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गोगुन्दा निकट ग्राम 'सिमटारा' में लेकर जन्म वंश, मात-पिता को किया धन्य!
उपाध्याय श्री पुष्कर मुनि स्मृति-ग्रन्थ । प्राकृत-संस्कृत-हिन्दी-मराठी! गुजराती-कन्नड़-राजस्थानी !! इन भाषाओं पर किया एकाधिकार बन गये फिर तो काव्यकार साहित्यकार प्रवचनकार!
नाम था अम्बालाल बनेगा छहकाय का प्रतिपाल नियति ने लिख दिया यही उन्नत भाल पर!
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वाणी में अद्भुत तेज सिंह-सी गर्जना शब्दों का सरस प्रवाह श्रोता, सुन-सुन कर हो जाता निहाल!
बचपन में ही विरक्त रहने लगा गुरुदेव श्री ताराचंद्र जी महाराज की प्रवचन-धारा में जब किया अवगाहन वैराग्य रंग से रंजित होने लगा सुषुप्त आतम-भान जगने लगा! तज दियामात-पितु का दुलार आ गयागुरुदेवश्री की चरण-शरण! करनी जो हैपावन प्रव्रज्या ग्रहण! विद्याजीवी ब्राह्मण कुल में लेकर जन्म आजीवन ग्रहण किया-ब्रह्मचर्य! और भगवान की इस सूक्ति को "बंभचेरेण होइ बम्भणो" को सार्थक कर गया १९८१ विक्रमी संवत् ज्येष्ठ शुक्ला दशमी के दिन वह किशोर/संयमित हो गया......... एक ज्योतिर्मय जीवन तिरोहित हो गया............
वीरों की भूमि (मेवाड़) का ये वीर सबको कहताबन जाओ महावीर! हरलो जन-जन की पीर।। प्रवचन सुनने उमड़ती भीड़ अपार जन संकुल ही जन संकुल। सम्पर्क में जो भी आया गुरुवर के यादों की पिटारी संग ले गया जन-जन के अन्तस्थल में गुरुवर पुष्कर का सुवचन उड्रंकित हो गया............॥
गुरुदेव की अति सुखद छत्रछाया में गुरुदेव के ज्ञान-वर्षण से अणगार “पुष्कर" निज ‘ज्ञान पुष्करिणी' भरने लगा। सीखा-आगम-ज्ञान।
एक ज्योतिर्मय जीवन तिरोहित हो गया निज व्यक्तित्व की छोड़ सुवास अनंत में। न जाने कहाँ खो गया.......॥ पाँव-पाँव चलने वाला सूरज गाँव-गाँव, नगर-नगर, डगर-डगर फैलाकर धर्म की रोशनी आया झीलों की नगरी उदयपुर कार्यक्रम थानिज सुशिष्य विद्वद्वर्य देवेन्द्राचार्य का आचार्य पद चादर महोत्सव! कार्यक्रम हो गया सानन्द-सम्पन्न!
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