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पुष्कर गुच्छकम्
-आर्या प्रभाकुमारी जी म.
(संस्कृत)
पुष्करं पुष्पसदृशं, मार्दवादिगुणयुतम्
उपाध्यायं नमोऽस्तु ते, पुष्कराख्यं महामुनिम् ॥१ ॥
पुष्कराख्यं तीर्थराजं जनाः यांति सद्भावतः । जंगम तीर्थ- पुष्करः सर्वान्लाभं प्रयच्छति ॥२॥ श्रावकाः भ्रमरा इव, सेवायामतिष्ठन् तव । प्रमुदितमनसा हि, श्रुत सौरभमगृण्हन् ॥ ३ ॥ यथा पुष्पानि सूद्याने, विविध वर्ण संयुता । हरिता श्वेत पीताश्च, फुल्लति समभावतः॥४॥
संघर्ष नैव कुर्वन्ति, नते निन्दति परस्परम् । तद्वत् श्रमणसंघेतु, पुष्करो मुनि शोभते ॥ ४ ॥
ऐक्यताया महानेता, उदारचेता सद्गुणी । वन्देऽहं चरणाम्भोजं, मुहुर्मुहु सद्भावतः॥६॥
शरीर सौष्ठ्यं जनाः दृष्ट्वा, भव्या मुग्धा भवन्ति हि । चित्रलिखितैव नराः धर्मश्रवण तत्पराः ॥७ ॥
सुशिष्याय पदं दत्वा स्वकार्यं सिद्धमकरोत् । समाधि शान्त भावेन, अमरे प्राप्ताऽमरत्वम् ॥८ ॥
पुष्कराऽष्टकं ये भव्याः पठन्ति नित्यमेव हि। आधि व्याधिरूपाधिश्च, सर्वथैवमुपशाम्यति ॥९॥
मदीयं पुण्यगुच्छकं, समर्पयामि सद्भावतः स्वीकुरु मेऽनुकंपया, शुभाषीशं प्रयच्छ मे ॥१०॥
उपाध्याय श्री पुष्कर मुनि स्मृति ग्रन्थ
पुष्कर गुच्छक
- आर्या प्रभाकुमारी जी म.
( हिन्दी अर्थ )
पुष्कर मुनि पुष्प के समान क्षमा, मृदुता, आर्जवादि १० यति धर्मों से युक्त तथा उपाध्याय पद से अलंकृत ऐसे पुष्कर मुनि को मैं वंदन करती हूँ ॥ १ ॥
तीर्थों में श्रेष्ठ पुष्कर तीर्थ पर लोग सद्भावना से जाते हैं। यह जंगम पुष्कर तीर्थ सब जगह जा-जाकर लाभ देते हैं ॥ २ ॥
श्रावक जन भंवरे के समान आपकी सेवा में रहते थे। प्रसन्न मन से शास्त्र सिद्धान्त की सुगंध लेते थे ॥ ३ ॥
सुंदर बगीचे में अनेक प्रकार के पुष्प के पौधे रहते हैं। कोई नीले, पीले एवं श्वेत कुसुमों को धारण करते हैं ॥४ ॥
वे आपस में लड़ाई, झगड़ा नहीं करते हैं। एक दूजे की निन्दा भी नहीं करते हैं। वैसे ही वाद-विवाद से रहित श्रमणसंघ में पुष्कर मुनि सुशोभित होते थे ॥५ ॥
एकता के महानेता, उदार, विशाल भावना वाले, सद्गुणों के भंडार ऐसे महामुनि के चरण-कमलों में मैं बार-बार वंदन करती हूँ ॥ ६ ॥
शरीर का सौन्दर्य देखकर भविजन मुग्ध होते थे। चित्रलिखित पुतले के समान धर्म-श्रवण में स्थिर एवं तत्पर हो जाते थे ॥७॥
सुशिष्य (देवेन्द्रमुनि को) आचार्य पद का महोत्सव कर उन्हें पद पर आसीन कर दिया। तत्पश्चात् स्वकार्य भी सिद्ध कर लिया। अर्थात् स्वर्ग सिधार गए। संलेखना संथारा एवं समाधि भाव से अमरत्व को प्राप्त कर लिया ॥८॥
जो भवि आत्माएँ “पुष्कर अष्टक" का सदैव पठन पाठन करेंगी। उनकी आधि, व्याधि और उपाधि, दुःख, दारिद्र सब नाश हो जायेगा। मंगल ही मंगल बरसेगा ॥ ९ ॥
अपना यह पुष्पगुच्छक आपको समर्पण कर रही हूँ। मुझ पर दया करके इसे स्वीकार करिए, और मुझे शुभाशीष दीजिए ॥१० ॥
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