________________ श्रीजैनज्ञान-गुणसंग्रह 485 / 1 अणागाढे आसन्ने उच्चारे पासवणे अहियासे / 2 अणागाढे आसन्ने पासवणे अहियासे / 3 अणागाढे मज्झे उच्चारे पासवणे अहियासे / 4 अणागाढे मज्झे पासवणे अहियासे / 5 अणागाढे दूरे उच्चारे पासवणे अहियासे / 6 अणागाढे दूरे पासवणे अहियासे / ऊपर जो 6-6 मण्डलों के 4 पाठ दिये गये हैं उन प्रत्येक में पहला दूसरा तीसरा चौथा और पांचवां छठा ये दो दो वाक्य अनुक्रम से निकट, मध्यम और दूर के स्थण्डिलों की प्रतिलखना के प्रतिपादक हैं इस वास्ते प्रत्येक पटक में इन दो दो वाक्यों को बोलते समय नजदीक मध्यम और दूर के स्थंडिल की प्रतिलेखना की भावना से उस तरफ चरवला फिराना चाहिये। आज कल की प्रवृत्ति में पहले छः मण्डल करते समय चरवला पथारी के स्थान की तरफ फिराते हैं, दूसरे छः मण्डलों में पोषधशाला के भीतर द्वार के पास, तीसरे छः में द्वार के बाहर और चौथे छः मण्डल करते समय पोषधशाला के बाहर सौ हाथ के अन्दर चरवला फिरा कर प्रतिलेखना की भावना * की जाती है।