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उपाध्याय श्री पुष्कर मुनि स्मृति-ग्रन्थ इस वर्षावास में केरल की राज्यपाल श्रीमती ज्योति से नगर और प्रांत से प्रांत में आपश्री उसी भाव से विचरण करते वेंकटाचलम्, तमिलनाडु के राज्यपाल प्रभुदास पटवारी, राज्यसभा रहे जैसे कोई गृहस्थ अपने भव्य भवन के विभिन्न कक्षों में दिल्ली के उपाध्यक्ष श्री रामनिवास मिर्धा, संसद सदस्य अनन्तदेव | आता-जाता है। किसी भी प्रान्त में आप पधारे, सभी जगह (गुजरात), हुक्मचन्द कच्छवाई (म. प्र.), कचरूलाल चौरड़िया (म. अपनापन, सभी जगह स्नेह तथा सभी जगह सभी व्यक्तियों पर प्र.), युवराज (बिहार), डॉ. एस. बद्रीनाथ, सत्यनारायण जी अटूट कृपा भाव! गोयनका प्रभृति अनेक गणमान्य नेता एवं विद्वान् गुरुदेवश्री के
आपके जीवन में 'वसुधैव कुटुम्बकम्' की उदात्त भावना मानो सम्पर्क में आए तथा विविध विषयों पर चर्चाएँ करके लाभान्वित
साकार हो उठी थी तथा आपश्री सर्वग आनन्द का अनुभव करते
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रहे।
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इसी समय मद्रास विश्वविद्यालय में “जैन इन्डोमैन्ट" की
इससे पूर्व कि हम अपने पाठकों की जानकारी हेतु आपश्री के स्थापना भी हुई। बापालाल कम्पनी के अधिपति सुरेन्द्रभाई मेहता ने
समस्त वर्षावासों की तालिका प्रस्तुत करें, कुछ अन्य वर्षावासों की उदारतापूर्वक अनुदान दिया। श्री शंकर नेत्र चिकित्सालय में नेत्र
महत्वपूर्ण घटनाएँ भी बता देना उचित रहेगा। विशेषज्ञों के निर्माण हेतु सुरेन्द्रभाई तथा शी. यू. शाह की ओर से लाखों का अनुदान दिया गया।
सन् १९७९ का आपश्री का वर्षावास महामहिम आचार्य सम्राट आनन्दऋषि जी के आदेश से सिकन्दराबाद में हुआ। वहाँ उनके
चरणों में रहने का सुनहरा अवसर प्राप्त हुआ। आचार्य सम्राट् की । अभिनन्दन ग्रन्थ का समर्पण
असीम कृपा रही। गंभीर प्रश्नों पर आचार्य तथा उपाध्याय में
चर्चाएँ हुईं। वे चर्चाएँ अत्यन्त लाभप्रद रहीं। वर्षावास के पश्चात् मद्रास का यशस्वी वर्षावास सम्पन्न कर आपश्री तमिलनाडु,
शोलापुर, पूना, बम्बई, सूरत, बड़ौदा होते हुए आपश्री ने अक्षय कर्नाटक, आन्ध्र प्रदेश को पावन करते हुए हैदराबाद पधारे।
तृतीया का पारणा ऋषभदेव में किया। आचार्य सम्राट आनन्दऋषि जी महाराज महाराष्ट्र से विहार कर पहले ही वहाँ पधार चुके थे। पूज्य गुरुदेव की ५६वीं दीक्षा-जयन्ती
उदयपुर में रत्नज्योतिजी की दीक्षा महासती पुष्पवती जी के का शुभ अवसर था। ५ जून, १९७८ को गाँधी भवन के विशाल ।
पास सम्पन्न हुई और फिर चातुर्मास उदयपुर में हुआ, सन् १९८० हॉल में विशिष्ट नागरिकों की उपस्थिति में आचार्य सम्राट् ने
का। विद्वान् डॉ. ए. डी. बत्तरा आपश्री के प्रति अनन्य भक्तिभाव उपाध्याय श्री पुष्कर मुनि जी की उल्लेखनीय साहित्यिक-सेवाओं ।
रखते थे। वे पूना विश्वविद्यालय में दर्शनशास्त्र के प्रोफेसर थे। तथा संघ-सेवाओं के उपलक्ष में “उपाध्याय पुष्कर मुनि अभिनन्दन ।
उनका अमेरिका जाने का प्रसंग बना। वहाँ उनकी भेंट डॉ. जेम्स से ग्रन्थ" तथा खादी की श्वेत चादर आपश्री को समर्पित की। यह
जब हुई तब उन्होंने डॉ. बत्तरा से पूछा कि आपके गुरुदेव कौन हैं, १२00 पृष्ठ का विशालकाय ग्रन्थ नौ खण्डों में विभाजित है।
क्योंकि वे योग में बहुत रुचि रखते थे। जब डॉ. बत्तरा ने बताया इसमें १२५ वरिष्ठ विद्वानों के लेख हैं, जिनमें भाषा की दृष्टि से
कि पूज्य उपाध्याय श्री उनके गुरु हैं, तब वे अत्यन्त प्रसन्न होकर ८५ लेख हिन्दी तथा ४० लेख अंग्रेजी में हैं।
अमेरिका से उदयपुर आए तथा आपश्री के चरणों में रहकर
ध्यान-विधि आदि का अध्ययन किया। इस भव्य समारोह की अध्यक्षता राज्य पंचायत मंत्री नागारेड्डी ने की। टेक्नोलोजी मंत्री हमग्रीवाचारी, भूतपूर्व मुख्य न्यायाधीश श्री
एक विद्वान व्यक्ति सुदूर सात समुद्र पार से आपश्री के पास गोपालराव इकबोटे, श्री पी. एल. भंडारी, डॉ. ए. डी. बतरा आदि
सोल्लास जिज्ञासु बनकर आए, इसी से पता चलता है कि आपश्री प्रमुख व्यक्तियों ने उस समारोह में चार चाँद लगाए।
के व्यक्तित्व में कितना अद्भुत प्रभाव था। इन लम्बी-लम्बी विहार यात्राओं में कभी भयंकर गर्मी का
इस अवधि में डॉ. दौलतसिंह कोठारी, केशरीलाल बोर्दिया, पं. अनुभव हुआ। तेज, तपाने वाली लू ने आपश्री की अग्निपरीक्षा ली
मनीषी जनार्दन राय नागर आदि अनेक विख्यात शिक्षाविद् भी तो कभी सनसनाती हुई हवाओं में तीव्र शीत में ठिठुरना भी पड़ा।
आपश्री के सम्पर्क में आए। मूसलाधार वर्षा भी अचानक आ गई तो उसे भी सहन करते हुए वर्षावास के पश्चात् नीमच, बड़ी सादड़ी तथा मेवाड़ के अन्य मार्ग काटना पड़ा। बम्बई के विहार में नदी-नालों से बचने के लिए अंचलों का स्पर्श करते हुए आपश्री रतनचन्द जी रांका के रेल की पटरी के मार्ग से चलना पड़ता है। वहाँ पर कंकड़ों से नग्न अत्यधिक आग्रह से बाड़मेर जिले में पधारे। वर्षावास राखी में पैर छलनी हो जाते हैं। कहीं-कहीं चिकनी मिट्टी चिपट जाने से हुआ। राखी एक छोटा-सा ही ग्राम है, किन्तु वहाँ भी धर्म की चलना दूभर हो जाता है। किन्तु जीवन-संग्राम का अथक यात्री इन । प्रभावना पूर्ण हुई। गुरुदेव की जन्म-जयन्ती के अवसर पर रांकाजी कठिनाइयों की परवाह कहाँ करता है? आपश्री भी अजन, । ने इक्यासी स्कूलों को आर्थिक सहयोग प्रदान किया। अनेक अविराम रूप से विहार करते रहे। एक ग्राम से दूसरे ग्राम, नगर अस्पतालों को भी आपने सहयोग दिया।
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