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३२५ ।
वाग् देवता का दिव्य रूप
३२५ । वाणिज्य मन्त्री चारों अन्धों को यथास्थान भेजकर स्वयं अपने सोचते-सोचते राजा ने एक योजना सोच ली। राजा को चैन आवास पर चला गया।
मिला और उसे नींद आ गई। सबेरे दरबार में पहुँचा और एक
राजसेवक को आदेश दियाकिसी देश का एक राजा था। राजा के एक रानी थी। रानी
"नगर में घोषणा कर दो कि शाम तक जिसका माल बाजार सुन्दर थी और बड़े राजा की बेटी थी। राजा से प्रेम करती थी
में नहीं बिकेगा, उसका माल राज्य की ओर से खरीद लिया और सुशीला स्त्री की तरह पति की सेवा भी करती थी। राजा भी
जायेगा।" रानी को खूब चाहता था। राजा की माता भी जीवित थी। राजा राजा की इस घोषणा से महामात्य को आश्चर्य हुआ और दुःख अच्छा था। बहादुर भी था। मातृभक्त भी था और प्रजावत्सल भी। भी। महामन्त्री का कर्तव्य राजा को गलत रास्ते से हटाना होता ही राजा अपनी प्रजा का बहुत ख्याल रखता था और इसीलिए रात है। राजा अपने लिए नहीं होता, प्रजा के लिए होता है। यदि को वेश बदलकर नगर में घूमा करता था और अपनी प्रजा के । भावावेश में या भावुकतापूर्ण उदारता में आकर राजा कोई गलत दु:ख-दर्द का पता लगाया करता था।
घोषणा कर दे तो राज्य कितने दिन चलेगा? यही सब बातें एक बार रात को राजा अपने नगर में घूम रहा था। एक घर
सोचकर महामात्य ने राजा से कहामें स्त्री-पुरुष बातें कर रहे थे। एक आड़ में खड़े होकर राजा "राजन्! इस घोषणा से तो हमारी अर्थव्यवस्था बिगड़ उनकी बातें सुनने लगा। स्त्री पुरुष से कह रही थी
जायेगी।" "तो फिर तुम आज कुछ भी नहीं लाये? आज रात को भूखे "कैसे?" राजा ने पूछा। ही सोना पड़ेगा?"
मन्त्री ने बतायालाचार होकर पुरुष ने कहा
"इस घोषणा को सुनकर बहुत-से व्यापारी व्यर्थ का माल भी "क्या करूँ भामिनी! माल बिका ही नहीं। शाम तक बैठा रहा, बाजार में ले आयेंगे। अनबिका माल खरीदते-खरीदते राजकोष कोई भी खरीदार नहीं आया। अब तो कल ही बिक पायेगा।" खाली हो जायेगा और माल पड़ा रहेगा।" स्त्री ने निराशा के स्वर में कहा
पुराने समय में हर विभाग के मन्त्री कम होते थे। एक "कल का भी क्या भरोसा? बिके-न-बिके।"
महामात्य ही बहुत-से विभाग सम्हाल लेता था। इस राजा का अर्थ
विभाग भी महामात्य के अधीन था। महामात्य की टिप्पणी सुनकर "यह भी तू ठीक कहती है। मौत और ग्राहक का कोई समय
राजा चुप हो गया। मन्त्री को लगा कि मेरी बात का प्रभाव हुआ नहीं। जब चाहे, तब आये और जब न चाहे, न आये।"
है, अतः उसने पुनः कहास्त्री बोली
"राजन् ! एक बात यह भी होगी कि विक्रेता अधिक-से-अधिक "हमारे राजा के राज्य में सब सुख हैं, पर हम जैसे मूल्य पर माल बेचने का प्रयास करेंगे, क्योंकि न बिकने पर तो चल-विक्रेताओं के लिए कोई प्रबन्ध नहीं। हमारी तरह न जाने । आपकी ओर से खरीद ही लिया जायेगा।" कितने लोग शाम को निराश लौटते होंगे।"
राजा ने महामात्य के विचारों का सम्मान किया और कहाएक निःश्वास छोड़ते हुए पुरुष ने इतना और कहा
“महामन्त्री! एक रात एक घर में हमने जो बातचीत सुनी, वह "हमारी तो कोई बात नहीं। पानी पीकर ही सो जायेंगे। हमसे सुनी नहीं गई। प्रजा का दुःख हम से नहीं देखा जाता। यह परेशानी तो बाल-बच्चों बालों की है।"
घोषणा तो हमें करनी ही थी। घोषणा तो हो चुकी। अब ऐसा उपाय राजा उनकी बातें सुनते ही महल तो लौट आया। लेकिन नींद ।
करो कि राज्य की अर्थव्यवस्था भी न बिगड़े और प्रजा का यह उसे कैसे आती? मन बेचैन था। चैन का दूसरा नाम ही तो नींद है। दुःख भी दूर हो जाए कि उसका माल अनबिका न रहे।" राजा सोच रहा था- 'मेरे नगर में स्थायी और अचल दुकानों के ____ महामात्य ने वाणिज्य सचिव के साथ मन्त्रणा की। चीजों के बाजार हैं। उनकी तो कोई बात नहीं। पर चल विक्रेता-फेरी वाले दाम प्रायः निश्चित कर दिये गये। राज्य की ओर से दो विभाग दुकानदार अपना माल लेकर विविधा वीथी (General Market) और खोले गये। एक क्रय-विभाग और दूसरा विक्रय-विभाग। शाम में बैठते हैं, वे अगर अपना माल बिना बिके ही वापिस लेकर लौटें तक जो चीजें नहीं बिकती थीं, वे राजा के क्रय-विभाग द्वारा खरीद । तो बड़ी परेशानी होती है, उन्हें। इनके लिए इनके लिए क्या, सभी ली जाती थीं और वे सभी चीजें कभी-न-कभी विक्रय विभाग द्वारा विक्रेताओं के लिए, मैं कल ही कोई-न-कोई प्रबन्ध करूँगा।" बेच दी जातीं।
असा उपाय
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