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उपाध्याय श्री पुष्कर मुनि स्मृति-ग्रन्थ ।
स्तुति-पञ्चविशंतिका
-डॉ. दामोदर शास्त्री उपाचार्य व अध्यक्ष जैन दर्शन विभाग, केन्द्रीय संस्कृत विद्यापीठ (शिक्षा मंत्रालय, भारत सरकार)
जयपुर (राज.)
येषां सुशिष्यो बहुशास्त्रविज्ञः, देवेन्द्रनामा मुनिरद्य पूज्यः। श्वेताम्बर-स्थानकवासि-साधु, संघाधिपाचार्यपदे चकास्ति। जिनके श्रेष्ठ शिष्य पूज्य श्री देवेन्द्र मुनि, जो अनेक शास्त्रों के ज्ञाता हैं और आज 'जैन श्वेताम्बर स्थानकवासी श्रमण-संघ' के अधिपति 'आचार्य' पद पर शोभित हो रहे हैं।
महाव्रतानां परिपालनाय, निर्दोषरीत्या सततोद्यता ये। पूज्यानुपाध्यायवरान् स्वभक्त्या, नमामि तान् पुष्कर-संयमीन्द्रान्॥ (अहिंसा, सत्य, अचौर्य, ब्रह्मचर्य व अपरिग्रह-इन पाँच) महाव्रतों के निर्दोष रीति से पालन हेतु जो सदैव उद्यत-तत्पर रहा करते थे, उन उपाध्याय-प्रवर स्व. पूज्य श्री पुष्कर मुनिवर महाराज को मैं | भक्तिपूर्वक नमस्कार-वन्दना करता हूँ।
(२) समस्तजैनागम-पारगा ये, स्वाध्याय-सुध्यान-तपोनुरक्ताः। पूज्यानुपाध्यायवरान् स्वभक्त्या, नमामि तान् पुष्कर-संयमीन्द्रान्॥
जो समस्त जैन आगमों के पारंगत (विद्वान्) थे, तथा स्वाध्याय व प्रशस्त ध्यानरूपी तपश्चरण में अनुरक्त रहा करते थे, उन उपाध्याय-प्रवर स्व. पूज्य श्री पुष्कर मुनिवर महाराज को मैं । भक्तिपूर्वक नमस्कार-वन्दना करता हूँ।
अन्येप्यनेके सुयशोऽर्जयन्तः, शिष्य-प्रशिष्या विहरन्ति यस्य। पूज्यानुपाध्यायवरान् स्वभक्त्या, नमामि तान् पुष्कर-संयमीन्द्रान्॥ जिनके और भी अनेक शिष्य-प्रशिष्य आज उत्तम कीर्ति अर्जित करते हुए विचरण कर रहे हैं, उन पूज्य उपाध्याय-प्रवर स्व. पुष्कर मुनिवर को मैं भक्तिपूर्वक नमस्कार वन्दना करता हूँ।
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तत्त्वज्ञ-विद्वज्जन-पूजिता ये, भव्यात्म-सम्बोधन-तत्पराश्च। पूज्यानुपाध्यायवरान् स्वभक्त्या, नमामि तान् पुष्कर-संयमीन्द्रान्॥ जो तत्वज्ञानी विद्वान् व्यक्तियों द्वारा पूजित थे, तथा भव्य प्राणियों को उद्बोधन देने में तत्पर रहा करते थे, उन उपाध्याय-प्रवर स्व. पूज्य श्री पुष्कर मुनिवर को मैं भक्तिपूर्वक नमस्कार-वन्दना करता हूँ।
विद्योपदेशेन जगत्यहिंसा-धर्म प्रचाराय समुद्यता ये। पूज्यानुपाध्यायवरान् स्वभक्त्या, नमामि तान् पुष्कर-संयमीन्द्रान्॥
जो (अपने) धार्मिक उपदेश द्वारा संसार में अहिंसा-धर्म के प्रचार-प्रसार हेतु उद्यत रहा करते थे, उन पूज्य उपाध्यायप्रवर स्व, पुष्कर मुनिवर को मैं भक्तिपूर्वक नमस्कार-वन्दना करता हूँ।
(४)
(९) सम्मानिता राष्ट्रपति-प्रबुद्धैः ये विश्वसन्तेति विशेषणेन। पूज्यानुपाध्यायवरान् स्वभक्त्या, नमामि तान् पुष्कर-संयमीन्द्रान्॥
जो (दिल्ली में) भारत के प्रबुद्ध राष्ट्रपति (ज्ञानी जैलसिंह जी) द्वारा 'राष्ट्रसन्त' इस विशेषण से सम्मानित हुए थे, उन पूज्य उपाध्याय-प्रवर स्व. पुष्कर मुनिवर को मैं भक्तिपूर्वक नमस्कारवन्दना करता हूँ।
मोहान्धकारापहृतौ दिनेशान्, परात्म-कल्याण-समुत्सका ये। पूज्यानुपाध्यायवरान् स्वभक्त्या, नमामि तान् पुष्कर-संयमीन्द्रान्॥
जो (लोगों के) अज्ञान-अन्धकार को नष्ट करने में 'सूर्य' के । (समान) थे, और स्व-पर कल्याण में समुत्सुक-इच्छुक रहा करते थे, उन उपाध्यायप्रवर स्व. पूज्य श्री पुष्कर मुनिवर को मैं भक्तिपूर्वक नमस्कार वन्दना करता हूँ।
(५) येषां सुकीर्तिः प्रथिता सुशिष्यैः, चारित्रनिष्ठै : सुबुद्यैर्विनीतैः। पूज्यानुपाध्यायवरान् स्वभक्त्या, नमामि तान् पुष्कर-संयमीन्द्रान्॥ विनीत, विद्वान् व चारित्र-सम्पन्न शिष्यों के द्वारा जिनकी कीर्ति (लोक में सर्वत्र) विख्यात थी, उन उपाध्याय-प्रवर स्व. पूज्य श्री पुष्कर मुनिवर को मैं भक्तिपूर्वक नमस्कार वन्दना करता हूँ।
(१०)
यैर्बोधिता भव्यजना अनेके, दुस्त्याज्य-पापाद् विरताः प्रजाताः। पूज्यानुपाध्यायवरान् स्वभक्त्या, नमामि तान् पुष्कर-संयमीन्द्रान्॥ जिनके द्वारा उद्बोधन प्राप्त कर, अनेक भव्य जन कठिनता से छूटने वाले पापों से विरत हुए थे, उन पूज्य उपाध्याय-प्रवर स्व. पुष्कर मुनिवर को मैं भक्तिपूर्वक नमस्कार-वन्दना करता हूँ।
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