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19.6
उपाध्याय श्री पुष्कर मुनि स्मृति-ग्रन्थ । गुरुदेवश्री जिस युग में जन्मे उस युग में अरावलियों के पहाड़गुरुदेवश्री की पावन प्रेरणा से मद्रास में दक्षिण भारतीय स्वाध्याय में बसे हुए गाँव में किसी प्रकार की सुविधाएँ नहीं थीं। उदयपुर संघ की स्थापना हुई, जिसमें बड़े-बड़े श्रेष्ठिगण भी पर्युषण के आठ पहुँचना भी हमारे लिए एक समस्या थी। सुबह पांच बजे रवाना दिनों में प्रवचन करने के लिए जाने लगे हैं, गुरुदेवश्री की प्रेरणा से होते तब जाकर हम सांयकाल तक उदयपुर पहुँचते। कितनी उस वर्ष अनेक सामाजिक, धार्मिक और आध्यात्मिक कार्य हुए। घाटियों को पार करना पड़ता, कितने नदी और नालों को लांघना
सन् १९९० के वर्षावास में सादड़ी में रहने का बहुत बड़ा पड़ता, जरा-सी असावधानी हो जाए तो हड्डी-पसली एक होने का
अवसर मिला, उस वर्षावास में भी मैंने गुरुदेवश्री को बहुत ही डर था। उस गाँव में जन्म लेकर के गुरुदेवश्री सद्गुरुदेवश्री के
निकटता से देखा, यों तो प्रतिवर्ष मैं गुरुदेवश्री के दर्शन के लिए चरणों में पहुंच गए और साधना कर और ज्ञान की आराधना कर
पहुँचता रहा हूँ, उनका वरदहस्त सदा हमारे पर रहा है और प्रगति के पथ पर बढ़ते चले गए।
रहेगा, इसी मंगल भावना के साथ मैं श्रद्धांजलि समर्पित करता हूँ। गुरुदेवश्री का जो भी विकास हुआ, उसके पीछे उनका प्रबल पुरुषार्थ था। उनके मन की लगन थी क्योंकि बड़े गुरुदेव बहुत ही
सीधे और सरल परिणाम के धनी थे। वे केवल टकोर करते थे आगम व दर्शन के गंभीर ज्ञाता ] FDY किन्तु टकटक नहीं। उन्होंने गुरुदेवश्री को अध्ययन के लिए प्रेरणा दी किन्तु दिन-रात श्रम कर गुरुदेवश्री ने अपना विकास किया और
-भंवरलाल फुलफगर B साथ ही अपने शिष्यों का भी उन्होंने विकास करवाया। यही कारण
(घोड़नदी) | है कि उनके प्रधान शिष्य देवेन्द्रमुनिजी म. आज श्रमणसंघ के तृतीय पट्टधर आचार्य पद पर सुशोभित हैं, जो गुरुदेवश्री के
परम श्रद्धेय उपाध्यायश्री पुष्कर मुनिजी म. के दर्शनों का P3 गौरव में अभिवृद्धि कर रहे हैं। गुरुदेवश्री का महान व्यक्तित्व हम
सौभाग्य सन् १९६८ को बम्बई में हुआ, जहाँ पर परम विदुषी PHY सभी के लिए सदा-सदा प्रेरणा देता रहेगा, यही उनके प्रति हार्दिक साध्वीरल श्री प्रमोदसुधा जी म. वहाँ पर विराज रही थीं। 96949 श्रद्धांजलि। मैं उनका बाल सखा भी आध्यात्मिक विकास करता । प्रमोदसुधा जी म. ने अपने प्रवचन में कहा, श्रद्धेय उपाध्यायश्री रहूँ, यही चरणों में भावभीनी प्रार्थना और वंदना है।
पुष्कर मुनिजी म. आगम और दर्शन के गंभीर ज्ञाता हैं, ये निर्भीक
और स्पष्ट वक्ता हैं। एक दिन के दर्शन में ही हमने पाया कि । संगठन के प्रबल समर्थक थे गुरुदेव ) गुरुदेवश्री का अध्ययन बहुत ही गंभीर है। विचार चर्चा में
गुरुदेवश्री के आगमिक ज्ञान को देखकर हमारा हृदय अनंत आस्था -इन्द्रचन्द मेहता से नत हो गया। जब महासतीजी के मुखारबिन्द से यह बात सुनी
तो मैंने निश्चय किया कि अगला वर्षावास गुरुदेवश्री का घोड़नदी सन् १९७८ की बात है, मद्रास संघ के अहोभाग्य से परम
में कराया जाए। संघ से विचार-विमर्श कर हमने अपनी प्रार्थना श्रद्धेय उपाध्याय पूज्य गुरुदेव श्री पुष्कर मुनिजी म. का पदार्पण
जोरदार शब्दों में रखी। हुआ। मारवाड़ के सुदूर अंचल से चलकर गुरुदेवश्री मद्रास पधारे। हम सभी के हृदय कमल खिल उठे और मन मयूर नाचने लगे। गुरुदेवश्री ने बम्बई से पूना की ओर विहार किया। यद्यपि
हमारा हृदय आनंद से झूमने लगा। प्रस्तुत वर्षावास में हमने देखा बम्बई के घाटकोपर और कई संघों का अत्यधिक आग्रह चल रहा 903 दूर-दूर से बरसाती नदी की तरह जनता प्रवचन में उमड़ती थी, था। सभी संघ चाहते थे कि ऐसे महाज्ञानी गुरुओं का वर्षावास हमें
उपाध्यायश्री के प्रवचनों में गजब का प्रवाह था। राजस्थान की प्राप्त हो किन्तु घोड़नदी संघ का प्रबल पुण्य का उदय था कि कहावतें, राजस्थान की लोककथाएँ आदि का जब भी वे अपने । गुरुदेवश्री ने पूना के उपनगर में ही हमें चातुर्मास की स्वीकृति प्रवचनों में प्रयोग करते तो श्रोतागण में हँसी की फव्वारे छूट पड़ते।। प्रदान कर दी। हमें स्वीकृति मिली कि कुछ क्षणों के बाद घाटकोपर साथ ही उनके तात्त्विक और सारगर्भित प्रवचनों में आगम के गुरू (बम्बई) संघ भी वहाँ पहुँच गया, जिस संघ में जयंतीलाल जी गम्भीर रहस्यों को सुनते तो गुरुदेवश्री की अपार ज्ञानराशि के प्रति । मसकरिया आदि भी थे, जब उन्हें यह ज्ञात हुआ कि गुरुदेवश्री ने
सभी को सात्त्विक गौरव होने लगता। उपाध्यायश्री के प्रति । घोड़नदी का वर्षावास स्वीकार कर लिया है तो वे एकदम निराश ४० जनमानस में अनंत-अनंत आस्थाएँ जनमानस में उमड़ रही थीं। हो गए। उन्होंने घोड़नदी संघ को प्रार्थना की, आपका संघ छोटा है
___गुरुदेवश्री का हमारी जन्मभूमि सादड़ी पर असीम उपकार है, जबकि घाटकोपर में सात-आठ हजार घर स्थानकवासी समाज के
गरुदेवश्री के सादडी में सन १९२६. १९५१. १९६१ और १९९० हैं। यदि वहाँ पर चातुर्मास होता है तो कितनों को लाभ मिलेगा, प ल में चार चातुर्मास हुए और सभी चातुर्मास पूर्ण यशस्वी रहे, । इस दृष्टि से घाटकोपर संघ अनेकों बार घोड़नदी आया, हमने यही
8 गुरुदेवश्री की प्रेरणा से सादड़ी में संत सम्मेलन हुआ और श्रमण उन्हें निवेदन किया कि, हमारे को यह चिन्तामणि रत्न प्राप्त हुआ तक संघ का निर्माण हुआ। गुरुदेवश्री संगठन के प्रबल समर्थक थे, है, हम इसे अब आपको कैसे दे सकते हैं ?
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