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उपाध्याय श्री पुष्कर मुनि स्मृति-ग्रन्थ 50000
इस वर्षावास में जन-मानस में बहुत अधिक धर्म-प्रेरणा जाग्रत थी। उधर आपश्री को ज्वर १०४ डिग्री तक था। फिर भी आपश्री हुई।
ने विहार चालू ही रखा। गुरुदेव श्री वहाँ से औरंगाबाद, जालना, जलगाँव, भुसावल, किन्तु शारीरिक स्थिति एवं शक्ति की भी एक सीमा तो होती
हैदराबाद आदि क्षेत्रों को पावन करते हुए वर्षावास हेतु इन्दौर है। अतः अन्ततः राह में पैदल चलने की स्थिति न रहने पर POIDEO
पधारे। इस वर्षावास में स्थानकवासी जैन कॉन्फ्रेन्स का आपश्री को डोली का उपयोग करना पड़ा। सन्तगण डोली उठाकर 36. 00 अमृत-महोत्सव सम्पन्न हुआ। इसमें श्री अर्जुनसिंह जी इत्यादि मध्य । चले। प्रदेश के प्रमुख राजनेतागण उपस्थित होते रहे।
वर्षावास हेतु आपश्री पीपाड़ पहुँचे। इस वर्षावास में गुरुदेव की वहाँ से विहार करके आपश्री देवास, उज्जैन, खाचरोद, जन्म-जयन्ती के अवसर पर हरि-शंकर भाभड़ा आदि अनेक प्रमुख रतलाम, जावरा, मन्दसौर, निम्बाहेड़ा, चित्तौड़, काशी आदि प्रदेशों । व्यक्ति उपस्थित हुए और गुरुदेव के ज्ञान से लाभान्वित हुए। में विचरण कर उन्हें पावन करते हुए उदयपुर पधारे। अक्षय
पीपाड़ चातुर्मास के पश्चात् आपश्री मेड़ता, जैतारण, जोधपुर तृतीया का पारणा उदयपुर में ही हुआ। उदयपुर से मेवाड़ के
होते हुए वर्षावास हेतु सिवाना पधारे। विविध अंचलों में विहार करते हुए आपश्री वर्षावास हेतु जसवन्तगढ़ पधारे। जसवन्तगढ़ के वर्षावास में विविध अंचलों से
आचार्य श्री आनन्दऋषि जी महाराज का अहमदनगर में आपश्री के दर्शनार्थ उपस्थित हुए। जिनमें मेवाड़ के भूतपूर्व
स्वर्गवास हो गया था। अतः अब संघ का अत्यधिक आग्रह था कि महाराणा महेन्द्रसिंह भी थे। उन्होंने उपाध्याय श्री से जप की प्रेरणा
अक्षय-तृतीया के पावन अवसर पर आपके शिष्य उपाचार्य श्री प्राप्त की तथा इस वर्षावास में समाज ने आपश्री की जन्मभूमि में
देवेन्द्र मुनि को आचार्य पद प्रदान किए जाने की घोषणा सोजत में कॉलेज बनाने का निर्णय लिया। वह इलाका आदिवासी इलाका था,
की जाय। अतः शिक्षा एवं संस्कार की दृष्टि से बहुत पिछड़ा हुआ था। पूज्य प्रवर्तक श्री रूपमुनि जी म0, कन्हैयालाल जी 'कमल' उपाध्याय श्री का हृदय वहाँ की आदिवासी जनता के प्रति करुणा । महाराज, तपस्वीरत्न सहज मुनि जी आदि सन्त वहाँ पधार चुके थे। से द्रवित था। गरीब प्रजा अनेक प्रकार से कष्ट उठा रही थी। अतः कॉन्फ्रेन्स के अध्यक्ष पुखराज जी लूंकड़ आदि सभी प्रमुख व्यक्तियों उपाध्याय श्री ने करुणा-द्रवित होकर उस प्रजा में शिक्षा के प्रसार से यथायोग्य परामर्श करने के पश्चात् प्रवर्तक रूप मुनिजी ने सभी तथा संस्कारों की जागृति हेतु वहाँ कॉलेज बनाए जाने की प्रेरणा संघों की ओर से देवेन्द्र मुनि शास्त्री को आचार्य पद पर सुशोभित प्रदान की। जिसके फलस्वरूप कालेज की बिल्डिंग बनना प्रारम्भ हो किए जाने की घोषणा की। गया है। अनेक कमरे बन भी गये हैं। सम्भवतः शासन की अनुमति सिवाना चातुर्मास में जोधपुर के भूतपूर्व नरेश गजसिंह जी ने कॉलेज के लिए शीघ्र प्राप्त हो जायेगी।
उपाध्याय श्री की सेवा में उपस्थित होकर जप-प्रेरणा प्राप्त की तथा इसके पश्चात् आपश्री वर्षावास हेतु सादड़ी पधारे। यह
समय-समय पर धार्मिक चर्चाएँ कीं। इसी चातुर्मास में लगभग दो वर्षावास सन् १९९० में हुआ। संवत्सरी के दूसरे दिन आपश्री को सौ विकलांग व्यक्तियों को पैर लगाए गए। हृदयाघात हो गया। स्वास्थ्य बिगड़ जाने के कारण स्थिति को वहाँ से मोकलसर, जालौर, सादड़ी इत्यादि होते हुए, मेवाड़ के देखकर मैंने उनसे पूछा कि क्या आपश्री संथारा करना चाहते हैं। मगरों तथा अन्य अंचलों को पावन करते हुए, जिनमें जन्मभूमि भी तो आपश्री ने स्पष्ट शब्दों में कहा-अभी मेरा अन्तिम समय नहीं सम्मिलित थी, आपश्री आचार्य पद चादर-महोत्सव हेतु उदयपुर आया है। विचार न करो।
पधारे। नीचे का रक्तचाप मात्र तीस डिग्री रह गया था, किन्तु आपश्री इस भव्य चादर-महोत्सव तथा पूज्य गुरुदेव श्री की पावन की आस्था हिमालय के शिखर के समान ही रही। डॉक्टरों ने कहा । जीवन-ज्योति के अन्तिम क्षणों का वर्णन हम आगामी दो अध्यायों
कि अब आपश्री विहार न करें, किन्तु आत्मबल के असीम धनी में कतिपय संस्मरण तथा गुरुदेव श्री के साहित्य का संक्षिप्त परिचय DRDI
होने के कारण आपश्री पैदल ही पाली होते हुए समदड़ी पधारे। उस देने के पश्चात् इस पावन जीवन-चरित के अन्तिम अध्याय में H D समय समदड़ी में ग्रीष्म का प्रकोप भयानक था। ५३ डिग्री तक गर्मी / करेंगे।
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इनकी सन्तानें-श्रद्धा सत्य को जन्म देती है; मैत्री का पुत्र प्रसाद; दया का अभयः शान्ति से शमः तुष्टि से हर्षः पुष्टि से गर्भ, क्रिया से योग, उन्नति से दर्प, बुद्धि से अर्थ नाम के पुत्र होते हैं। मेधा नाम धर्म की पत्नी से स्मृति नामक कन्या, तितिक्षा से मंगल नाम का तथा लज्जा से विनय नाम का पुत्र होता है।
-उपाध्याय श्री पुष्कर मुनि
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