________________ 358 . 5 पदसंग्रह स्याद्वाद पूरन जो जाणे, नयगभिंत जस वाचा / गुण पर्याय द्रव्य जो बूझे, सोइ जैन है साचा / परमगुरु० // 3 // क्रियामूढमति जो अज्ञानी, चालत चाल अपूठी / जैन दशा उनमें ही नाही, कहे सो सब ही झूठी ।परम०॥४॥ परपरणति अपनी कर माने, किरियाग। पहिलो / उनकुं जैन कहो क्युं कहिये, सो मूरखमें पहिलो। परमगुरु० // 5 // ज्ञान भावज्ञान सबमांही, शिव साधन सदहिये / नाम भेषसे काम न सीझे, भाव उदासे रहिये / परमगुरु०॥६॥ ज्ञान सकलनयसाधन साधो, क्रिया ज्ञानकी दासी। क्रिया करत धरत है ममता, याही गले में फांसी / .. परमगुरु० // 7 // क्रिया विना ज्ञान नहीं कबहुं, क्रिया ज्ञान विना नाही / क्रिया ज्ञान दोउ मिलत रहत है, ज्यों जलरस जलमांहि / परमगुरु० // 8 // क्रिया-मगनता बाहिर दीसत, ज्ञानशक्ति जस भांजे / सद्गुरु शीख सुने नहीं कबहु, सो जन जनतें लाजे / परमगुरु०॥९॥ तत्वबुद्धि जिनकी परिणति है, सकलसूत्रकी कुंची। जग जसवाद वदे उन ही को, जैन दशा जस उंची / परमगुरु०॥१०॥