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| वाग् देवता का दिव्य रूप म
२९१ क्योंकि जीवन में माधुर्य और कटुता दोनों का योग होता ही के हृदय की शुद्धता, मन की सरलता और अपने सिद्धान्तों पर है। कभी भी ऐसा संभव नहीं है कि जीवन में अकेली मिठास ही पहाड़ की तरह अटल रहते हुए देखकर मेरे मन में उनके प्रति मिठास हो, कड़वाहट कभी, कहीं हो ही नहीं।
सहज श्रद्धा जागृत हुई।" यदि किसी काल में यह संभव हो भी जाय कि जीवन में केवल मंत्री मुनि श्री हजारीमल जी महाराज के सम्बन्ध में आपने मिठास ही मिठास हो, तो जीवन रूढ़ बनकर अवश्य ही नीरस बन । लिखा हैजाय। यही बात कड़वाहट के लिए भी कही जा सकती है। केवल "वे उच्चकोटि के सहदय सन्त थे। उनका जीवन आचार और अविराम कड़वाहट जीवन को विषैला कर दे।
विचार का पावन संगम था। आज के युग में प्रतिभासम्पन्न विद्वानों संस्मरण लिखने की एक विशिष्ट शैली है। इस विशिष्ट शैली } की कमी नहीं है। यह फसल बड़ी तेजी से बढ़ती जा रही है। 33 में भी भिन्न-भिन्न लेखकों की अपनी-अपनी अलग-अलग पहचान विचारकों का भी बाजार बड़ा गर्म है। ग्रन्थकारों का तो कहना ही होती है, भिन्न-भिन्न रंग होते हैं।
क्या? वे भी अल्पसंख्यक नहीं रहे; पर सच्चे सन्त बड़े महँगे हो
गए हैं। लेकिन स्वामीजी महाराज सच्चे सुसंस्कारी सन्त थे। इसी गुरुदेवश्री के संस्मरण-लेखन की शैली बड़ी अद्भुत और प्रभावक है। भावों का अंकन बहुत चित्ताकर्षक हुआ है। आपके |
कारण जन-जन के हृदय के हार और जन-मन के सम्राट् थे।" संस्मरणों के कतिपय उदाहरण यहाँ दिए जा रहे हैं। पाठक स्वयं
पंडित श्रीमलजी महाराज के सम्बन्ध में आपश्री द्वारा लिखित देखें कि उनमें कितना आकर्षण है
पंक्तियाँ संस्मरणरूप में हैं"गौर वर्ण की देह में कनक की-सी आभा, मँझला कद, भव्य "उस समय में "लघु सिद्धान्त कौमुदी' पढ़ रहा था। काव्य भाल, सन्दर व स्वस्थ शरीर, आकर्षक व्यक्तित्व. तन से वद. मन और न्याय के ग्रन्थों का अध्ययन भी चल रहा था। सना, नया से जवान, सीधा-सादा रहन-सहन, आडम्बररहित जीवन-यह है
बाजार के स्थानक में स्थित मुनिश्री श्रीमलजी, पंडित अम्बिकादत्त आचार्य श्री आत्माराम जी महाराज साहब का छविचित्र।"
जी से सिद्धान्त कौमुदी पढ़ रहे हैं। उनसे मिलने की जिज्ञासा तीव्र
हुई। पर शहर में मिलना संभव नहीं था। प्रातः जिधर वे शौच के एक विचारक की वाणी में "सुख की चाँदनी में सभी हँस ।
लिए जाते थे, उधर हम भी गए। जंगल का वह एकान्त, शान्त सकते हैं, पर दुःख की दुपहरी में हँसना सरल नहीं।'' किन्तु श्रद्धेय
स्थान। सम्प्रदायवाद से उन्मुक्त वातावरण। दिल खोलकर संस्कृत आचार्यवर ने सुख की शुभ चाँदनी में ही नहीं; किन्तु कष्टों की
भाषा में वार्तालाप हुआ। अनेक प्रश्नों पर चर्चा हुई। भय का भूत कठिन दोपहरी में भी हँसना सीखा है। कभी भी और किसी भी
भागा और हम एक-दूसरे के पक्के मित्र हो गये।" अवस्था में आपश्री को सदा मुस्कराते ही पाएँगे। मुश्किलें उन्हें हतोत्साहित नहीं करती, प्रोत्साहित ही करती हैं। सदा प्रसन्न रहना
यहाँ दिए गए कतिपय संस्मरणांशों को पढ़कर पाठक अब ही उनका सहज गुण है।"
जान गए होंगे कि गागर में सागर किस प्रकार समाया जा सकता आचार्यप्रवर श्री आनन्दऋषि जी महाराज के विषय में आपने
सरल से सरल भाषा में हृदय के गहन से गहन भावों की लिखा है
अभिव्यक्ति के बेजोड़ नमूने हैं ये संस्मरण! "आचार्यप्रवर महामहिम आनन्दऋषि जी महाराज श्रमण संघ की एक जगमगाती ज्योति हैं। जिनका जीवन सूर्य के समान तेजस्वी
कथा-साहित्य और चन्द्रमा के समान सौम्य है। उनका जीवन सद्गुणों का समुद्र
नारी-जीवन की करुणता को व्यक्त करते हुए राष्ट्र-कवि है। उस समुद्र का वर्गीकरण किस प्रकार किया जाय, यह गम्भीर
मैथिलीशरण जी ने लिखा हैचिन्तन के पश्चात् भी समझ में नहीं आ रहा है। उनके विराट व्यक्तित्व रूपी सिन्धु को शब्दों के बिन्दुओं में बाँधना बड़ा ही कठिन
अबला जीवन हाय तेरी करुण कहानी ।
आँचल में है दूध, और आँखों में पानी ॥ "अजरामपुरी अजमेर में वृहद् साधु-सम्मेलन का भव्य
केवल दो ही सरल पंक्तियों में गुप्त जी ने नारी-जीवन की आयोजन। जन-जन के मन में अपार उत्साह बरसाती नदी की तरह । सघन करुणता और उसके हृदय की असीम ममता और विराट्ता न हटा
बहकाएक पतिभा-सम्पच सन्त पधार रहेको साकार करके रख दिया है। थे। उस समय सभी सन्तों की व्यवस्था की जिम्मेदारी हम इसीलिए विश्व-साहित्य में कथा साहित्य का बहुत महत्व रहा राजस्थानी सन्तों पर थी जिससे सभी सन्तों के साथ हमारा मधुर है। कथा साहित्य विश्व का सबसे प्राचीन साहित्य रहा है। विश्व के सम्बन्ध होना स्वाभाविक था। उस समय आनन्दऋषि जी महाराज मूर्धन्य मनीषियों ने काव्य का आदिकाल तो निश्चित किया है
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