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} वाग् देवता का दिव्य रूप राजमाता ने करुण-गम्भीर होकर कहा
"तुम सभी भाई एक से बढ़कर एक हो। तुम चारों पर करोड़ों "बेटा! अगर ऐसी बात है तो मैं तुझे सब कुछ बताती हूँ।
सुदृष्टि वाले न्यौछावर हैं। आखिर तुमने कैसे जाना कि मैं तेली का DDA राजमहल के नीचे एक तेली परिवार रहता था। उस घर की गृहिणी
पुत्र हूँ।" तेलिन से मेरा मेल-जोल हो गया। मैं और वह तेलिन एक साथ अन्तारमण ने बतायागर्भवती थीं। मुझे पुत्र की चाह थी। मैंने तेलिन से कहा-बहन! "राजन्! एक सुशासक के सभी गुण आप में हैं, पर क्षत्रिय अगर मेरे पुत्र हो तो कोई बात नहीं। अगर तेरे पुत्र और मेरे पुत्री वंश जनित सहज उदारता का आप में सर्वथा अभाव है। हम चारों हो तो बदला कर लेना। अपना पुत्र मुझे दे देना और मेरी पुत्री तू भाइयों के गुणों पर आप रीझे तो बहुत, पर उदारता दिखाई ले लेना।
एक-एक पाव तेल की। हमारे गुणों के बदले अगर कोई क्षत्रिय । "बेटा! राजज्योतिषी ने तेरे पिता राजा पद्मबाहु को बताया
कुलोत्पन्न राजा होता तो जागीरें देता। आपने तो इतना भी नहीं था कि उनके एक ही सन्तान होगी। तेरे पिता बहुत चिन्तित रहते
किया कि तेल की जगह घी का ही प्रबन्ध करा देते। आपकी इस
सहज कृपणता को देखकर अर्थात् अपने बड़े भाई नयनरंजन को थे कि अगर लड़की हो गई तो राज्य के उत्तराधिकारी का क्या
दिये जाने वाले तेल से ही मैं समझ गया था कि आप तेली की होगा। उनकी इसी चिन्ता को दूर करने के लिए मैंने अपनी सहेली
सन्तान हैं। तेलिन से यह सौदा किया था।
"राजन् ! जो भी हो, मेरे अविनय को क्षमा करें।" "वत्स! भाग्य का खिलवाड़ सफल रहा। मेरे लड़की हुई और । तेलिन के लड़का हुआ, यानि तुम हुए। तुम्हें मैंने तेलिन से ले
राजा ने अन्तारमण को वक्ष से लगा लिया और कहालिया। तुम्हारा पालन-पोषण राजपुत्र की तरह हुआ है। राजपुत्र "तुम चारों भाई नर नहीं, नररत्न हो। तुम्हारा स्थान के-से सभी शिक्षा-संस्कार तुम्हें दिये गये हैं। सभी जानते हैं कि तुम } अनाथालय में नहीं, मेरी राजसभा में है। तुम्हारे सहयोग से मैं सुशासक हो। फिर यह विषाद क्यों हुआ है तुम्हें ?"
अपनी प्रजा का पालन और भी अच्छा कर सकूँगा।" राजा कुछ न बोला और सीधा अन्तारमण के पास आया और उसी क्षण से चारों अन्धे-नयनरंजन, सुदर्शन, सुलोचन और उससे पूछा
अन्तारमण राजसभा की शोभा और राजा का हृदयहार बन गये। (जैन कथाएं : भाग ३१ पृष्ठ ६४-९६)
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* ईर्ष्यालु व्यक्ति को अपने उठने में इतना आनन्द नहीं आता जितना कि दूसरों को गिराने में। दूसरों को गिराने
के लिए वह स्वयं मिटने को तैयार रहता है। * दुरात्मा कितना ही बुरा चाहे, पुण्यात्मा के लिये बुराई में भी अच्छाई निकलती है। * मनुष्य पूरे दिन काम करने से इतना नहीं थकता जितना एक बंटे की चिन्ता से थक जाता है। * ज्ञानी जीव भी मोहवश हो जाते हैं; क्योंकि मोह बहुत प्रबल है। लेकिन ज्ञानी जन ही मोह पर विजय पाते हैं। * प्रजा की रक्षा के लिए प्रजा का ही वध करना राजा की बुद्धि का दिवालियापन है। * चापलूस आपकी चापलूसी इसलिये करता है कि वह आपको अयोग्य समझता है।
-उपाध्याय श्री पुष्कर मुनि
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