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उपाध्याय श्री पुष्कर मुनि स्मृति-ग्रन्थ । अध्यात्मयोगी थे!
शोभा, भव्यात्माओं संत महात्माओं से है। उसका साज है। पंच
महाव्रतधारी त्यागी आत्मा जो भारतीय उद्यान के शोभायमान पुष्प -कमला माताजी (इन्दौर)
हैं, आपके ज्ञान-दर्शन-चारित्र एवं अमृतवाणी रूप पराग से अनेक
भविजनों को अपनी ओर आकर्षित करते हैं। और जिनवाणी के हे योगीराज! आपके गुणों का वर्णन करने में क्या यह जड़ माध्यम से चार गति में फंसे हुए अज्ञानी जीवों को बाहर निकालते लेखनी सक्षम हो सकती है ? नहीं। लेकिन मन के उद्गारों को प्रगट हैं अर्थात् अज्ञान की अंधेरी, अटवी में रगड़ते हुए अज्ञानी आत्मा करने में यही सच्ची सहायक है।
को मिथ्यात्व के घोर तिमिर से सम्यक्त्व के आलोक में ले जाते हैं हे पुष्करराज! आपश्री ने डगर-डगर, नगर-नगर में पाद भ्रमण
एवं भव-भ्रमण का अन्त करवाते हैं। उनमें से अनेक संत अब इस कर तरण-तारण के विशेषण को सार्थ किया।
धरती पर नहीं हैं किन्तु उनके असीम सद्गुण रूपी पुष्पों की सौरभ
हजारों वर्षों तक महकती है। "आप तिरे पर तारही, ऐसे श्री गुरुराज, वे गुरु मेरे उर बसो"
इस धरातल पर विराट् विश्व में अनन्त प्राणी जन्मते हैं और पुष्कर तीर्थ एक ही स्थान पर स्थित है, लेकिन आप तो
मृत्यु को प्राप्त होते हैं। अगले पड़ाव के लिए रवाना हो जाते हैं। चलते-फिरते सच्चे तीर्थ थे। भव्यजनों की ज्ञान-पिपासा को शान्त
कौन कहाँ से आया, कहाँ जायेगा, कोई अता-पता नहीं लगता है करने में सक्षम थे, वाणी में तो जादू ही था।
किन्तु कई भव्यात्माओं का जीवन इतना महान होता है कि जीवन __हे आत्मचिन्तक! प्रतिक्षण आत्मचिन्तन में ही व्यतीत होता था। की अंतिम श्वास तक स्व-पर की साधना में अपना जीवन सफल जब-जब भी सेवा का लाभ मिला। ज्ञान-चर्चा का ही मुख्य लक्ष्य
बना लेते हैं। रहता था पूज्यश्री का। आपकी चिन्तनरूपी धाराओं के द्वारा जो
इतिहास स्थानकवासी समाज के आदरणीय वंदनीय स्तुत्य 80 नवनीत निकला है वह युगों-युगों तक भव्य आत्माओं को पुष्ट }
जीवन सैंकड़ों संतों की गौरव गाथा से भरा पड़ा है। उसी श्रृंखला 2 करता रहेगा।
के मोती यथा नाम तथा गुण जिनका जीवन पुष्कर (सरोवर) की हे पुण्यपुज! तीनों योग पुण्य प्रतिभा से ओतप्रोत थे। गौर । भाँति निर्मल था ऐसे पूज्यपाद परम श्रद्धेय उपाध्यायश्री पुष्कर वर्ण। आकर्षक विशाल काया! मनोयोग-जन-जन हिताय, जन-जन मुनिजी म. सा. की पावन स्मृति में एक ग्रंथ प्रकाशित हो रहा है। सुखाय, वचन प्रतिभा भी अलौकिक थी। जिन-जिन आत्माओं को उस महान विभूति के गुणगान करने का लघु साहस मैं करने जा दर्शनों का लाभ प्राप्त हुआ, आपकी साधक मूर्ति ने अपना स्थान रही हूँ। बना ही लिया उनके हृदय में।
परम श्रद्धेय पुष्करमुनिजी म. सा. विशाल संघ रूपी आकाश सच्चे शिल्पी! पत्थर से प्रतिमा घड़े, पूजा लहे अपार। जड़ के क्षितिज पर उदय होने वाले सहन रश्मि दिवाकर थे। आपका पत्थर को भी अपनी टाँचनी के द्वारा उसे पूजनीय बना देता है सही।
बहुमुखी ज्योतिर्मय व्यक्तित्व जैन अजैन सभी क्षेत्रों में श्रद्धा का कारीगर।
केन्द्र था। आपका जीवन सरल एवं जप की सौरभ से महकता हुआ लेकिन आप तो चैतन्य शिल्पी थे। एक नन्हे से बालक को ज्ञान था। जीवन के उषा काल में ही ऐश-आराम से एवं सांसारिक र रूपी छैनी के द्वारा सभी गुणों में सम्पन्न बनाया। जो आज श्रमणसंघ प्रलोभन से ऊपर उठकर मोक्षमार्ग की आराधना हेतु संयमनिष्ठ के सरताज आचार्य पद को सुशोभित कर रहे हैं।
जीवन अंगीकार करना आपके जीवन की महान विशेषता रही है। ऐसे धीर! वीर! गंभीर! पू. आचार्यप्रवर को पाकर श्रमणसंघ
जप, साहित्य-सेवा एवं दया भाव से आप आजीवन लगे रहे। भी गौरव अनुभव कर रहा है। वैसे सभी शिष्यरल आपके हमारा परम सौभाग्य है कि ऐसी महान् विभूति द्वारा लिखा प्रतिभासम्पन्न हैं।
हुआ साहित्य पढ़ने का सुअवसर प्राप्त हुआ है। उग्र साधना अद्भुत 1 दृढ़ संकल्पी! महाप्रयाण भी पादोग-गमन संथारे द्वारा हुआ यह
समता एवं सरलता के फलस्वरूप जिस परम तत्व का साक्षात्कार भी आपकी गाढ़ साधना का परिचय है। हे ज्योतिपुंज! आज जहाँ
किया उसे आपने विश्व-कल्याण की भावना से प्रेरित होकर साहित्य भी विराज रहे हों। मैं शत्-शत् वन्दन युक्त भावभीनी श्रद्धांजलि
के रूप में रख दिया। महापुरुषों के सारगर्भित साहित्य हमारे अर्पित करती हूँ।
मार्गदर्शक हैं। उपाध्यायश्री जी का हमारे ऊपर बड़ा भारी उपकार है कि उन्होंने जीवन के अंधेरे रास्ते को तय करने के लिए उनका
साहित्य रूप दीपक दिया है। । जप की पावन ज्योति के चरणों में )
आप भव्य और आकर्षक शारीरिक सम्पदा से सम्पन्न होने के -सौ. मंजुला बहन अनिलकुमार बोटादरा (इन्दौर) साथ ही सेवा एवं जप की गरिमा से विभूषित थे। आप बहुमुखी
प्रतिभासम्पन्न विरल व्यक्तित्व के धनी और उत्कृष्ट चारित्रिक गुणों भारत संतों की नगरी है, अर्थात् भारत का गौरव भारत की से विभूषित अनुपम आध्यात्मिक विभूति थे। जीवन की अंतिम
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