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उपाध्याय श्री पुष्कर मुनि स्मृति-ग्रन्थ ।
मेरा मस्तक सदा झुका है
-डॉ. शशिकर 'खटका राजस्थानी', विजयनगर (अजमेर)
जिनके कारण गूंज रही है, जिनवाणी हर गाँव में। मेरा मस्तक सदा झुका है, पुष्कर मुनि के पाँव में॥
शक्ति का जो स्रोत रही है, भक्ति मन उत्थान की। मस्तक चढ़ने योग्य बनी है, मिट्टी राजस्थान की।
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सुबह करे हम शाम करे शहर करे सब ग्राम करे पावन जीवन नाम करे
धरती को प्रणाम करे जीवन सागर पार करे हम, बैठ ज्ञान की नाव में। मेरा मस्तक सदा झुका है, पुष्कर मुनि के पाँव में॥
संयम लेना लक्ष्य बनाया, आ वाणी के प्रभाव में। परम सन्त श्री पुष्कर मुनिजी दया भाव ले आये थे। । मेरा मस्तक सदा झुका है, पुष्कर मुनि के पाँव में॥ प्रेम नेह करुणा की गंगा, अपने संग में लाये थे।
संयम के पथ पर चलकर के, आत्म-तत्व को पहचाना।
क्षणभंगुर है मानव-जीवन, महामुनि ने था जाना॥ ज्योति जला वे चले गये मौत के हाथों छले गये
वे आगम वाणी गाते थे अनचाहे हम जले गये
गाकर सदा सुनाते थे सूरज बन वे ढले गये
प्रभु का पथ बतलाते थे
ज्ञान की ज्योति जलाते थे यादें शेष रही अन्तर में, मन डूबा इसी विभाव में। मेरा मस्तक सदा झुका है, पुष्कर मुनि के पाँव में॥
धर्म संगठन की नित चर्चा, करते धूप व छाँव में। सूरज वाली ने सुत पाया, बजी थाली सिमटार में। मेरा मस्तक सदा झुका है, पुष्कर मुनि के पाँव में। मात पिता सुत को नित अम्बा, कहते हरपल प्यार में॥
आचार्य बना देवेन्द्र शिष्य को, चिर निद्रा में वे सोये।
उन बिन सूना यह जग सारा, रहते हम खोये खोये॥ माँ ने जब मुखड़ा मोड़ा अम्बा ने बन्धन तोड़ा
झीलों में जलजला उठा तारा चरणों में दौड़ा
आँसू भी छलछला उठा झुककर के कर को जोड़ा
पुनः कारवा आज लुटा
नयनों में फिर उठी घटा
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'शशिकर' भाव मुनि पुष्कर के, नित रहते थे समभाव में। मेरा मस्तक सदा झुका है, पुष्कर मुनि के पाँव में॥
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