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उपाध्याय श्री पुष्कर मुनि स्मृति-ग्रन्थ । बिना बिकी नहीं रहतीं? जो रहती हैं, वे हमारे क्रयकेन्द्र द्वारा राजसेवक हक्के-वक्के होकर एक-दूसरे का मुँह देखने लगे। इशारों खरीद ली जाती हैं और किसी-न-किसी दिन हमारे बिक्री केन्द्र से ही इशारों में एक ने फुसफुसाहट की भाषा में दूसरों से कहाबिक भी जाती हैं। तुम बिकने वाली चीज हो ही नहीं। एक दिन
“अन्धे तो बहुत देखे, पर ऐसे अजीब अन्धे आज ही मिले।" क्या, दस दिन बैठकर देख लो, तुम्हें कोई नहीं खरीदेगा। निश्चय ही तुम हमारे राजा की घोषणा का अनुचित लाभ उठाना चाहते
दूसरे ने कहाहो।"
“पहले एक-एक करके पूछ तो लो कि इनकी विशेषताएँ क्या इस राजसेवक के कथन का उत्तर दिया तीसरे भाई
हैं।" सुलोचन ने
चारों अन्धे कुछ फासले से थे, इसलिए इनकी खुसर-फुसर “आप अनहोनी बात कह रहे हैं। आपके इसी बाजार में, जिस ।
सुन-समझ नहीं पाये। अन्ततः वाणिज्य मन्त्री ने पहले अन्धे से बाजार में हम बैठे हैं, नित्य ही दास-दासियाँ भेड़-बकरियों की तरह
पूछाबिकते हैं। फिर हम बिकने योग्य कैसे नहीं?"
"तुम्हारी क्या विशेषता है नयनरंजन?' राजसेवक ने पूछा
"श्रीमान! मैं रत्नपारखी हूँ। बड़े-बड़े रत्नपारखी (जौहरी)
धोखा खा सकते हैं, पर मेरी परख, सच्ची परख होती है।" "मान लो दास-दासियाँ बिकते हैं और तुम भी बिकने योग्य हो। पर यदि तुम अपना मूल्य हमारे महाराज का पूरा राज्य ही ___ कहने की देर थी कि हँसते-हँसते सब लोट-पोट हो गये। जब माँग लो तो क्या मिलेगा? अपने को बेचना अनुचित नहीं, पर हँसते-हँसते पेट दुखने लगा तो एक राजसेवक बोलाअनाप-शनाप मूल्य माँगना राजा की घोषणा का अनुचित लाभ । "कमाल है भाई नयनरंजन! आँखों के गोलक तक गायब हैं उठाना नहीं तो और क्या है ? दास-दासी तो फिर भी सेवा करते । और तुम रनों की परख करते हो!" हैं, खरीदार स्वामी के काम आते हैं, और यहाँ तो तुम अन्धों की
“अच्छा अब तुम भी बताओ भाई सुदर्शन!" सेवा के लिए उल्टे दास-दासी चाहिए। आखिर तुम्हारा उपयोग ही क्या है?"
सुदर्शन बोलाचौथे भाई अन्तारमण को भी बोलना पड़ा। उसने कहा
“मैं अश्व पारखी हूँ। हर तरह के घोड़े की अच्छाई, बुराई,
गुणावगुण स्पर्शमात्र से बता देता हूँ।" “मेरी भी सुनो ।"
वाणिज्य मन्त्री ने सुदर्शन से ही पुनः पूछाबीच में ही वाणिज्य मन्त्री ने पूछा
“अपने तीसरे भाई की विशेषता भी तुम्ही बता दो।" "तुम्हारी भी सुनेंगे, पर पहले यह तो बताओ कि तुम्हारे सुनाम ‘अन्तारमण' का अर्थ क्या है?"
"मेरा भाई सुलोचन स्त्री की परीक्षा जानता है। स्त्री कुलीन है
या निम्न कुल की, यह भेद मेरा भाई किसी भी स्त्री की बात “मन्त्रिवर! अन्तः और रमण से मिलकर मेरा नाम बना है,
सुनकर प्रमाण सहित बता देता है।" अन्तारमण। अर्थ भी आप समझ गये होंगे। अपने भीतर रमण करने वाला। हम अन्धों की भीतरी आँखें खुली होती हैं।"
वाणिज्य मन्त्री कुछ पूछे कि उससे पहले ही चौथे भाई अन्धे
अन्तारमण ने कहाआश्चर्य के साथ वाणिज्य मन्त्री ने अन्तारमण से पूछा
“मैं पुरुष परीक्षक हूँ। पुरुष के कुल-वंश की कलई खोलकर "मालूम पड़ता है, तुम पढ़े-लिखे भी हो?"
रख देता हूँ और सिद्ध भी करता हूँ कि ऐसा क्यों है।" अन्तारमण बोला
कुछ देर मौन रहने के बाद वाणिज्य मन्त्री ने चारों अन्धों से "श्रीमान! मैं क्या हूँ, मेरे अन्य तीनों भाई क्या हैं और हम चारों भाई क्या हैं-यही सब बताने तो मैं जा रहा था। बीच में
"सूरदासो! तुम अद्भुत हो, विचित्र हो। राजघोषणा के आपने नाम का अर्थ पूछ लिया। अब सुनें कि हमने जो अपना
अनुसार मुझे तुम्हारी खरीद कर लेनी चाहिए। तुम्हारे तर्कों से और मूल्य चार लाख स्वर्ण-मुद्राएँ माँगा है, वह अपनी योग्यता और
तुम्हारी बातों से मैं हारा भी हूँ और प्रभावित भी हुआ हूँ। लेकिन उपयोगिता का ही माँगा है। चार लाख की चौगुनी स्वर्ण-मुद्राएँ
तुम्हारे क्रय-विक्रय का निर्णय कल राजसभा में होगा। महाराज स्वयं आप हमसे चाहे जब वसूल कर सकते हैं।"
ही तुम्हें खरीदेंगे। अब तो रात होने को है, रात भर तुम आराम से अन्तारमण के इस कथन से तो वाणिज्य मन्त्री और सभी । हमारे विश्रामागार में रहो।"
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