________________ 438 श्री गोलनगरीय-पार्श्वनाथप्रतिष्ठा-प्रबन्ध महाराजसाहब को इस विधान के मंत्रादि कण्ठस्थ थे, इस कारण कार्य शीघ्रतासे समाप्त हो गया / तुरन्त ही निर्वाणकल्याणक की विधि करके आपने मंगलगाथापाठ किया और बाद में स्थापनीय-बिम्बों को पालकियों में विराजमान कर मंदिर की तरफ रवाना किया। 31 बिम्ब-प्रवेश और स्थापन बिम्बस्थापन के, ध्वजा दंड कलश चढाने के और तोरण वांदने आदि के चढावे जिन्हों ने बोले थे, उन्हें पहले ही हिदायत कर दी थी कि वे सूर्योदय होते ही तैयार रहें / चढावा बोलने वाले समय पर आ पहुंचे थे। शेष संघ और सामान्य जनसमुदाय इस मंगल कार्य के दर्शन के लिये पहले ही उत्कण्ठित हो रहा था। प्रतिष्ठामण्डप और मंदिरों तक इतनी भीड जमा थी कि तिल रखने की जगह नहीं, तथापि स्वयंसेवको की कुशलता से जुलूस चलने का रास्ता हो जाता था। प्रतिष्ठामंडप से स्थापनीय बिम्बों के लिये महाराज साहब के साथ वरघोडा मंदिरजी पहुंचा / वहां से मुनिमहाराज श्री कल्याणविजयजी श्रीपार्श्वनाथजी के मंदिर में पधारे और मुनिश्रीसौभाग्यविजयजी ऋषभदेवजी के मंदिर में। बिम्बों का सामेला वधावा होने के बाद तोरण बांदा गया और द्वार