासती श्री सोहनकुंवर जी म. के पास दीक्षा अंगीकार कर ली। आपकी दीक्षा के पश्चात् आपके लघुभ्राता आचार्य श्री देवेन्द्र मुनिजी म. ने तथा मातेश्वरी प्रभावती जी ने भी संयम का मार्ग अपनाया। तत्पश्चात् ११ अन्य पारिवारिक जनों ने भी साधना के पथ पर कदम बढ़ाकर संयमी जीवन की महत्ता प्रदर्शित की।
पचास वर्ष पहले स्थानकवासी समाज में शिक्षा के प्रति विशेष लगाव नहीं था। खासकर स्त्री-शिक्षा के विषय में तो बहुत ही उपेक्षा का वातावरण था परन्तु युग दृष्टा महास्थविर श्री ताराचंद जी म. ने समय की गति को पहचाना और अपने शिष्य श्री पुष्कर मुनिजी म. को विद्वान बनाने की दिशा में प्रयास किया और उन्हीं की प्रेरणा से महासती श्री सोहनकुंवरजी म. ने अपनी शिष्याओं के लिए शिक्षण की व्यवस्था करवायी महासती श्री पुष्पवती जी और महासती श्री जी कुसुमवती जी का अभ्यास और शिक्षण एक योग्य विद्वान के मार्गदर्शन में हुआ उस काल में संस्कृत व्याकरण सीखने की परम्परा थी। तदनुसार आपने अपनी कुशाग्रबुद्धि से तत्कालीन क्वीन्स कालेज बनारस की सम्पूर्ण व्याकरण मध्यमा और सम्पूर्ण साहित्य मध्यमा की परीक्षाएँ उत्तीर्ण कीं । क्रमशः आपने हिन्दी साहित्य सम्मेलन प्रयाग की साहित्यरत्न परीक्षा भी उत्तीर्ण की। जैन सिद्धान्तों का ज्ञान करने हेतु आपने जैनागम और जैन साहित्य का अध्ययन किया और पाथर्डी धार्मिक परीक्षा बोर्ड की सर्वोच्च परीक्षा जैन सिद्धान्ताचार्य उत्तीर्ण की। इस प्रकार आपने व्याकरण, साहित्य और सिद्धान्त के क्षेत्र में अच्छी विद्वत्ता अर्जित कर ली।
आप एक विदुषी सती होने के साथ सुमधुर प्रवचनकर्त्री और सुलेखिका भी हैं। आपने दशवैकालकिसूत्र का संपादन भी किया है। आपकी लिखी हुई पुस्तकें इस प्रकार है, किनारे-किनारे, पुष्प पराग, सती का शाप, प्रभावती शतक, साधना सौरभ, फूल और भंवरा, कंचन और कसौटी, खोलो मन के द्वार आदि ।
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आपकी शिष्याएँ चार है-श्री चन्द्रावती जी, श्री प्रियदर्शना जी, श्री किरणप्रभा जी म. श्री रत्नज्योति जी।
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आपने राजस्थान, मध्य प्रदेश, गुजरात, महाराष्ट्र और कर्नाटक आदि प्रान्तों में विचरण कर जिनशासन की प्रभावना की है और धर्मजागृत्ति का संदेश दिया है।
अभी-अभी आपकी पचासवीं दीक्षा जयंती के अवसर पर आपको एक अभिनन्दन ग्रन्थ समर्पित किया गया है जो किसी श्रमणीरत्न को समर्पित किया गया सर्वप्रथम अभिनन्दन ग्रन्थ है। यह सन्मान सर्वप्रथम आपको ही प्राप्त हुआ है। श्री श्रीमती जी म.
आपका जन्म राजस्थान के उदयपुर जिले के अन्तर्गत गोगुन्दा में संवत् १९७७ भाद्रपद शुक्ला ५ को हुआ। आपके पिताश्री का नाम श्रीमान् देवीलाल जी सेठ और माता जी का नाम श्रीमती मोहनबाई था।
आपने उपाध्यायश्री पुष्कर मुनिजी म. को गुरु बनाया और महासती श्री प्रभावती जी म. के पास संवत् १९९९ जेठ कृष्णा ११ को प्रसिद्ध तीर्थ नाथद्वारा में दीक्षा ग्रहण की।
आपने जैन सिद्धान्त विशारद परीक्षा पाथर्डी बोर्ड से पास की। हिन्दी में प्रयाग साहित्य सम्मेलन से प्रथमा परीक्षा उत्तीर्ण की। संस्कृत में लघुसिद्धान्त कोमुदी का अध्ययन किया।
आपको संकेतलिपि का अच्छा अभ्यास है, राजस्थान और मध्य प्रदेश में आपका विचरण हुआ, प्रवचन शैली मधुर है।
श्री प्रेमवती जी म.
आपका जन्म झालावाड़ प्रदेश के झाड़ोल जिले के गाँव बागपुरा में हुआ। आपके पिताश्री का नाम श्रीमान् तेजपाल जी और माता जी का नाम श्रीमती फूलवती बहन है। आपके पति श्री लालचन्द जी पोरवाड़ थे।
आपने उपाध्यायप्रवर श्री पुष्कर मुनिजी म. को गुरु बनाकर परम विदुषी श्री प्रभावती जी म. के पास संवत् १९४६ उदयपुर में दीक्षा ग्रहण की।
आपके सुपुत्र हैं प्रसिद्ध साहित्यकार श्री गणेश मुनिजी जी शास्त्री |
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आपने नन्दीसूत्र, उत्तराध्ययन की वाचना ली है और अनेक थोकड़े कंठस्थ किए हैं, आपका राजस्थान और मध्य प्रदेश में विचरण होता रहा है।
आप सेवाभाविनी और शान्त स्वभाव वाली हैं।
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