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भावाञ्जलि
मानवता के अमर मसीहा,
-सेवामूर्ति प्रखरता श्री विनोदमुनि
जिनशासन के दिव्य सितारे।
तारकगुरु के चरणों में आ,
तारक बन कर तुमने तारे ॥ १ ॥
उभय-रूप से पुष्कर बन कर,
निज आतम को धन्य बनाया ।
सम्यग्ज्ञान का आलोक पा,
भ्रान्तजनों का भ्रम मिटाया ॥२॥
विविध भाषाओं के विज्ञाता,
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विविध दर्शनों के तुम ज्ञाता ।
प्रवचनपटुता मन में मृदुता,
'उपाध्याय' की पाई गुरुता ॥ ३ ॥
व्यक्तित्व में थी बड़ी दिव्यता,
समता के भावों में क्षमता,
कर्तृत्व में थी बड़ी दक्षता ।
जगाई जन-जन में कर्मठता ॥४॥
उपलब्ध हुआ जो भी तुमको,
उसे बांटने तत्पर थे तुम
जलकमलवत् निर्लेपभाव से,
मर्त्यदेह तो अस्थायी पर,
सच्चे तीर्थ बने तुम ॥५॥ पुष्कर
श्रद्धा स्मृतियों में कायम है।
'विनोद' करे भावाञ्जलि अर्पण,
सत्यं शुद्ध भाव संयम है ॥ ६ ॥
धर्म के प्रति विवेकपूर्ण अटूट शुद्ध श्रद्धा और दृढ विश्वास से ही सम्यक्त्व प्राप्त होता है।
- उपाध्याय श्री पुष्कर मुनि
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उपाध्याय श्री पुष्कर मुनि स्मृति ग्रन्थ
हे ज्योतिर्धर !
-साध्वीरत्न महासती श्री कुसुमवती जी म.
तेरी लय में है लय मेरी ।
हे ज्योतिर्धर ! जय जय तेरी !!
अवनि से लेकर अम्बर तक जय जय जय जिनकी होती भव सागर में उनकी आभा उदधि में जैसे मोती।
हम उनका लेकर नाम हृदय से अपना शीश झुकाते हैं। आराधक बन महासंत के अपना कर्ज चुकाते हैं।
लो चरण वन्दना नित मेरी। हे ज्योतिर्धर ! जय जय तेरी !! तारक गुरु के चरणों में जब आ पुष्कर लहराया था। वाली की स्मृति उमड़ी मन सूरज का धुंधलाया था । जैन जगत हर्षित था सारा अम्बा पुष्कर बन चलता है। मन अंधियारा दूर करो देखो वह दीपक जलता है।
गुरु ज्ञान से गूँजी भेरी ।
हे ज्योतिर्भर ! जय जय तेरी !!
अध्यात्मयोगी की ज्योति जलाकर तुमने किया उजाला था। भक्ति, ज्ञान व कर्मयोग को तुमने हर पल पाला था । तुमसा नहीं तपस्वी देखा है गुरुवर! आप महान थे। साधक व आराधक सच्चे जिनशासन की शान थे।
लो विनय भावना नित मेरी। हे ज्योतिर्धर जय जय तेरी!!
कुन्दन बनने के खातिर तुम अंगारों पर सदा चले। फूलों के संग गले लगाया पथ में जितने शूल मिले। त्याग तपस्या से कर्मों का हर पल मुनि ने नाश किया। पीड़ाओं का ओढ़ दुशाला इस जग को उल्लास दिया।
तुम बिन सिसके दुनियां चेरी । हे ज्योतिर्धर! जय जय तेरी!!
उपाध्याय का पद पाकर के ज्ञान दिया नित सन्तों को । राजस्थान केसरी बनकर सदा जपा अरिहंतों को। आचार्य बना देवेन्द्र शिष्य को दिव्य लोक तुम चले गये। लहर उठी-झीलों के अन्दर हम काल के हाथों छले गये।
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तुम बिन पूनम लगे अंधेरी । हे ज्योतिर्धर! जय जय तेरी !!
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