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। श्रद्धा का लहराता समन्दर
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हम पर उनके अनन्त उपकार हैं।
-मोहनलाल चोपड़ा
(नाशिक)
जलते द्वीप रहेंगे, आपके गुणगान, नाम, सद्मार्ग, सत् प्रेरणा सदैव 2000 प्रकाशमान रहेगी।
यह आपके पवित्र चरणों का ही फल है जहाँ-जहाँ आप पधारे, आपके चरण सरोज पहुँचे, धर्म की महिमा रूपी पवित्र गंगा बही। आप ही के सुशिष्य श्री आचार्यप्रवर देवेन्द्र मुनिजी तृतीय पट्टधर के रूप में स्थानकवासी जैन परम्परा को सुशोभित कर रहे हैं।
पूज्य उपाध्यायश्री का समाचार सुनकर बहुत ही दुःख हुआ है। हमारे एक महान् संत आज हमारे बीच न रहे। पूज्य गुरुदेव को हम, हमारी परिवार की तरफ से श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं। उनके अनन्त उपकार और आशीर्वाद से हम आज इस मुकाम पर पहुँचे हैं।
हे सौम्य मूर्ति शत-शत प्रणाम !
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उपाध्याय पू. श्री पुष्कर विश्व-मैत्री
-जैन भूषण शिरोमणिचन्द्र जैन के प्रतीक थे गुरुदेव उपाध्याय श्री पुष्कर मुनि जी महाराज के समाधि मरण
। प्राप्त होने के समाचार सुनकर मैं ही नहीं वरन् सब जैन समाज
। -सुमति कुमार जैन स्तब्ध रह गया। अभी उस शिल्पकार द्वारा अपने भाग्यवान शिष्य 9851
की दीक्षा व शिक्षा से निर्माण की कई मंगल मूर्ति अपने उच्चतम भारतीय संस्कृति आध्यात्मिक संस्कृति है। इसमें श्रमण संस्कृति
पदासीन होकर चादर समारोह के रूप में समारोह के आनन्द की का अनुपम योगदान है, रहा है, रहेगा। श्रमण (साधु) हर वर्ग का आदरणीय व्यक्तित्व है, साध का मन घृणा, द्वेष, कलह आदि
स्मृतियाँ याद कर-कर चतुर्विध संघ का रोम-रोम पुलकित होता था 9000
कि गुरुदेव ने अपने जीवन का लक्ष्य पूरा समझकर शायद काल दुर्गन्धों से कभी दूषित नहीं होता, उसके मन की वसुधा पर समाज,
को भी इस समारोह में कोई विज न समझे, रुकने की आज्ञा दी व 509 राष्ट्र, संपदा, सम्प्रदाय, मत, मतान्तर की कोई भेद रेखाएँ नहीं
खुशी की शहनाइयाँ, नुपूर की ध्वनियाँ-नक्कारों की आवाज ठंडी होतीं, उसका मन पुष्प की तरह सत्य, अहिंसा और मैत्री की सुरभि
पड़ी ही थी कि अकस्मात् महाप्रयाण कर दिया। किसी ने ठीक ही प्रसरित करता रहता है। पूज्य उपाध्याय ज्योति पुरुष,
कहा हैअध्यात्मयोगी, राजस्थानकेसरी, प्रसिद्धि प्राप्त वक्ता उपाध्याय श्री पुष्कर मुनिजी का जीवन साधना का आदर्श था। समाज के उत्कर्ष, “फलक देता है जिनको ऐश, उनको गम भी होते हैं। समाज के संगठन के प्रबल प्रेरक, हजारों मीलों की पदयात्राएँ, जहाँ बजते हैं नक्कारे, वहाँ मातम भी होते हैं।"
180.000 अगणित कष्ट सहन करते हुए, जैन-अजैन सभी के श्रद्धानत अनेक हम अनुयायी तुम पथ प्रदर्शक, तुम कर्म चितेरे, हम दर्शक। विशेषताओं के धनी, अपने कृतित्व के प्रति कभी अहंकार भाव न
तुम सौम्य मूर्ति एक सरस बिम्ब, इस पर स्नेह ना प्रतिबिम्ब। रखने वाले, अनासक्त योगी की तरह काम में जुटे रहकर, फल की
करी राह हमारी देदीप्यमान, थे कर्मयोगी, थे निरभिमान। प्रतीक्षा न करते हुए ऐसे विराट, विशाल व्यक्तित्व उपाध्यायश्री के लिए जन-जन अन्तर्हदय से निसृक्त श्रद्धा का अर्थ सदैव समर्पित
इक सरस सात्विक निष प्राण, हे सौम्य मूर्ति, तुम्हें शतशत प्रणाम। करता रहा है, आज भी श्रद्धानत है। जिस महान व्यक्तित्व की विशेषताओं को कभी परिगणित नहीं किया जा सके उस विराट् महापुरुष के लिये कुछ भी कहना हो तो संक्षेप में यही कहा जाएगा
अवर्णनीय उपक कि वे सर्वथा निर्विवाद महापुरुष थे। अहिंसा, सत्य, मैत्री के प्रतीक थे, मानव-मात्र के लिये वन्दनीय, श्रद्धेय उपाध्यायश्री का आज हम
-बद्रीलाल जैन अभिभाषक
आममापक.30 सभी के बीच में से चले जाना, श्रमण संस्कृति में करारी चोट है।
यह जानकर अत्यन्त दुःख हुआ कि ज्ञानमहोदधि, चारित्रवान, ataa हम सभी के लिये यह असहनीय है, पर इस काल की घड़ी के आगे । बहुश्रुत अध्यात्मयोगी उपाध्याय श्री पुष्कर मुनिजी का स्वर्गवास हो
। सभी नतमस्तक हैं।
गया। पूज्य उपाध्यायजी के महान गुणों तथा उपकारों का वर्णन आज आप देह रूप में हमारे समक्ष न हों, परन्तु आपका अवर्णनीय है। पूज्य श्री के पुण्यप्रताप व धर्म-साधना ने श्री देवेन्द्र पडा । स्मरण, आप द्वारा दी गयी विचारधारा, चिन्तन, वाणी सदैव हमारे । मुनि जी जैसे शिष्य का निर्माण किया जो श्रमणसंघ का पट्टधर न्य पास रहेगी, व जन-जन के लिए सदैव प्रकाश का प्रतीक रहेगी, नियुक्त हुआ। गुरु विछोह की व्यथा भी अवर्णनीय होती है। उनके लाभ जिस प्रकार आकाश में झिलमिल-झिलमिल तारे और इस भू पर । निधन से समाज की जो क्षति हुई वह अपूरणीय है।
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