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Posato } श्रद्धा का लहराता समन्दर महापुरुषों की श्रृंखला में हैं हमारे आराध्य परम श्रद्धेय उपाध्यायश्री बीच रहते हुए कभी माया करते नहीं देखा। यहि इनके जीवन को पुष्कर मुनिजी महाराज।
एक शब्द में ही कह दूँ जल कमलवत् जीवन जीते हैं तो कोई जैसे फूलों की महत्ता उसकी सुगंध है, दीपक की महत्ता प्रकाश
अतिशयोक्ति नहीं होगी। गुरुदेव कभी किसी से उपालम्भ की भाषा है वैसे ही मनुष्य जीवन की महत्ता उसके सद्गुणों से है। इसी
से नहीं बोलते थे। इन सब गुणों से युक्त गुरुदेव को निकटता से प्रकार आपश्री जी सद्गुणों के भंडार थे। आपने जैन संस्कृति के
देखा पर उनमें बनावटीपन नहीं देखा। गौरव को और विश्व के कण-कण को सुगंधित किया।
स्वाध्याय प्रेमी मैं अपनी श्रद्धा का निष्काम दीप जलाकर भावों के अगणित गुरुदेव एक ऐसे जन सन्त थे जो सदैव स्वाध्याय साधन में रत पुष्पों से अपनी श्रद्धांजलि गुरु चरणों में समर्पित करती हुई मुक्त रहते थे। वे पढ़ने-पढ़ाने में दत्तचित्त हो जाते थे कि आपको पता भी 6000 की भाषा में चंद पक्तियाँ लिखकर विराम लेती हूँ।
नहीं चलता कि कौन आया और कौन गया। अस्वस्थ अवस्था में भी संसार में आते हैं वो दुनियाँ का कल्याण करते हैं
पढ़ने-पढ़ाने का क्रम नहीं टूटा अन्तिम अवस्था तक स्वाध्याय का। और जग को चमक देकर मन में यादें छोड़ जाते हैं।
सहिष्णुता वह एक सितारा था जो चमक देकर चला गया
- सरलता और सहिष्णुता ही आपका कवच था, जो मन से वही उन्हीं की याद में शांता श्रद्धांजलि अर्पित करती है।
वाणी में था और जो वाचा में वही कर्म में था। आपके स्वभाव की सबसे बड़ी विशेषता थी। अन्तर् और बाह्य की एकरूपता गुरुदेव:58
की दृष्टि में कोई छोटा-बड़ा नहीं था। वे ज्ञान पिपासुओं को बिना साधना पथ के अमर साधक
किसी भेद-भाव के ज्ञान प्रदान करते थे तथा अपने स्नेह को
वात्सल्यपूर्ण भाव से सभी जिज्ञासुओं पर समान रूप से उढ़ेलते थे। 6.00 -साध्वी डॉ. दर्शनप्रभा
उनका उद्घोष था ‘समियाए धम्मे' समता में धर्म है। वे दयाशील (महासती श्री चारित्रप्रभा जी म. की सुशिष्या) थे. आपकी भाषण-शैली चमत्कारपूर्ण थी, गुरुदेव की सरल मार्मिक लाखों आते लाखों जाते, दुनियाँ में न निशानी है,
अमृतमयी वाणी और संसार की असारता के उपदेश से प्रभावित जिसने कुछ उपकार किया, उनकी ही अमर कहानी है।
होकर ही मैंने संसार के दावानल से मुख मोड़कर, इनके पावन
चरणों में मन लगाना उचित ही समझा। ताकि आत्म-शक्ति को फूलों की महक अमित है, उसे कोई मिटा नहीं सकता,
अभिव्यक्त कर शान्ति पथ की ओर गमन कर सकें। तुम मरण पाकर भी अमर हो, इस सत्य को कोई झुठला नहीं सकता। गुरुदेव का सान्निध्य मुझे एक वसीयत के रूप में मिला है। मैंE:
यह ऋण संभवतया इस जीवन में तो चुकाने में अक्षम हूँ उनकी मनुष्य के जीवन में सद्गुरु की प्राप्ति होना एक महान्
पावन स्मृति से मेरा हृदय सुवासित था, रह-रहकर आपकी यादें उपलब्धि है। 'गुरु' एक आध्यात्मिक शक्ति है जो मनुष्य को नर से
आज मेरे मन को कचोट रही हैं। मेरा मन उपाध्यायश्री के DS: नारायण और आत्मा को परमात्मा बना देती है। गुरु ऐसे श्रेष्ठ
चरण-कमलों में अपनी श्रद्धा की कलिकाएँ अर्पण करने के लिए DDD कलाकार होते हैं, जो एक अनपढ़ ठोकरें खाते हुए जीवन रूपी
बेचैन हो उठा है। यद्यपि मेरे मन को मालूम है कि अब किसी भी प्रस्तर को अपने सत् प्रयासों द्वारा जनता में पूजनीय और वन्दनीय
तरह से मिलने वाले नहीं हैं, किन्तु इस अधीर मन को समझना and बना देते हैं।
बड़ा कठिन है। मन को केवल श्रद्धा के पुण्य अर्पित करने का 6 जिनके तप का त्याग का आ सकता न अन्न।
आश्वासन मात्र दे सकती हूँ। अनेक गुणों से युक्त आपके महान् मुश्किल से मिलते यहाँ ऐसे सच्चे सन्न।
जीवन का मैं क्या वर्णन करूँ। मैं उस महापुरुष के चरणों में श्रद्धा360 अगर ये सत्य संयम का, हृदय में बीज ना बोते।
सुमन एवं श्रद्धा पुष्प अर्पित करती हूँ। यूँ ही संसार सागर में, न खाते हम कभी गोते।
पुष्कर गुरु की गौरव गाथा, धरती के जन-जन गाएगें। न पावन आत्मा होती, न जीवित मन्त्र ये होते।
और सभी भूल सकेंगे, पर तुम्हें भूला न पाएगें। कभी का देश मिट जाता, जो ऐसे सन्न ना होते।
अब गुरुदेव की सुनहरी शिक्षाओं से हम सदा-सदा के लिए उपाध्यायप्रवर गुरुदेव श्री पुष्कर मुनिजी के विषय में क्या । वंचित हो गए। गुरुदेव अपनी ख्याति के सुमन इस धरती के लिखू और क्या नहीं लिखू। आपके जीवन में दूसरों की बढ़ती हुई । कोने-कोने में बिखेर कर अमर हो गये। यदि गुरुदेव के गुणों में से प्रगति देख ईर्ष्या नहीं देखी। प्रतिकूल प्रसंगों में इन्हें क्रोधित होते । एक भी गुण का अनुकरण किया जाए तो वे आज भी हमारे पास नहीं देखा। आगम-ज्ञान होते हुए भी अभिमान नहीं देखा। सबके } हैं। ऐसे श्रद्धा के केन्द्र महान् गुरुदेव के पावन-चरणों में कोटि-कोटि
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