________________
तारण
190908600
वाग् देवता का दिव्य रूप
३९५ सहभावी ज्ञान ही सम्यग्ज्ञान कहलाता है। सम्यग्दर्शन से परिपूत साधना का मूल स्त्रोत : सत्य, अस्तेय का विराट रूप, ब्रह्मचर्य ज्ञान आत्मा में हेय-उपादेय का विवेक जागृत करता है, आत्मा की। की शक्ति और साधना का सौन्दर्यः अपरिग्रह शीर्षकों से तत्संबंधी PHORS कल्मष-कालिमा को दूर करता है और आत्मा को ज्योतिर्मय । विषय का प्रतिपादन किया गया है। यद्यपि आकार की दृष्टि से ये Pased बनाता है।
प्रवचन अधिक विस्तार नहीं पा सके हैं किन्तु विषयवस्तु की दृष्टि ज्ञान की तरंगें प्रवचन में विविधता का कारण, ज्ञान के
से इनमें कहीं भी कमी दिखाई नहीं देती है। पाठक विषय को विभाग, क्रम मीमांसा, मति श्रुत में समानता, पौर्वापर्य, अवधि और
भली-भाँति समझ सकता है और वह उन पर चिन्तन-मनन भी कर मनःपर्याय में समानता, मनःपर्याय और केवल में समानता तथा
सकता है। अनेक बातें, उपशीर्षकों के माध्यम से विषय निरूपण किया गया कुल मिलाकर यह प्रवचन संग्रह व्यावहारिक और सैद्धांतिक है। यहां प्रवचनकार ने गागर में सागर भरने का प्रयास किया है। धरातल पर आधृत है। प्रथम खण्ड में जितने प्रवचन संग्रहीत हैं इस प्रयास में उन्हें सफलता भी मिली है।
उनका संबंध व्यावहारिक जीवन से है तो दूसरे खण्ड के प्रवचन
Fo290 ज्ञानक्रियाभ्यां मोक्षः यह बहुश्रुत और बहुप्रचारित कथन है।
व्यावहारिक होते हुए सैद्धांतिक हैं। सबसे प्रमुख बात जो इन
प्रवचनों के संबंध में कही जा सकती है, वह यह है कि इनमें इसी शीर्षक से प्रवचन दिया गया है। इस प्रवचन में ज्ञान और
प्रवचनकार ने मानवीय मूल्यों पर अधिक जोर दिया है। इस बात क्रिया पर विचार प्रकट किए गए हैं। अंत में बताया गया है कि
से सभी परिचित हैं कि वर्तमान युग में मानवीय मूल्यों का बहुत दोनों एक दूसरे के पूरक हैं। इसे प्रवचनकार ने मोक्ष का राजमार्ग
अधिक हास हो चुका है और दिन प्रतिदिन होता ही जा रहा है। ET बताया है।
ऐसी स्थिति में समाज का अंत कहाँ होगा कुछ कहा नहीं जा प्रकाश की किरणें शीर्षकान्तर्गत मतिज्ञान, श्रुतज्ञान, सकता। आज आवश्यकता है समाज को गिरते हुए मानवीय मूल्यों अवधिज्ञान, मनःपर्यायज्ञान, केवलज्ञान पर प्रकाश डाला गया है। के प्रति सचेत करने की। यह कार्य आम नागरिक के स्थान पर धर्म इस प्रकार सम्यग्ज्ञान पर अपना प्रवचन समाप्त कर प्रवचनकार ने नेता भलीभाँति कर सकते हैं। प्रवचनकार पूज्य गुरुदेव उपाध्यायश्री सम्यक्चारित्र का निरूपण आरंभ किया और अगला प्रवचन इसी । पुष्कर मुनि जी म. ने अपने इन प्रवचनों के माध्यम से समाज पर शीर्षक से किया है। इस प्रवचन के आरम्भ में सम्यक् चारित्र का उपकार तो किया है किन्तु यह समाज पर निर्भर करता है कि वह महत्व बताया गया है। उसके पश्चात् सम्यक् चारित्र से संबंधित । इनसे कितना लाभ उठावे। लगभग अठारह वर्ष पूर्व प्रकाशित ये अन्य बातों का निरूपण किया गया है।
प्रवचन आज भी प्रासंगिक हैं। ऐसे प्रवचनों का समाज में अधिक से "जिन्दगी के हीरे"-प्रवचन में मार्गानुसारी गुणों का विवरण }
अधिक प्रचार प्रसार अपेक्षित है। देते हुए दुर्व्यसनों का परिचय दिया है तथा इन दुर्व्यसनों से दूर सभी प्रवचनों की भाषा प्रांजल है। कहीं पर भी दुरूहता का रहने की सलाह दी गई है। यह भी स्पष्ट किया है कि इन सात आभास नहीं होता। सरलता, सहजता और सुबोधता के कारण दुर्व्यसनों का त्यागी ही गृहस्थ-धर्म का पात्र बनता है। अतः लौकिक
सामान्य पाठक के लिए भी उपयोगी हैं। उपदेशपरक शैली होने और लोकोत्तर दोनों दृष्टियों से इनसे बचना चाहिए।
और बीच-बीच में विभिन्न दृष्टान्त कथाओं के विवरण होने से इनमें
रोचकता आ गई है। ऐसे में पाठक के ऊबने का प्रश्न ही उपस्थित मार्गानुसारी गुणों को जिन्दगी के हीरे निरूपित किया है, जो
नहीं होता। यदि इन प्रवचनों से समाज के कुछ व्यक्ति भी अपने जिन्दगी को चमकाते हैं, बहुमूल्य बनाते हैं। इसलिए सद्गुणों को
जीवन में परिवर्तन ला सके तो प्रवचनकार का परिश्रम सार्थक हो ग्रहण कर जीवन को सुखमय, मंगलमय बनाने पर बल दिया
जाएगा। गया है।
यहाँ एक बात कहना अप्रासंगिक नहीं होगा वह यह कि पूज्य "श्रावक-धर्म" शीर्षकान्तर्गत प्रवचन में श्रावक के लिए।
गुरुदेव उपाध्यायश्री पुष्कर मुनि जी म. सा. के इस प्रवचन संग्रह आवश्यक बारह व्रतों में पाँच अणुव्रत, तीन गुणव्रत और चार
के अतिरिक्त और भी प्रवचन संग्रह प्रकाशित हुए हैं। उनके सभी शिक्षाव्रतों का निरूपण किया गया है। श्रावक धर्म की चर्चा करने
प्रवचन संग्रहों में दृष्टान्त कथायें हैं। ये दृष्टान्त कथायें मानवीय के पश्चात् श्रमण-धर्म पर भी विचार किया गया है।
मूल्यों को बढ़ावा देने वाली हैं। यदि उनके सभी प्रवचन संग्रहों की अहिंसा को धर्म की रीढ़ बताया गया है, अगले प्रवचन में। दृष्टान्त कथाओं का संकलन कर स्वतंत्र कथा संग्रह के रूप में
। अहिंसा पर जितना भी लिखा जावे, वह कम ही है। इस प्रवचन में प्रकाशन किया जाता है तो वह संग्रह निश्चय ही समाज के लिए, प्रवचनकार ने अहिंसा के भक्तों और अनुयायियों से अहिंसक विशेषकर नवयुवक वर्ग के लिए उपयोगी होगा। विश्वास है, मेरे वातावरण के निर्माण में पूर्ण रूप से सहयोग करने की अपील इस कथन पर गंभीरता से विचार कर क्रियान्वित करने की दिशा की है।
में आवश्यक पहल की जावेगी। कृत्यलम्।
olain Education internationakos
DODARDED
h
d sekacee
Need.000000000 D EDODOODOODS
0665ww.jaifieliterary.org
DEEDS