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| वागू देवता का दिव्य रूप
३६५ इसके अतिरिक्त नमाज पढ़ते समय 'अल् फातिहा' पढ़ा (मन ही मन उच्चारण) करने से जो व्यक्ति की रक्षा करता है, वह जाता है
मंत्र है। सामान्य व्यक्ति मंत्र-शब्द का यही अर्थ समझता है जो कुछ "ईयाक न अबुदु व ईयाक नस्तई न।
विशिष्ट प्रभावशाली शब्दों द्वारा निर्मित किया हुआ वाक्य होता है,
वह मंत्र कहलाता है। उस एक मंत्रवाक्य का बार-बार जाप करने इहादिनस् सिरातल् मुस्तकीम।
पर शब्दों के पारस्परिक संघर्षण तथा पुनरावर्तन से वातावरण में सिरातल् लज़ीन अन् अम्त अलैहिम;
एक प्रकार की विद्युत् तरंगें पैदा होने लगती हैं, जिनसे मंत्र-साधक POR गरिल मगजूबे, अलैहिम वलज्जु आल्लीन।"
की अभीष्ट-भावनाओं को बल मिलने लगता है। फिर वह जिस अर्थात् हम तुम्हारी ही आराधना करते हैं और तुमसे ही मदद
कार्य के लिए मंत्रप्रयोग करता है, प्रायः वह अभीष्ट कार्य सफल माँगते हैं। ले चलो हमको सीधी राह पर उन लोगों की राह, जिन
होता दृष्टिगोचर होता है। पर तुम्हारा कृपाप्रसाद उतरा है; उनके रास्ते नहीं, जिन पर तुम्हारी ___मंत्रों के साथ-साथ यंत्रों और तंत्रों का भी विकास हुआ। कुछ
Rece नाराजी हुई है, या जो मार्ग भूले हुए हैं।
विद्याओं का भी आविष्कार हुआ। सभी धर्मों के महामनीषी ईसाई धर्म का मंत्र, जहाँ तक हम समझे हैं, वह है
आचार्यों, विद्वानों एवं साधकों ने मानवजीवन को समृद्ध, सुखी,
सुरक्षित एवं शान्तिमय बनाने के लिए विभिन्न प्रयत्न किये। मंत्र, 'Love is God. God is Love.
विद्या, यंत्र एवं तंत्र उसी के विभिन्न पहलू हैं, जिनके आविष्कार, शद्ध प्रेम ही परमात्मा है, परमात्मा का दूसरा नाम शुद्ध । साधना एवं विकास के लिए उन्होंने अतीव उत्साह और लगन से प्रेम है।
इस दिशा में प्रयत्न किया। पारसी (जरथोस्ती) धर्म का मूल मंत्र, जहाँ तक हम समझे हैं, तोपकार के मंत्र और उनका प्रभाव वह है
जैनाचार्य कुन्दकुन्द ने दो प्रकार के मंत्रों का प्रतिपादन किया "मज़दा अत मोइ बहिश्ता, सवा ओस्चा श्योथनाचा व ओचा।
है-एक सिद्धमंत्र और दूसरा साधितमंत्र। पठन मात्र से जो मंत्र ता-तू बहू मनंधहा, अशाचा इषुदेय फेरणेम।
सिद्ध हो जाता है उसे सिद्ध मंत्र कहते हैं, जबकि जो विद्या (मंत्र) वसना हइ श्येम् दाओ अहूम्॥"
साधित होने पर सिद्ध होती है, उसे साधित मंत्र कहते हैं। अर्थात् “ये अहोरमज्द ! सर्वोत्तम दीन (धर्म) के कलाम मंत्र शब्द के गर्भ में मनन की व्याप्ति है। मंत्र अन्तर्जीवन में (शब्द) और कायों के बारे में मुझसे कह, ताकि मैं नेकी के रास्ते सन्निहित असीम शक्ति को प्रकट करने हेतु एकाग्रतापूर्वक बार-बार डट रह कर तेरी महिमा का गान करूँ। तू जिस तरह चाहे उस तरह मनन-आवर्तन करने से सफल होता है, सिद्ध होता है। मंत्र में शब्द, मुझे आगे चला। मेरी जिंदगी को ताज़गी बख्श और मुझे स्वर्ग का शब्द के मूल अक्षर, बीजाक्षर तथा गंभीर चिन्तन एवं दृढ़
। सुख दे।" वास्तव में यह प्रार्थनात्मक मंत्र भी समर्पणवृत्ति का संकल्पपूर्वक उच्चारण का उपक्रम, जब वृद्धिंगत या विकसित होता द्योतक है। ये तीनों धर्म-सम्प्रदाय परमात्मा के प्रति समर्पण एवं है, तभी अतल मननात्मक गहराई का परिणाम स्पष्टतया परिलक्षित शरणागति स्वीकार करके नैतिक जीवन की राह पर चलने की होता है। प्रेरणा देने वाले हैं।
लोकव्यवहार में भी शब्दों का प्रभाव देखा जाता है। मजदूरों के वास्तव में, मंत्रों में अचिन्त्य शक्ति है। उनसे अप्रत्याशित रूप । संगठन के लिए जब 'मजदूरो! एक हो जाओ', इस प्रकार के से कार्य सिद्ध होते हैं। अनेक कष्ट-साध्य कार्य मंत्रों द्वारा आसानी सूत्रात्मक शब्दों का प्रयोग होता है, जिन्हें हम लौकिक मंत्र कह से सिद्ध किये जा सकते हैं, बशर्ते कि विधि, श्रद्धाभक्ति, एकाग्रता सकते हैं। उनका भी अचूक प्रभाव देखा जाता है, तो इन बीजाक्षरों
be और प्रबल उत्कण्ठा तथा उत्साह हो। मंत्रसाधक को अनेक की अचिन्त्य शक्ति से युक्त मंत्रों का प्रभाव क्यों नहीं हो सकता है ? सिद्धियाँ, उपलब्धियाँ, लब्धियाँ तथा शक्तियाँ अमुक-अमुक मंत्रों से
शब्दों की शक्ति से अद्भुत और आश्चर्यजनक कार्य 165666 प्राप्त होती हैं।
शब्द की शक्ति अगाध होती है। उसी ध्वनितरंगें बंद पड़े मंत्र शब्द का अर्थ, भावार्थ और शक्ति सम्पन्नता
दरवाजों को खोल देती हैं। कलकत्ता में बिडला म्युजियम में एक ‘मत्रि गुप्त परिभाषणे' धातु से मंत्र शब्द निष्पन्न हुआ है। गुप्त । ऐसा कमरा है, जो आवाज करने से खुल जाता है और पुनः दूसरी परिभाषण, पठन, मननपूर्वक उच्चारण अर्थ में ‘मत्रि' क्रिया है। आवाज करने से बंद हो जाता है। इसी प्रकार आवाज करने से अर्थात्-जो विद्या या जो रहस्यमयी विधि प्रच्छन्न रूप से अनुष्ठित की जाय, उसे मंत्र कहते हैं। व्याकरण के आचार्यों ने इसकी १. 'सिद्धे पठिदे मंते' -मूलाधार ६/३८, 'विज्जा साधितसिद्धा' व्युत्पत्ति की है-“मननात् त्रायते इति मंत्रः", मनन चिन्तन-जपन
1 -वही ६/३८ (आचार्य कुन्दकुन्द)
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