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। श्रद्धा का लहराता समन्दर
१९७१
उज्ज्वल दिव्य सितारे थे
गुरुदेव पुष्कर प्यारा
-चाँदमल बाबेल
-ताराचंद जैन
उपाध्याय श्री की कृपा से चमन खिला हमारा। गुरु पुष्कर की याद में उमड़ा हिन्दुस्तान सारा॥
'विश्व सन्त' हटाओ पन्त, चतुर्विध संघ की है आवाज। गुरु जी की याद आती आज चमके-चमके जैन समाज॥
'पुष्कर' के पवित्र नीर से, नीड़ हुआ उज्ज्वल हमारा। डूबती नैया, डूबते समाज को, मिला तिनके का सहारा॥
महान् मनस्वी, महान् यशस्वी, महानता उर धारे थे। उपाध्याय पुष्कर गुरुजी, उज्ज्वल दिव्य सितारे थे।
लघुवय में दीक्षा धारण कर, कठिन साधना साधी थी। ज्ञान ध्यान में चित्त रमाया, पूरण आत्म समाधि थी॥ आगम सम्मत भाव आपके, जनता सुनने को आदी थी।
बड़े प्यार से उन्हें सुनाते भाषा सीधी सादी थी॥ दशों दिशायें गुंजित होतीं, बोल-बोल जयकारे थे॥
बैठ पाट पर भव्य भाव से, जब उपदेश सुनाते थे। वाणी-वीणा सुनकर उनको, श्रोता नहीं अघाते थे। सत्य ज्ञान का खोल खजाना, जब सबको दिखलाते थे।
धन्य धन्य के शब्द सभी के, मन से निकले जाते थे। चारों ओर खुशी की लहरें, वाह-वाह करते सारे थे।
गहन ज्ञान का गर्व आपके, मन में कभी न छाया था। व्यक्तित्व आपका परम तेजस्वी, सबके मन को लुभाया था। जो भी आया शरण आपके, धन्य-धन्य कहलाया था।
आचार्य देवेन्द्र मुनि सा, शिष्यरल भी पाया था। चादर महोत्सव सम्पन्न हो, बस यही भावना धारे थे।
'पुष्कर' का पवित्र जल, स्वच्छ, उज्ज्वल और निर्मल । गुरुदेव हुए विरक्त ज्यों कीच से कमल ।।
'ज्येष्ठ', 'तारा' और गुरुदेव पुष्कर प्यारा। देवेन्द्र मुनि शान्त-दान्त, चमकता सितारा।।
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सुरेन्द्र और शालीभद्र की छटा न्यारी। ये दोनों हैं पुष्कर की डाली प्यारी॥ Poeople
Facod रमेश, दिनेश, नरेश मुनि हैं अनुचारा। राजेन्द्र मुनि का लगे व्याख्यान अति प्यारा॥
आत्मज्ञान का सम्बल लेकर, संथारा मन भाया था। श्रद्धा सागर उमड़ा उदयपुर, अन्तिम दर्शन पाया था। चैत्र माह का दिवस ग्याहरवां, दुःख दावानल लाया था। दो हजार पचास का संवत् नयनों नीर बहाया था।
जोर से बोलो, मधुर बोलो, गुरुदेव पुष्कर प्यारा। अहिंसा, सत्य पर डटे रहे, झण्डा ऊँचा रहे हमारा॥
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युगों युगों तक ऋणी रहेंगे, सबने शब्द उच्चारे थे।
उपाध्याय श्री की कृपा से चमन खिला हमारा। गुरु पुष्कर की याद में, उमड़ा हिन्दुस्तान सारा॥
अध्यात्म योगी परम-प्रभावी, अब दृष्टि नहीं आता है। किन्तु उनका अमर कर्तृत्व, पल पल याद दिलाता है। प्रथम स्मृति दिवस आज अब, यह भी बीता जाता है।
श्रद्धा सुमन समर्पण श्रुतधर! 'चांद' गीत यह गाता है। नहीं भुलाये जा सकते हैं, जो जन-जन को प्यारे थे॥
मस्तिष्क में धर्म का सहारा और हृदय में धर्म के प्रति आस्थायही दो बातें मनुष्य कभी न भूले तो उसका कल्याण होने में देर नहीं।
-उपाध्याय श्री पुष्कर मुनि
वाजपला
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