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वाग देवता का दिव्य रूप
'दान' का विश्वकोष-जैनधर्म में दान : एक समीक्षा
-डॉ. राकेश गुप्त, डी. लिट. उपाध्याय पुष्कर मुनि कृत 'जैन धर्म में दान' नामक महनीय ग्रन्थ में अनेक दृष्टियों से 'दान' की व्याख्या की गई है। यह विवेचन और व्याख्या केवल जैनधर्म तक सीमित नहीं है, अपितु विद्वान लेखक ने हिन्दू, बौद्ध, सिख, इस्लाम और ईसाई आदि धर्मों के मान्य ग्रन्थों से उद्धरण देकर अपने कथन की पुष्टि की है, तथा देश-विदेश के इतिहास एवं साहित्य से विपुल आख्यानात्मक उदाहरण देकर दान के महत्त्व और स्वरूप को स्पष्ट किया है।
-संपादक
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_दान के अनेक दृष्टियों से भेद किए गए हैं। एक दृष्टि से दान । ब्राह्मण के दान के पुण्य के प्रभाव से उस स्थान पर लोटने वाले तीन प्रकार का होता है : (१) सात्त्विक, (२) राजस, (३) तामस। नेवले का आधा शरीर सोने का हो गया। युधिष्ठिर के राजसूय यज्ञ निःस्वार्थ भाव से दिया गया दान सात्त्विक है, जो सर्वोत्तम है। की महिमा सुनकर नेवला वहाँ पहुँचा। उस यज्ञ में लाखों व्यक्तियों किसी प्रयोजन से, यश, प्रसिद्धि अथवा कोई अन्य लाभ प्राप्त करने ने भोजन किया था तथा अपार संपत्ति दान में दी गई थी। जब उस के उद्देश्य से दिया गया दान राजस है। तिरस्कारपूर्वक कुपात्रों को स्थल पर लोटने से नेवले का शेष आधा शरीर सोने का न हुआ, दिया गया दान तामस की कोटि में आता है। इस प्रकार के दान को तो उसने अनेक सभ्य जनों से घिरे हुए युधिष्ठिर को सुनाकर निकृष्ट माना गया है, तथा इससे पुण्यलाभ भी नहीं होता।
कहा-"महाराज, इस यज्ञ में दिए गए आपके विपुल दान से उतना एक अन्य दृष्टि से दान के चार भेद किए गए हैं : (१)
भी पुण्य अर्जित नहीं हुआ, जितना एक ब्राह्मण के द्वारा दिए गए अभयदान, (२) अन्नदान, (३) औषधदान, (४) ज्ञानदान। इनमें ।
थोड़े-से सत्तू के दान से हुआ था।" इसी प्रकार सर्वस्व दान चाहने अभयदान को सर्वोत्तम माना गया है। संसार के इतिहास और ।
वाले महात्मा बुद्ध के शिष्य अनाथपिण्ड ने समृद्धशालियों द्वारा दिए साहित्य में ऐसे अनेक आख्यान भरे पड़े हैं, जिनमें अभयदान देने
गए बहुमूल्य रत्नों के दान की उपेक्षा करके एक महादरिद्र किन्तु DOD वालों ने अपने प्राणों का मोह छोड़कर शरणागत की रक्षा की है।
भावनाशील महिला से उसके एक मात्र वस्त्र का दान-सर्वस्वदान प्रस्तुत ग्रंथ में इस प्रसंग में उद्धृत अनेक आख्यानों में से संत
आदरपूर्वक स्वीकार किया। महानाम से संबंधित प्रसंग अत्यन्त मार्मिक है। श्रावस्ती का राजा मनीषी लेखक ने दान से प्राप्त होने वाले लाभों का विस्तार से विडुडभ प्रतिशोध की अग्नि में जलता हुआ कपिलवस्तु का सर्वनाश वर्णन किया है। दान एक वशीकरण मंत्र है, दान से शत्रु भी मित्र करने को उद्यत था। संत महानाम, जो विडुडभ के गुरु भी रह चुके | बन जाता है, दान से जिस दिव्य आनंद की अनुभूति होती है, वह ' थे, जब समझाने-बुझाने से उसे न रोक सके, तब उन्होंने विडुडभ शब्दातीत है। अपने प्रत्येक कथन को लेखक ने प्रामाणिक आख्यानों का यह प्रस्ताव स्वीकार कर लिया-"इस तालाब में आप जितनी द्वारा पुष्ट किया है। दान से कैसे आनंद-लाभ होता है, इसे लेखक देर तक डुबकी मारे रहेंगे उतनी देर तक मैं कत्लेआम बन्द । ने एक अद्भुत किन्तु मर्मस्पर्शी घटना का उल्लेख करके रूपायित रलूँगा।" राजा ने सोचा था, आखिर पानी में ये कितनी देर तक किया है : एक अतुल संपत्तिवाला व्यक्ति महाकृपण था। उसके एक साँस रोक सकेंगे, पर महामानव संत ने कपिलवस्तु का विनाश परम मित्र ने, जो दुष्काल-पीड़ितों के लिए चंदा एकत्र कर रहा था, रोकने के लिए जल में चिर-समाधि ले ली।
लौटाने का वायदा करके केवल एक दिन के लिए उससे दस सहस्र 'अभिधान राजेन्द्र कोष' को उद्धृत करते हुए मुनिवर ने
| रूपयों का एक चैक माँग लिया, तथा प्रतिष्ठित व्यक्तियों की सभा न्यायोपार्जित पदार्थ के दान को, यदि वह योग्य पात्र को दिया गया
में उस चैक को दिखाकर बहुत-सा चन्दा एकत्र कर लिया। दूसरे हो,'महादान' की संज्ञा दी है। दान का महत्त्व दी गई वस्तु के
दिन जब वह परोपकारी व्यक्ति वायदे के अनुसार अपने मित्र को परिमाण अथवा मूल्य से नहीं होता, अपितु देने वाले की ।
चैक लौटाने गया, तो वह उसकी बात सुनकर दंग रह गया। उसने त्याग-भावना से होता है। दृष्टान्त-स्वरूप उद्धृत अनेक उपाख्यानों
कहा था-"आज तक मैंने दान की महिमा नहीं जानी थी। कल में से महाभारत की नेवले और युधिष्ठिर की कथा अत्यन्त रोचक
संध्या से रात तक मुझे बधाई देने वालों तथा मेरी प्रशंसा करने एवं शिक्षाप्रद है। दुष्काल के समय एक सप्ताह के उपवास के बाद
वालों का तांता लगा रहा। इससे मुझे जो आनंद प्राप्त हुआ उसकी चार प्राणियों के एक ब्राह्मण परिवार को कहीं से थोड़ा-सा सत्तू
मैंने कभी कल्पना भी नहीं की थी। तुम दुःखी जनता की सहायता प्राप्त हो गया। खाने बैठे ही थे कि एक क्षुधार्त अतिथि द्वार पर
के लिए मुझसे दस हजार का एक चैक और ले जाओ।" दिखाई दिया। ब्राह्मण परिवार के सभी सदस्यों ने प्रसन्नतापूर्वक धन की तीन गतियाँ मानी गई हैं-(१) भोग, (२) दान, (३) अपने-अपने हिस्से का सत्तू देकर उस अतिथि को तृप्त किया। उस / नाश। संयमित भोग में सीमित धन ही व्यय होता है। असंयम से म
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