________________ . श्रीजैनज्ञान-गुणसंग्रह स्थाद्वादमय नय निक्षेपों सहित साधुधर्म और श्रावक धर्म का जो स्वरूप बताया वही 'सुधर्म' है / सम्यक्त्वधारीको को इनतीन तत्वों का श्रद्धापूर्वक आदर और इनसे विपरीत कुदेव कुगुरु और कुधर्म का त्याग करना चाहिये / प्रतिक्षा "मैं देवगुरु साक्षिक मिथ्यात्व का त्याग कर सम्यक्त्व स्वीकार करता हूं / आज से जीवित पर्यन्त जिनदेव, महाव्रतधारी साधु और दयामय जैनधर्म पर ही श्रद्धाविश्वास रक्तूंगा" सम्यक्त्वधारी को निम्न लिखित सम्यक्त्व संबंधी पांच अतिचार, छः अपवाद और चार आगार ध्यान में रखना चाहियेअतिचार- .. . (1) शंका-तीर्थकर भगवान् के वचनों में संशय करना उसका नाम 'शंकातिचार' / ___ (2) कांक्षा-अन्य धर्म वालों में कुछ चमत्कार अथवा आडंबर देख कर उस तर्फ झुकने की इच्छा करना / (3) विचिकित्सा-यह धर्म क्रिया करता हूं परन्तु इसका फल मिलेगा या नहीं इस तरह शंकाशील होना / ___(4) मिथ्यात्विप्रशंसा–अज्ञान कष्ट करने वाले तापस - संन्यासियों की प्रशंसा करना उनके तप की महिमा करना /