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श्रद्धा का लहराता समन्दर
आध्यात्मिक जगत के सूर्य
-शासन प्रभाविका महासती श्री शीलकुंवर जी म. सा.
(स्व. महासतीश्री धूलकुंवरजी म. की सुशिष्या)
आगम साहित्य में वर्णन है कि शिष्य की शोभा विनययुक्त | विचलित नहीं हुए। यहाँ तक कि भारत के राष्ट्रपति ज्ञानी जैलसिंह प्रवृत्ति में रही हुई है, “सीसस्स सोहा विणए पवित्ति" जिस शिष्य | जी गुरुदेवश्री के प्रवचन में उपस्थित हुए, गुरुदेवश्री का ध्यान का में विनय की प्रधानता होती है, वही शिष्य प्रगति के पथ पर अपने 1 समय हो गया, आपश्री उसी समय जाप करने के लिए एकान्त मुस्तैदी कदम बढ़ाता है। मैंने देखा है, अनंत आस्था के केन्द्र शांत स्थान पर पधार गए। उसी तरह आपश्री के प्रधान शिष्य उपाध्याय पूज्य गुरुवर्य श्रद्धेय श्री पुष्कर मुनिजी म. को। आपके देवेन्द्र मुनिजी म. को स्व. आचार्य सम्राट् श्री आनन्द ऋषि जी म. जीवन के कण-कण में, अणु-अणु में सद्गुरुदेव के प्रति अपार सा. उपाचार्य पद प्रदान कर रहे थे पर आपश्री ध्यान का समय आस्था थी, आप सर्वात्मना समर्पित संत रल थे। सद्गुरुदेव श्री होने से आचार्यश्री को वंदन कर चल दिए। यह इस बात का ताराचंद्र जी म. के संकेत को समझकर आप उसी प्रकार की प्रवृत्ति प्रतीक है कि सद्गुरुदेव के मन में ध्यान के प्रति कितना अधिक करते थे, आपके अन्तर् हृदय में यह भव्य भावना सदा अठखेलियाँ रुझान था। करती रही कि सद्गुरु ही हमारे जीवन-नौका के नाविक हैं उनकी
उनका जीवन परोपकार-परायण था। किसी भी दीन-दुःखी को आज्ञा के अनुसार ही हमारी सारी प्रवृत्ति होनी चाहिए।
देखकर, व्याधि से संत्रस्त देखकर करुणा से छलकने लगता था। रामायण में श्रवण कुमार का वर्णन आता है, जो अपने आपश्री के सान्निध्य में आकर हजारों व्यक्तियों के जीवन का माता-पिता के प्रति पूर्ण समर्पित थे। वैसे ही गुरुदेवश्री महास्थविर कायाकल्प हुआ, अधर्म से धर्म की ओर उनकी प्रवृत्ति हुई। ताराचंद्र जी म. के प्रति समर्पित थे। राजा दशरथ के वचनों को साधनामय जीवन की प्रेरणा पाकर वे निहाल हो गए। शिरोधार्य कर मर्यादा पुरुषोत्तम राम वन के लिए प्रस्थित हो गए,
उपवन में सुमन खिलता है और अपनी मधुर सौरभ से सारे जिस प्रकार राम ने पिता की आज्ञा को शिरोधार्य किया, वैसे ही
उपवन को महका देता है, और अन्त में मुझा जाता है, वैसे ही आप सद्गुरुदेव की आज्ञा को शिरोधार्य कर कार्य करते थे। आगम
सद्गुरुवर्य ने अपने सद्गुणों की सौरभ से भारत की भूमि को साहित्य के अध्ययन से यह स्पष्ट है कि गणधर गौतम का श्रमण
महकाया और जीवन की सांध्य बेला में संथारा कर उन्होंने स्वर्ग भगवान् महावीर के प्रति अपार राग था, वैसे ही आपका भी अपने
की राह ग्रहण की। किन्तु उनका यशस्वी जीवन आज भी सभी के गुरुदेव के प्रति अपार स्नेह था। आपको तथा महास्थविर
लिए प्रेरणा का स्रोत है। श्रीताराचंद्रजी म. को देखकर गणधर गौतम और भगवान् महावीर की सहज स्मृति हो आती थी।
यदि यह कह दूँ कि गुरुदेवश्री आध्यात्मिक जगत के सूर्य थे
तो अतिशयोक्ति नहीं होगी, सूर्य को निहार कर कमल खिल उठते इस विराट् विश्व में प्रतिदिन हजारों प्राणी जन्म लेते हैं और
हैं, अंधकार नष्ट हो जाता है, चारों ओर आनंद और उल्लासमय मृत्यु के शिकंजे में फँसकर सदा-सदा के लिए विदा भी हो जाते हैं
वातावरण चमकने लगता है, वैसे ही आपश्री के जीवन से पर किसी को पता नहीं चलता कि उन्होंने कब जन्म लिया और
श्रद्धालुओं के हृदय कमल खिल उठे और उनके अज्ञान अंधकार कब संसार से विदा हो गए पर कुछ ऐसी विशिष्ट आत्माएँ होती
को सदा आप नष्ट करते रहे। हे गुरुदेव! आप महान् थे, हमारी हैं, जो अपने मंगलकारी कार्यों के द्वारा जन जन के अन्तर हृदय में
अनंत आस्थाओं के केन्द्र थे, आज आपकी भौतिक देह हमारे बीच अपना विशिष्ट स्थान बनाती हैं, और उन्हें संसार कभी विस्मृत नहीं
में नहीं है किन्तु आपका यशस्वी जीवन हमारे सामने है और वह कर सकता। उनकी स्मृति जन-मानस में सदा बनी रहती है। परम
जीवन सदा-सदा हमें प्रेरणा प्रदान करता रहेगा। हम भी आपकी श्रद्धेय पूज्य गुरुदेवश्री ऐसे ही विशिष्ट महापुरुष थे, वे इस प्रकार
तरह साधना के क्षेत्र में आगे बढ़ते रहें, यही श्रद्धा सुमन समर्पित। जीए कि उनका जीवन जन-जन के लिए प्रेरणा स्रोत रहा, उनके जीवन में तप और त्याग की प्रधानता रही। जप साधना के प्रति आपश्री की विशेष रुचि रही, नियमित समय पर जप करना आपश्री को पसन्द था, यही कारण है कि आप भोजन छोड़ सकते साधारण लोगों की सेवा ही जब मनुष्यों को महान् बना देती है थे पर भजन का समय नहीं छोड़ सकते थे। जीवन में कई बार ऐसे तो संघ सेवा यदि तीर्थंकर पद प्राप्त करा दे तो उसमें क्या प्रसंग भी आए जिसमें सामान्य साधक विचलित हो जाता है और आश्चर्य?
-उपाध्याय श्री पुष्कर मुनि वह सोचता है कि जप बाद में कर लेंगे किन्तु गुरुदेवश्री कभी भी
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