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उपाध्याय श्री पुष्कर मुनि स्मृति-ग्रन्थ । गुरुदेवश्री के श्रीचरणों में हमारी और हमारे परिवार की सर्वोच्च शिखर को संस्पर्श करने वाले महागुरु थे। उनकी साधना सादर श्रद्धाञ्जलि।
बहुत ही अद्भुत थी। अनेकों बार गुरुदेवश्री की साधना के प्रबल
प्रभाव को देखने को हमें सौभाग्य मिला है, ऐसे अद्भुत कार्य हमने शिखर पुरुष : उपाध्याय गुरुदेव देखे हैं जिसकी सामान्य व्यक्ति कल्पना भी नहीं कर सकता। उनके
पास अनेकों सिद्धियाँ थीं। -पारसमल वागरेचा (बेंगलोर)
एक बार मेरी धर्मपत्नी बखती बाई प्रेतात्मा से पीड़ित थी। उपाध्याय श्री पुष्करमुनिजी म. की मुख मुद्रा पर सदा प्रसन्नता । अनेक उपचार किये पर ठीक नहीं हुई। गुरुदेवश्री के चरणों में झलकती थी, जब भी मैंने उनके दर्शन किए तब मैंने उन्हें प्रसन्न रायचूर वर्षावास में पहुंची और वह प्रेतात्मा जो पत्नी को अपार मुद्रा में ही पाया। उनके मुखारबिन्द को देखकर यह सहज अनुभूति कष्ट दे रही थी वह गुरुदेव के सदुपदेश से उनका शिष्य बन गयी होती कि वे एक सामान्य कुल में जन्मे एक नन्हें से ग्राम में पैदा | और सदा-सर्वदा किसी को भी कष्ट न दूँगी यह दृढ़ प्रतिज्ञा ग्रहण हुए। आज श्रमणसंघ के उपाध्याय पद पर आसीन हैं। लाखों-लाखों की। यदि किसी को सहयोग की अपेक्षा हुई तो अवश्य करूँगी। व्यक्तियों के वे श्रद्धा के केन्द्र हैं। यह उनकी सहज सौम्य मुद्रा से
धन्य है आपकी साधना को जिससे अनेक दुष्टात्मा पवित्रात्मा स्पष्ट होता है। जो महापुरुष प्रसन्नता के क्षणों में और चिन्ता के
बन गये। गुरुदेव के चरणों में मेरी व मेरी धर्मपत्नी तथा परिवार क्षणों में समभाव में रहते हैं, वे ही तो प्रगति के पथ पर अपने
की वन्दना। मुस्तैदी कदम बढ़ाते हैं। जो व्यक्ति प्रसन्नता के क्षणों में आनन्द से झूमने लगते हैं और दुःख के क्षणों में आँसू बहाने लगते हैं, वे व्यक्ति कभी भी महापुरुष नहीं बन सकते। महापुरुष बनने के लिए
। सफल सिद्ध जपयोगी थे गुरुदेव ) जीवन को तपाना/निखारना पड़ता है। स्वर्ण आग में तपकर ही तो
-अमृत मांगीलालजी सोलंकी (पूना) कुन्दन बनता है। ग्रेनाईट का पत्थर घिस करके ही तो चमकता है, जितनी-जितनी उस पर घिसाई होती है, उतना-उतना उसमें निखार उपाध्याय श्री पुष्कर मुनिजी म. एक सफल जपयोगी सिद्ध आता है।
पुरुष थे। उनके मंगल पाठ को श्रवण कर सभी मनोरथ पूर्ण होते श्रद्धेय उपाध्यायश्री का हृदय सरल था, उनकी मुखाकृति सौम्य थे। पूना वर्षावास में गुरुदेवश्री के दर्शन और सेवा का सौभाग्य हमें SODE
थी और उनका कार्य रसमय होता था, वे जिस किसी भी कार्य को प्राप्त हुआ। हमें यह अनुभव हुआ कि गुरुदेवश्री की साधना बहुत 1806
करते, तन्मयता के साथ करते। प्रस्तुत गुण के कारण ही वे ही गजब की है। हमारे परिवार में एक दो सदस्य इस प्रकार की "शिखर पुरुष" बन सके। वे श्रमणसंघ के श्रेष्ठ पद पर आसीन व्याधि से ग्रसित हो गये कि जिसका उपचार बड़े से बड़े डाक्टर के होकर भी सम्प्रदायवाद की भावना से ऊपर उठे हुए महापुरुष थे। पास भी नहीं था, पर गुरुदेवश्री के मंगलपाठ को श्रवण कर वे पूर्ण जो भी उनके संपर्क में आता, वह उनकी उदारता, सरलता और । स्वस्थ हो गये। जीवन में अनेक ऐसे भी प्रसंग आये जिस समय मन सहजता को देखकर प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकता।
में चिन्ताएँ समुत्पन्न हुईं अब क्या होगा? और हम गुरुदेव के चरणों उपाध्यायश्री साधनारत संत थे, उनकी साधना आत्मिक साधना में पहुँच गये तो हमारी चिन्ता सदा-सदा के लिए नष्ट हो जाती थी। थी। बिना साधना के जीवन में निखार नहीं आता, जितना तेल मेरे पिताजी जब भी गुरुदेव के चरणों में पहुँचते तब मन में होगा, उतना ही दीपक प्रज्ज्वलित होगा। बिना संचार के जो प्रचार एक संकल्प लेकर पहुँचते कि साहित्य के प्रकाशन हेतु मुझे इतना होता है, वह स्थायित्व लिए हुए नहीं होता। उपाध्यायश्री की साधना अनुदान देना है। उन्होंने गुरुदेवश्री से अनेकों बार निवेदन किया में जो स्थायित्व था उसके पीछे उनकी साधना का बल, तेज था, कि आप मुझे सेवा फरमाइये पर गुरुदेवश्री फरमाते जो भी तुम्हारी उस महान् साधक के चरणों में कोटि-कोटि वंदन। उनका मंगलमय
भावना हो वह लाभ ले सकते हो पर गुरुदेव ने अपने मुखारबिन्द आशीर्वाद हमें मिला है, जिसके फलस्वरूप ही हमारे जीवन में सुख से कभी नहीं फरमाया कि तुम्हें यह करना है। वस्तुतः गुरुदेवश्री और शांति की सुरसरिता प्रभावित हुई।
पूर्ण अनासक्त थे। उनके जैसे अनासक्त गुरुदेव का मिलना दुर्लभ ही
नहीं, अति दुर्लभ है। मैं और मेरा परिवार गुरुदेव के चरणों में । साधना के सर्वोच्च शिखर थे गुरुदेव ) भावभीनी श्रद्धाञ्जलि समर्पित करते हैं।
-राजमल सुराणा (पूना) ( त्याग, वैराग्य, संयम-साधना के जंगम तीर्थ) हर पर्वत में माणिक्य नहीं होता, हर वन में चन्दन नहीं होता,
-किशनलाल तातेड़ (दिल्ली) हर हाथी के गण्डस्थल में मुक्ता नहीं होती और हर व्यक्ति साधना के शिखर तक नहीं पहुँचता। परम श्रद्धेय सद्गुरुवर्य साधना के परम श्रद्धेय उपाध्यायश्री पुष्कर मुनिजी म. के तीन वर्षावास
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