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श्रद्धा का लहराता समन्दर
श्रद्धांजलि गीत
प्रथम पुण्यतिथि पर श्रद्धांजलि, श्रद्धा भरा प्रणाम है। पुष्कर मुनि की पावनता से, अमर हो गया नाम है।
निज व्यक्तित्व कृतित्व साधना, सतत स्नेह सद्भाव से, मुनिवर के प्रति अचल आस्था, उमड़ रही हर गाँव से ॥ उदयपूर में उदित हुए, और उदयपूर में अस्त हुए। भक्त जनों के भव्य भाव, अप्रैल माह में ध्वस्त हुए ।
गोगुन्दा भी गौरवशाली जन्मस्थल अभिराम है। प्रथम पुण्यतिथि पर श्रद्धांजलि, श्रद्धाभरा प्रणाम है। * अम्बालाल अलौकिक प्रतिभा, पुष्कर मुनि हो अमर हुए। दीक्षा ली "ताराचन्द्र जी से महामुनिश्वर प्रखर हुए। ज्ञान-ध्यान-जप-योग-साधना, सतत् समन्वय जन कल्याण । पांच व्रतों के संबल से ही, नवयुग का अनुपम निर्माण ॥ भरत भूमि की इस विभूति का यही अनूठा काम है। प्रथम पुण्यतिथि पर श्रद्धांजलि, श्रद्धाभरा प्रणाम है।
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- शोभनाथ पाठक
दीक्षित श्री देवेन्द्र मुनि जी शिष्यरत्न अनुकूल हुए। गुरु-शिष्य अप्रतिम आभा से श्रमणसंघ के मूल हुए । उदयपूर आचार्य अलंकृत महामहोत्सव गौरववान । पावनता की पराकाष्ठा, गुरुवर का अविरल गुणगान ॥ दो अप्रैल तिरानवे को हुआ अमर यह धाम है। प्रथम पुण्यतिथि पर श्रद्धांजलि, श्रद्धा भरा प्रणाम है ॥
उसी याद में स्मृतिग्रन्थ, विनम्र चरण में अर्पित है। ज्ञानोदधि का श्रद्धा सागर, पुष्कर हेतु समर्पित है॥
परम पूज्य आचार्यप्रवर के संपादन की यह थाती । पुष्कर मुनि के कीर्तिमान की पुलकित होकर गुण गाती ॥ ऐसे गौरवमयी ग्रंथ से हुआ विभूषित नाम है। प्रथम पुण्यतिथि पर श्रद्धांजलि श्रद्धा भरा प्रणाम है ।
१. गाने योग्य हो अतः बड़ी मात्रा लगायी हैं।
२. निधन का महीना ।
३. जन्मस्थान
४. बचपन का नाम
५ दीक्षा गुरु
६. शिष्य आचार्य श्री देवेन्द्र मुनिजी
७. आचार्य श्री देवेन्द्रमुनिजी का संपादन।
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पुष्कर ज्योति
१९५
-डॉ. गुलाब सिंह दरड़ा
(१)
जिन्दगी भर देश का यह घाव सिल सकता नहीं, फूल जो मुरझा गया अब पुनः खिल सकता नहीं । ठीक है, मिल जायेंगे साधू हमें भी सैंकड़ों किन्तु भारत को ऐसा व्यक्तित्व मिल सकता नहीं ॥
(२)
शत्रुता की अग्नि में वह मित्रता का नीर था, जो दिलों को बांध दे वह प्यार की जंजीर था । विश्व के दोनों गुटों की डोर उसके हाथ थी, वह अकेला था कहाँ, दुनियां उसी के साथ थी । (3)
विरोधी की भावना को जीतता था प्यार से, पर कभी डरता नहीं था तोप से तलवार से । ओस की शीतल सुकोमल पुष्प का अवतार था, किन्तु अवसर आने पर जलता हुआ अंगार था ॥ (४)
वह लगा था रात दिन नव राष्ट्र के निर्माण में, धर्म सेवा का नशा था व्याप्त उसके प्राण में । साम्प्रदायिक द्वेष का सारा हलाहल पी गया, स्वयं शंकर की तरह आदर्श जीवन जी गया ॥
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(५)
आज भारत ही नहीं संसार सारा रो रहा, एक फूल झड़ा, सकल उद्यान सूना हो रहा। किन्तु दिव्य सुगन्ध उसकी नष्ट हो सकती नहीं, शब्दों के साथ नभ में वह गूँज खो सकती नहीं ।
(६)
बुझ गई ज्योति मगर आलोक अब भी शेष है, खो गया पुष्कर मगर उसका अमर संदेश है। है उसी की सीख संकट में न हम आहें भरें, जिस तरह हो आज उसके स्वप्न को पूरा करें ॥
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