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उपाध्याय श्री पुष्कर मुनि स्मृति-ग्रन्थ । P: महान् संत थे। उन्हें अपने बड़प्पन का कभी अहंकार नहीं आया, शब्दावली कब व्यक्त कर पाई है, मैं ज्यों-ज्यों स्मरण करता हूँ,
जो कुछ भी उनमें था, सहज था, प्रदर्शन से वे कोसों दूर थे। यदि त्यों-त्यों गुणों की एक लम्बी पंक्ति मेरी आँखों के सामने खड़ी हो किसी व्यक्ति को संत्रस्त देखते तो उनका हृदय दया से द्रवित हो जाती है। गुरुदेवश्री के जीवन में वस्तुतः अद्भुत विशेषताएँ थीं।
यह सत्य है कि हर पर्वतमाला में चन्दन के वृक्ष नहीं होते, हर न मैंने गुरुदेवश्री के दर्शन पहले कब किए यह तो पूर्ण स्मरण
हाथी के मस्तिष्क में मोती नहीं पैदा हुआ करते वैसे ही साधु का नहीं किन्तु सन् १९८१ में गुरुदेवश्री का वर्षावास राखी में था, उस
वेश पहन लेने से ही कोई साधु नहीं बन जाता। द्रव्य वेश साधु के 356 वर्ष मैं गुरुदेवश्री के दर्शन हेतु राखी पहुँचा। मुझे यह आशा नहीं
बाहर की पहचान है किन्तु अंतरंग जीवन ही सच्चे साधु की
पहचान है, यदि अंतरंग जीवन साधुता से मंडित नहीं है तो बाह्य थी कि गुरुदेवश्री मुझे पहचान पायेंगे पर गुरुदेवश्री को जरा-सा परिचय दिया कि मैं भावरी का हूँ और इन दिनों मैं पाली रहता हूँ
जीवन केवल हड्डियों का ढांचा है, उसमें प्राण नहीं हैं। 6 और गुरुदेवश्री ने पूरा परिचय दे दिया। भांवरी में तो हमारे पूर्वज उपाध्याय गुरुदेवश्री पुष्कर मुनिजी म. के जीवन में मणिकांचन 36DD बहुत ही विचरण करते रहे हैं। चातुर्मास वगैरह भी हुए हैं। पूज्य । संयोग हुआ था, वे बाह्य वेश-भूषा से भी संत थे तो आन्तरिक BE गुरुदेवश्री की आत्मीयता ने चुम्बक की तरह मुझे खींच लिया, जीवन से भी संत की गरिमा से मंडित थे, गुरुदेवश्री के दर्शनों का
2 उसके पश्चात् मैं गुरुदेवश्री की सेवा में बीसों बार पहुँचा। सन् । सौभाग्य अनेकों बार मिला, जितनी बार मिला, उतनी-उतनी श्रद्धा ० १९८६ का वर्षावास हमारे पाली में हुआ। उस वर्ष गुरुदेव के बहुत दृढ़ से दृढ़तर होती गई। स्वर्गवास के दो महीने पहले गुरुदेवश्री
ही निकट रहने का अवसर मिला। मैंने देखा कि गुरुदेवश्री निर्लेप हमारे कमोल गांव में पधारे। चार दिन विराजे, गुरुदेवश्री का यह
नारायण हैं, उन्हें किसी भी पदार्थ के प्रति आसक्ति नहीं है। यदि पदार्पण संघ में अपूर्व उत्साह का संचार करने वाला सिद्ध हुआ। यों EP कोई आया तो अच्छी बात, नहीं आया तो अच्छी बात। यदि आता गुरुदेवश्री की असीम कृपा हमारे गांव में रही है और मेरे जन्म के
तो उसे प्यार से अपने पास बिठाते, वार्तालाप भी करते। मैं सोचने । पूर्व गुरुदेवश्री का पदार्पण विक्रम संवत् १९९५ में हुआ था। म लगा वस्तुतः गुरुदेव को जिस संघ ने अध्यात्मयोगी की उपाधि प्राप्त
गुरुदेवश्री का सन् १९३८ में चातुर्मास हुआ। सन् १९६६ का श की है, वह उपाधि सटीक है, गुरुदेव वस्तुतः अध्यात्मयोगी हैं।
चातुर्मास हमारे गाँव से एक किमी. दूर पदराड़ा में हुआ। इस गुरुदेवश्री के अहमदनगर, इन्दौर, जसवंतगढ़, सादड़ी, पीपाड़, चातर्मास से पर्व हमारे प्रान्त की आर्थिक दष्टि उतनी समद्ध नहीं LOD सिवाना सभी वर्षावास में मुझे जाने का अवसर मिला। चद्दर
थी। गुरुदेवश्री के वर्षावास के पश्चात् हमारे प्रान्त की आर्थिक FE अवसर के समारोह पर भी मैं. वहीं था और गुरुदेवश्री का
स्थिति दिन प्रतिदिन सुधरती ही चली गई। जब आर्थिक दृष्टि से o स्वर्गवास हुआ तब भी मैं उदयपुर में ही था। गुरुदेवश्री के सम्पर्क
सुधार आया तो सभ्यता में भी परिवर्तन होना स्वाभाविक था, पहले 64 में आने से मेरे जीवन में बहुत कुछ परिवर्तन हुआ। यों हमारा पूरा
हमारे प्रान्त में मुख्य रूप से खेती का धंधा था, किन्तु अब हमारे परिवार गरुदेवश्री के प्रति सर्वात्मना समर्पित रहा है। सन १९९१
प्रान्त की सैंकड़ों दुकानें सूरत में लग गईं हैं और सभी ने बहुत में मैंने आचार्य अमरसिंह जी म. की सम्प्रदाय की जमीन जो वर्षों DD से श्रावकों के अधीन थी, उस पर स्थानक बनवाया और गुरुदेवश्री
अच्छी प्रगति की है, यह सब गुरुदेवश्री के ध्यान मंगलपाठ का ही जल का पीपाड़ चातुर्मास जाने के समय वहाँ पर विराजना रहा,
प्रभाव है। आज हमने जो कुछ भी आर्थिक दृष्टि से उन्नति की है, गुरुदेवश्री के वहाँ पर विराजने से मैं अपने आपको धन्य-धन्य
उसका मूल गुरु कृपा में ही रहा हुआ है। 01 अनुभव करने लगा कि मेरा श्रम सफल हुआ।
गुरुदेवश्री के गुणों का क्या वर्णन किया जाए, जितना-जितना OID गुरुदेवश्री आज हमारे बीच नहीं हैं किन्तु उनका मंगलमय
मैं सोचता हूँ, उनके एक नहीं, हजारों सद्गुण मेरे स्मृत्याकाश में HD जीवन हमारे लिए सदा ही प्रेरणा का स्रोत रहा है। ऐसे महामुनि ही
चमकते रहते हैं। हे गुणपुंज गुरुदेव आपके चरणों में कोटि-कोटि संघ के गौरव रहे हैं और जिनकी विमल छत्र छाया में ही हमारा
वंदन, मेरी भावभीनी श्रद्धार्चना स्वीकार करो। 8 संघ प्रगति कर रहा है, ऐसे गुरुदेव के चरणों में भावभीनी वंदना
करते हुए मैं अपने आपको धन्य-धन्य अनुभव कर रहा हूँ। । कोटि-कोटि अभिनन्दन-वंदन
1949 गुणपुंज गुरुदेव के चरणों में
-राजकुमार जैन -खेतरमल डोसी
सन् १९८८ का वर्षावास इन्दौर की जनता के लिए वरदान
रूप रहा। स्वर्गीय आचार्यसम्राट् श्री आनंद ऋषिजी म. के चरणों में गुरुदेवश्री के संबंध में क्या लिखें? शब्दों के बाट उनके अनंत । सन् १९८७ का अहमदनगर वर्षावास संपन्न कर उपाध्यायश्री PP गुणों को तोलने में सदा ही असमर्थ रहे हैं, असीम गुणों को ससीम पुष्कर मुनिजी म. महाराष्ट्र की धरा को पावन करते हुए जब NER कन्यता
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