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जप से उद्भूत सूक्ष्म विचार तरंगें स्वयं को तथा समस्त प्राणियों को प्रभावित करती हैं
निष्कर्ष यह है कि मंत्रजप के पुनरावर्तन से उत्पन्न होने वाली सूक्ष्म विचार-तरंगों की यात्रा भी इसी प्रकार प्रारंभ होती है। वे अपने सजातीयों को प्रभावित व आकर्षित करके उनकी शक्तियों और अनुभूतियों के अनुदान लेकर वापस लौटती है तथा अपनी चैतन्य विशेषताओं से साधक की शक्ति और क्षमता को भी कई गुनी बढ़ा देती हैं। प्रकृति का नियम है-सजातीयों का एकत्रीकरण होना पृथ्वी के गर्भ में स्थित खदानें इसी सिद्धांत पर बनती और बढ़ती चली जाती हैं। यह देखा गया है कि अमुक स्थान पर एकत्रित खनिज पदार्थ अपने में एक संयुक्त चुम्बकत्व उत्पन्न करते हैं। उस आकर्षण का प्रभाव जितनी दूर के क्षेत्र तक में होता है, वहां से उस जाति के बिखरे हुए कण खिंचते चले आते हैं। जितनी बड़ी व समृद्ध खान होती है, उतना ही सशक्त उसका चुम्बकत्व होता है, फिर उतने ही सुदूर क्षेत्र तक उसकी आकर्षण प्रक्रिया होती है। धातु आदि की खानों के अपना कद व आकार बढ़ाते रहने का यही अचूक आधार है। मंत्रजाप की प्रक्रिया का भी यही आधार है। इस प्रक्रिया के अनुसार मनुष्य अपनी विचार-सम्पदा से जहां असंख्य प्राणियों और पदार्थों को लाभान्वित करता है, वहां उनसे स्वयं भी बहुत कुछ लाभान्वित होता है अशुभ विचारों के साथ भी यही प्रक्रिया लागू होती है वे दूसरों को भी हानि पहुँचाते हैं, किन्तु वापस लौटने पर उनकी परिवर्द्धित घातक शक्ति की हानि स्वयं को ही अधिक भुगतनी पड़ती है।
रेडियो प्रसारणों की तरह तरंगों से विचार प्रसारण
रेडियो प्रसारण के उदाहरण से इसे भलीभांति समझा जा सकता है रेडियो प्रसारणों में एक साधारण-सी आवाज को विश्वव्यापी बना देने तथा उसकी असामान्य गति बढ़ा देने में इलकेक्ट्रोमैगनेटिक तरंगों का ही हाथ होता है। पदार्थ विज्ञानविशेषज्ञ जानते हैं कि इलेक्ट्रो-मैगनेटिकवैक्स पर साउण्ड को सुपर इम्पोज कर लिया जाता है। फलतः एक क्षण में वे सारे विश्व की परिक्रमा कर लेने जितनी शक्ति प्राप्त कर लेती है। इन्हीं शक्तिशाली तरंगों के माध्यम से अंतरिक्ष में भेजे गए राकेटों की गतिविधि को धरती पर से नियंत्रित करने उन्हें दिशा-दर्शन करने तथा उनकी यांत्रिक खराबी दूर करने का प्रयोजन पूर्ण किया जाता है। सुपरसोनिक स्तर की तरंगों का मंत्रजप प्रक्रिया के द्वारा उत्पादन और समन्वय होता है। मंत्र जप के समय उच्चारण किए गए शब्द एवं उसके साथ श्रद्धा, निष्ठा तथा संकल्प के संयोग से वही क्रिया उत्पन्न होती है, जो रेडियो स्टेशन पर प्रसारण करते समय बोले गए शब्दों में होती है। कुछ ही क्षणों में वे शक्तिशाली होकर समस्त भूमण्डल पर प्रसारण का उद्देश्य पूरा करते हैं।
रेडियो स्टेशनों से प्रसारण आदि से निजी लाभ नहीं
रेडियो स्टेशनों से प्रसारण तो होता है, परन्तु स्थानीय स्तर पर
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उपाध्याय श्री पुष्कर मुनि स्मृति ग्रन्थ उसकी कोई विलक्षणता नहीं दिखाई देती। लेझर किरणें फेंकने वाले यंत्रों में भी कोई प्रभाव नहीं देखा जाता। वे उन स्थानों को ही प्रभावित करती हैं, जहां उनकी आघात लक्ष्य होता है किन्तु जपयोग की प्रक्रिया के साथ ऐसी बात नहीं है। जपयोग से केवल समस्त संसार का वातावरण ही प्रभावित नहीं होता, अपितु साधक का अपना व्यक्तित्व भी प्रभावित, परिष्कृत और परिवर्तित होता है अर्थात् जपयोग में व्यापक वातावरण और जपकर्ता दोनों को प्रभावित करने की दुहरी सामर्थ्य है होना चाहिए उपयोग के साथ जुड़ी उपर्युक्त मर्यादाओं और वैज्ञानिक विधिविधानों का पालन किसका जप किया जाए?
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अब प्रश्न होता है कि जपयोग का साधक जप किसका करें ? वैसे तो जप करने के लिए कई श्रेष्ठ मंत्र हैं, कई पद हैं, कई श्लोक और गाथाएं हैं। जैन धर्म में सर्वश्रेष्ठ महामंत्र पंचपरमेष्ठी नमस्कार मंत्र है। वैदिक धर्म में गायत्री मंत्र को सर्वश्रेष्ठ समझा जाता है। एक बात मंत्र का चयन करते समय अवश्य ध्यान में रखनी चाहिए।
मंत्रों में अर्थ का नहीं, ध्वनि विज्ञान का महत्व है
मंत्रों में उनके अर्थ का उतना महत्व नहीं होता, जितना कि ध्वनिविज्ञान का अर्थ की दृष्टि से नवकार महामंत्र या गायत्री मंत्र सामान्य लगेगा, परन्तु सामर्थ्य की दृष्टि से अद्भुत और सर्वोपरि हैं ये । इसका कारण यह है कि मंत्र स्रष्टा वीतराग की दृष्टि में अर्थ का इतना महत्व नहीं रहा, जितना शब्दों का गुंथन महत्वपूर्ण रहा है। कितने ही बीजमंत्र ऐसे हैं, जिनका कोई विशिष्ट अर्थ नहीं निकलता, परन्तु वे सामर्थ्य की दृष्टि से विलक्षण है "ही" "श्री" "क्ली" ब्लू, ऐ, हूं, यं फट् इत्यादि बीज मंत्रों का अर्थ समझने की माथापच्ची करने पर भी सफलता नहीं मिलती, क्योंकि उनका मंत्र के साथ सृजन यह बात ध्यान में रखकर किया गया है कि उनका उच्चारण किस स्तर का तथा कितनी सामर्थ्य का शक्तिकम्पन उत्पन्न करता है, एवं जपकर्ता, अभीष्ट प्रयोजन और समीपवर्ती वातावरण पर उसका क्या प्रभाव पड़ता है ?
जपकर्ता की योग्यता, जपविधि और सावधानी
बीजमंत्रों का तथा अन्य मंत्रों का जाप करने से पूर्व इन तथ्यों पर अवश्य ही ध्यान देना चाहिए। दूसरी बात यह है कि जप द्वारा किसी मंत्र को सिद्ध करने के लिए उसकी मंत्रस्रष्टा द्वारा बताई गई विधि पर पूरा धान देना चाहिए। कई विशिष्ट मंत्रों की जप साधना करने के साथ मंत्रजपकर्ता की योग्यता का भी उल्लेख किया गया है कि मंत्रजपकर्ता भूमिशयन करे, ब्रह्मचर्य का पालन करे, सत्यभाषण करे, असत्य व्यवहार न करे, मंत्रजाप के दौरान किसी से वाद-विवाद, कलह, झगड़ा न करे, कषाय उपशान्त रखे, मंत्र के प्रति पूर्ण श्रद्धा-निष्ठा रखे, आदर के साथ निरन्तर नियमित रूप से जाप करे। एक बात जप करने वाले व्यक्ति को यह भी ध्यान में
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2008 18.00
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