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श्रद्धा का लहराता समन्दर
में मधुरस व्याप्त रहता है, उसी प्रकार उपाध्यायप्रवर के जीवन के कण-कण में मधुर स्नेह रस व्याप्त था।
जैन संघ के निर्मल गगन से आज उस चंद्र का अभाव सब को खटक रहा है। उनकी शांतिदायिनी शीतल अमृत किरणें हमसे दूर चली गयी हैं। दिवगंत आत्मा अपने आत्मिक गुणों को प्राप्त करे। चिरशांति प्राप्त करे। यही शासनदेव से करबद्ध प्रार्थना है।
आध्यात्मिक ज्ञान के सागर
-सुनील चौपड़ा
अध्यात्मयोगी, प्रज्ञापुरुष पूज्य गुरुदेव उपाध्याय श्री पुष्कर मुनिजी म. सा. जैन जगत के तेजस्वी नक्षत्र थे। आपका बाह्य व आभ्यन्तर व्यक्तित्व हृदय को लुभाने वाला था। गौर वर्ण, भव्यभाल, उन्नत सलाट, विशाल भुजायें, भरा हुआ आकर्षक मुखमण्डल, चमकते सूर्य के समान चेहरे का तेज जिसके दर्शन कर हृदय आनन्द-विभोर हो उठता था जितना उनका बाह्य व्यक्तित्व था उससे कितने ही गुणा अधिक आन्तरिक व्यक्तित्व था। वे सभी सम्प्रदायों का समान रूप से आदर करते थे। मैत्री एवं संगठन के हिमायती थे। उनमें अपार साहस, चिन्तन की गहराई, दूसरों के प्रति सहज स्नेह था। उनका व्यक्तित्व एवं कृतित्व बहुमुखी था। उन्होंने व्यवहार कुशलता से जन-जन के मानस को जीता था और संयम-साधना के अन्तरंग को विकसित किया था जो भी उस महामूर्ति के समक्ष आता, उनके स्वच्छ हृदय एवं निश्छल व्यवहार से प्रभावित हुए बिना नहीं रहता था।
आपक्षी की ध्यान-साधना बहुत ही उत्कृष्ट कोटि की थी। उनकी मांगलिक को श्रवण करने के लिए हजारों की जनमेदिनी उमड़ पड़ती थी। मंगल पाठ श्रवण कर सभी अपने को भाग्यशाली समझते थे। आपश्री ने बहुत लम्बे-लम्बे विहार करके जन-जन कल्याण हेतु हिन्दुस्तान के सुदूर प्रान्तों में चातुर्मास किये थे। उस महामहिम आत्मा का सदा स्मरण बना रहे हम सब उनके मंगलमय आशीर्वाद से आध्यात्मिक, धार्मिक, साहित्यिक सभी क्षेत्रों में निरन्तर प्रगति करते रहें यही मंगल मनीषा है।
अमर नाम हो गया
-सुरेन्द्र कोठारी (महामंत्री श्री बर्द्धमान पुष्कर जैन युवा मंच उदयपुर)
"है समय नदी की धार जिसमें सब बह जाया करते हैं, है समय बड़ा तूफान प्रबल जिसमें पर्वत झुक जाया करते हैं, अक्सर दुनिया के लोग समय से ठोकर खाया करते हैं, लेकिन कुछ ऐसे होते जो इतिहास बनाया करते हैं।"
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किसी कवि की ये पंक्तियाँ उपाध्यायप्रवर पूज्य गुरुदेव श्री पुष्कर मुनिजी म. सा. के जीवन पर चरितार्थ होती हैं। गुरुदेव ने अपने समय का उपयोग करते हुए, अपने जीवन को ऐतिहासिक बना दिया है। उनका नाम जैन इतिहास या यूँ कहें कि हिन्दुस्तान के इतिहास में अमर हो गया है।
श्री पुष्करमुनिजी
नेमीचन्द जैन
श्री संघ के उपाध्याय थे और समाज के मार्गदर्शक थे पुण्योदय से वह हमारे युग के अनुपम चिन्तक थे।
टू धर्म के थे ज्ञाता और आरोही क्रिया पथ के थे। कर्म गति का कर विवेचन लाखों के प्रबोधक थे। र हे निष्काम यश-अपयश से सत्यमार्ग के पथिक थे। मुक्त थे मोह पाश से पर कर्तव्य के दृढ निश्चयी थे. नि त चर्या पर थे सावधान दुर्बलता के नहीं पोषक थे। जी ए संतोष का जीवन और संतोष के ही प्रेरक थे।
पर काल धर्म तेरा तो यह है अटल नियम । छोड़ जर्जर शरीर और प्रारम्भ कर नया जीवन
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शताब्दी के अद्भुत संत श्रीपुष्कर मुनि
- हरबंस लाल जैन (वरिष्ठ सदस्य, राष्ट्रीय कार्यकारिणी एवं संभागीय अध्यक्ष एस. एस. जैन कान्फ्रेस)
ज्ञान के प्रति तड़फ अत्यन्त ही विद्यानुरागी तथा घोर अध्यावसायी पुष्कर मुनिजी महाराज प्राकृत, संस्कृत, हिन्दी, मराठी, गुजराती, कन्नड़ एवं राजस्थानी भाषा के निष्णात एवं धुरन्धर पंडित थे। उनकी वाणी में ऐसा सम्मोहन, ओज एवं प्रवाह था कि हजारों की संख्या में जैन तथा अजैन सभी धर्म लाभ लिया करते थे। इतना ही नहीं वरन् महाराज श्री की लेखनी में भी अप्रतिम जादू था । उनकी स्याही से लिखे गये अक्षर जैनागमों में ही नहीं परन्तु भारतीय वेदान्तियों के लिये भी महत्वपूर्ण माने जाते हैं। अतः वे चिरस्मरणीय एवं ऐतिहासिक दस्तावेज हैं ये राजस्थानी तथा हिन्दी भाषा के सशक्त कवि थे तथा उनके द्वारा रचित ग्रंथ धर्म, अध्यात्म, साधना, योग, जप एवं तप के ज्योतित स्तम्भ हैं। उपाध्यायश्री के सम्पूर्ण जीवन ज्योति को यदि गहन दृष्टि से देखा जाए तो प्रतीत होगा कि उनका सांगोपांग जीवन ही ज्योतिर्मय था जिसकी ज्योति के प्रकाश से हजारों लाखों तप्त एवं दग्ध हृदयों को शीतलता प्राप्त हुई क्योंकि उसकी अध्यात्म साधना निरन्तर प्रज्वलित नन्दाद्वीप के सदृश थी। साहित्य-साधना के क्षेत्र में उनके
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