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उपाध्याय श्री पुष्कर मुनि स्मृति-ग्रन्थ ।
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जाती थी। उसमें भावों और कल्पना का ऐसा अद्भुत सामन्जस्य । महाव्रतों का दृढ़ता से पालन जैसे अगणित सद्गुण एक साथ होता था कि श्रोता या पढ़ने वाला चकित हुए बिना नहीं रहता था। विद्यमान थे फिर भी अहंकार उन्हें छू तक नहीं गया था। ऐसे महान भाषा सौष्ठव, भाव माधुर्य, सहज प्रसूत कल्पनाशीलता उनकी । संत का हमारे बीच से विदा लेना पूरे समाज के लिये एक ऐसी कविता के अभिन्न अंग थे।
अपूरणीय क्षति है जिसकी पूर्ति होना असंभव है। र उनका वैदृष्य अप्रतिम था। विद्वत्ता एवं पाण्डित्य उनके ज्ञान । पू. उपाध्याय श्री के सानिध्य में ही आपने वीतरागीकी अक्षय निधि था। इसके साथ ही वे बहुत ही विनयशील थे। जीवन प्रारम्भ किया और उनकी असीम कृपा भी आप पर सदा अभिमान उनके स्वभाव से कोसों दूर था। संसार की कोई बात बनी रही; आपके आध्यात्मिक, साहित्यिक एवं वैचारिक उत्कर्ष में उनकी ज्ञान परिधि से बाहर नहीं थी। नीतिकार का कथन है कि सदा उनकी प्रेरणा रही व आप उनके स्नेह-भाजन भी रहे। इतने वह विद्या या ज्ञान निरर्थक है जिससे मनुष्य में विनय सम्पन्नता न दीर्घकाल का सान्निध्य जब छूटता है तो दुःख होना स्वाभाविक है हो-“विद्या ददाति विनयम्" के वे मूर्तिवान थे। उनके स्वभाव की। लेकिन काल की गति निराली होती है। इस अवसर पर माताजी, विनम्रता के साथ-साथ आचार में दृढ़ता तथा अनुशासन में कठोरता देवकुमार भाई, मैं व हमारा परिवार हृदय के दुःख को, सम्वेदना
थी इसीलिए अपनी भूल या गलती के लिए वे अपने आपको कभी J को अभिव्यक्त कर मन को हल्का कर सकते हैं, समझा सकते हैं 5DDक्षमा नहीं कर पाते थे और उसका प्रायश्चित्त करने के लिए वे लेकिन आपको सान्त्वना समर्पित कर सकने की क्षमता हममें अपनी साधना को और अधिक कठोर बना लेते थे।
नहीं है। उन्होंने सदैव आचरण की शुद्धता पर विशेष बल दिया। वह श्री वीर प्रभू से यही प्रार्थना है कि वे स्वर्गस्थ आत्मा को चिरआचरण चाहे कायिक हो या मानसिक हो या वाचिक हो, तीनों में शांति व हम सबको उनके बताये मार्ग पर चलने की सद्प्रेरणा दें। एकरूपता होनी चाहिये। जो मन में है वही बोला जाय, जो बोला जाय वही किया जाय इसी में आचरण की शुद्धता और सार्थकता है। आचरण मनुष्य के जीवनोत्कर्ष का सोपान है जो मनुष्य को जीवन की ऊँचाइयों तक पहुँचा देता है। मुनि प्रवर की जन सामान्य
वे दृढ़ संकल्पशील थे....... को देशना रही है कि मनुष्य चूँकि समस्त प्राणियों में श्रेष्ठ है, अतः 390194 वह अपने आचरण में इस प्रकार का सुधार करे कि वह सहज
-प्रेमचन्द चौपड़ा और स्वाभाविक हो, उसमें कृत्रिमता या बनावटीपन या दिखावा पूज्य उपाध्यायश्री का व्यक्तित्व बहुत ही लोकप्रिय था। लोक नहीं हो। उसके जीवनकाल में उसके द्वारा इस प्रकार का आचरण श्रद्धा का भाजन था, उनकी कुछ ऐसी विशेषताएँ थीं जो हर किया जाय कि उससे दूसरे क्षुद्र से क्षुद्रतर प्राणि का भी अपघात सामान्य में नहीं मिलतीं। उनकी वाणी में ओज था, उनके जीवन में नहीं हो। जो ऐसा करता है वह निश्चित रूप से जीवन मूल्यों एवं निर्भीकता, दृढ़ संकल्पशीलता थी, जिसका साक्षात् अनुभव हमें जीवन के उच्चादर्शों को प्राप्त कर लेता है। आचरण की इस भुसावल शुभागमन दि. १९.४.८८ पर हुआ। आप ही की ओजस्वी कसौटी पर मुनि प्रवर स्वयं अपना आचरण कसते रहे। यही कारण एवं निर्भीक वाणी की वजह से ही शानदार भवन निर्माण कार्य
है कि उनके आचरण ने उन्हें मानव-जीवन की ऊँचाइयों तक पहुँचा । हुआ, जिसे भुसावल का स्थानकवासी समाज कभी भी भुला नहीं कह दिया और सदा सर्वदा के लिए वे हमारे वन्दनीय बन गए।
सकता। उस दिव्य व्यक्तित्व के प्रति हम श्रद्धावनत हैं और उनकी वे साधनाप्रिय थे। चिन्तन, मनन एवं जपसाधना में ही उनका उस्मृति में उनके चरणों में अपने श्रद्धा सुमन अर्पित करते हैं। समय व्यतीत होता था। कई ग्रंथों को आपने संपादित किया। एक
सच्चे गुरु के रूप में आपने अपने शिष्यों को हर प्रकार से योग्य बनाया, अध्ययन कराया। प्रवचन, लेखन आदि कलाओं में दक्ष
बनाया। उसका साक्षात् उदाहरण, उन्हीं का एक शिष्य आज कितने महान ! कितने सरल !
आचार्य भगवंत के उच्चतम शिखर पर विराजित है। शिष्यों के प्रति
उनकी असीम वत्सलता देखकर मन विभोर हो उठता है। -राजेन्द्र लुंकड़ (बम्बई)
या उनके विचार बहुत ही उदार एवं विराट् थे। उनमें समाज एवं पूज्य उपाध्याय गुरुदेव श्री पुष्कर मुनिजी म. सा. के देवलोक । राष्ट्र अभ्युदय तीव्र आकांक्षा-बिज थे। उन्हें समाज, प्रांत, प्रदेश एवं होने के समाचार से हृदय को गहरा आघात लगा। पू. उपाध्याय श्री राष्ट्र हमेशा याद रखेगा। उन्होंने अपनी प्रतिभा, वक्तृत्व व कृतित्व के जीवन में सादगीपूर्ण विद्वता, सरल व निरभिमानी व्यक्तित्व, । से जिनशासन की जो सेवा की वह सदियों तक याद रखी जाएगी। सबको साथ लेकर चलने की अपूर्व क्षमता, महान तपस्वी, पंच। जिस प्रकार से गन्ना बाहर से कठोर दिखता है पर भीतर कण-कण
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