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जंगल में मंगल जा बैठे डर दूर अमंगल भाग गये वनचर भी करते थे प्रणाम थे भाग्य सभी के जाग गये केशरिया सिंह दहाड़ भरे गुरुवर सन्निधि बेराग भये चरणों में नाग लिपट करके सुध भूल गये बेदाग भये नयनाभिराम गुरुवर स्वरूप ऐ! दिगदिगंत व्याख्यान करो पुष्कर मुनि की पुण्य कथा का गुणिजनो गुणगान करो। अरिहंत शरण
सम्मेलन सादड़ी बुलवाया पुरुषार्थ पुष्करी रंग लाया श्री श्रमण संघ निर्माण हुवा बंध एक सूत में सुख पाया जैनागम वारिधि सहस अष्ट गुरु आत्माराम का यश गाया आचार्यप्रवर वे प्रथम हुवे हर श्रमण हृदय में हर्षाया मर्यादा में बंध गये सभी मर्यादा का सम्मान करो पुष्कर मुनि की पुण्य कथा का गुणिजनो गुणगान करो। अरिहंत शरणं
राष्ट्रपति राजेन्द्र जवाहर भेंट कर हरषाये गुरुवर से मिलकर के उनने जैनागम के दर्शन पाये देसाई पंत व टंडन जी हर श्रेष्ठ जनों के मन भाये गुरुदेव शंकराचार्य मिले करुणा के सागर लहराये कभी अहिंसा हारे ना ऐसा सुन्दर अभियान करो पुष्कर मुनि की पुण्य कथा का गुणिजनो गुणगान करो। अरिहंत शरणं कला, धर्म, साहित्य जुड़े हर ओर आपका अभिनन्दन संगम सुरसती गंगा जमना अवगाहन कर मिटता क्रंदन संगीत सुधा, भक्ति के स्वर हर काव्य हमारा जीवन धन जन जन श्रद्धा से बोल रहा हम नीर गुरु तुम हो चंदन आशा अभिलाषा मात्र यही उपकार करो अज्ञान हरो पुष्कर मुनि की पुण्य कथा का गुणिजनो गुणगान करो। अरिहंत शरणं ये विकट भंवर भौतिकला का हम दीन हीन अज्ञानी हैं। है पश्चात्ताप से दग्ध, नयन से अविरल बहता पानी है मन गज मेरा, जग हुवा ग्राह भक्तों की लाज बचानी है वे निर्बल के बल, मैं याचक गुरु पुष्कर और दानी है। ध्वज सत्य अहिंसा का थामें मंजिल की ओर प्रयाण करो पुष्कर मुनि की पुण्य कथा का गुणिजनो गुणगान करो। अरिहंत शरणं सन् उन्नीस सौ चौबीस से चलकर बाणु तक आ जायें उनसित्तर वर्षावास किए हर ग्राम नगर जन मन भाये डाकू लछमन सिंह संत हुबे जब गुरुबर सन्निधि में आए सूखी रोटी का मान बढ़ा नानक की याद दिला आये काव्य कला साहित्य मनीषी नयन बंद कर ध्यान करो पुष्कर मुनि की पुण्य कथा का गुणिजनो गुणगान करो। अरिहंत शरणं
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उपाध्याय श्री पुष्कर मुनि स्मृति ग्रन्थ
ये है मेरा सौभाग्य रहा युग उपाध्याय का यश गाया अट्ठाईस मार्च तरियाणु को आचार्य शिष्य लख सुख पाया अप्रेल तीन तरियाणु को चल दिए गुरु छोड़ी काया दृगनीर मेरे जिह्वा जड़ है जन मन की पीर न कह पाया उपाध्यायश्री के अमृतमय उपदेशों का पान करो पुष्कर मुनि की पुण्य कथा का गुणिजनो गुणगान करो। अरिहंत शरणं
हर क्षेत्र महकता था जिनसे वे मलयागिर पावन चंदन हाथ जोड़कर विधिना भी करती थी बारम्बार नमन बयालीस घण्टे संथारा हँसते-हँसते की मौत वरन्
जब उस अनन्त में लीन हुवे तज दिया सहज ही जीवन धन दो सौ से अधिक संत सतियों केशर बारिश स्नान करो पुष्कर मुनि की पुण्य कथा का गुणिजनो गुणगान करो अरिहंत शरणं चिरऋणी रहेगा ये समाज आचार्यप्रवर से संत दिए सम्राट प्रभु देवेन्द्र मुनि पा जग मग जग उत्साह लिए राजेन्द्र, गणेश, रमेश, नरेश, प्रवीण, गीतेश, प्रकाश किये लो उदित दिनेश जिनेन्द्र सुरेन्द्र है, शालिभद्र विश्वास लिए जन गण मन नाचे मयूर हो मंगलमय अभियान करो पुष्कर मुनि की पुण्य कथा का गुणिजनो गुणगान करो। अरिहंत शरणं
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मन पुष्कर से अविभाज्य रहे - कवि सुरेश वैरागी
तप ज्ञान ध्यान साधना के हो शिखर आप
आपको नमन गुरुवर, बारम्बार है। मेरे कृपानिधि, श्रद्धानिधि दया सागर हो
योगिराज पुष्कर का नाम प्राणाधार है।
अन्तस में आपका स्वरूप है प्रकाशवान
जीवन में आपके विचार ही तो सार है। पथ हो प्रशस्त साथ, आपका आशिष रहे मेरा मान धन गुरु, आपका दुलार है।
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गुरु दूर नहीं हैं कभी मुझसे
घट में बन प्राण विराज रहे।
मुनि पुष्कर पावन नाम महा
हिंसा का ना नामोनिशान मिले
सत् राह पे सारा समाज रहे।
चहुँ ओर दया का ही राज रहे।
कोई जन्म या योनि मिले मुझको
मन पुष्कर से अविभाज्य रहे।
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