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किया गया भोग रोग और क्लेश का कारण बनता है। संयमित भोग के उपरांत बचे हुए धन का दान करना ही श्रेयस्कर है। कृपण का धन अंत में नाश की गति प्राप्त करता है।
संक्षेप में इतना कहना पर्याप्त होगा कि दान के जितने भी रूप और प्रकार हैं, जितनी भी व्याख्याएँ हैं, उन सबका सरल-सुबोध भाषा में इस आकर ग्रंथ में विवेचन किया गया है। दान के संबंध में जहाँ भी, जो कुछ भी कहा गया है, वह सब यहाँ उपलब्ध है। चाहे वह आर्ष ग्रंथों की वाणी हो, चाहे वह कबीर, तुलसी एवं रहीम जैसे सिद्ध कवियों की अनुभव पुष्ट उक्ति हो, और चाहे वह दान की महिमा को प्रतिबिंबित करती कोई घटना अथवा कथा हो,
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उपाध्याय श्री पुष्कर मुनि स्मृति ग्रन्थ
उस सबका आकलन इस दान मंजूषा में बड़े अध्यवसाय एवं विवेक के साथ किया गया है। इसे दान का विश्वकोश भी कह सकते हैं तथा एक उच्चस्तरीय शोध प्रबंध भी इसके अनुशीलन से केवल सामान्य पाठकों को ही नहीं, अपितु प्रबुद्ध एवं संवेदनशील सहृदयों को भी सत्प्रेरणा प्राप्त होगी तथा इस आकाशदीप का आलोक उनकी गंतव्य दिशा निर्दिष्ट करने में समर्थ होगा। एवमस्तु ।
- राकेश गुप्त
३९८, सर्वोदय नगर, सासनी गेट, अलीगढ़-२०२ ००१
मौका मिल गया
अब तू कर ले धर्म काम। तुझे मौका मिल गया। रट लेना प्रभु नाम। तुझे मौका मिल गया ।। र ।।
पाप करता खूब और सुख फिर चाहता है। धर्म और धर्मी के तू पास नहीं जाता है। अब कर लेना प्रणाम तुझे मौका मिल गया ||१||
खुद के घर को आग लगाकर, खुद पछतायेगा। क्रोध मान माया में तू फँस दुःख पायेगा ॥ पा ले सुख का अब धाम तुझे मौका मिल गया ॥ २ ॥
बदियों में झूम-झूम जुल्म तू कमाता है । भलाई को छोड़ कर दीनों को सताता है। होता जग में तू बदनाम । तुझे मौका मिल गया ॥ ३ ॥
जीवन में सुगन्ध भर लो महावीर के प्यार की। प्रीति तुझे छोड़ना है झूठे इस संसार की ॥ "पुष्कर" पाना सुख धाम । तुझे मौका मिल गया ॥ ४ ॥
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Kanda
- उपाध्याय श्री पुष्कर मुनि (पुष्कर- पीयूष से)
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