________________ श्रीजैनज्ञान-गुणसंग्रह 8 रात्रिपोषध पारने की विधि रात्रिपोषध और दिवसपोषध के पारने की विधि में कुछ भी अन्तर नहीं है / भेदमात्र इतना ही है कि दिवसपोषध पारते समय इरियावही करके 'चउक्कसाय' से ले 'जयवीयराय" पर्यन्त चैत्यवन्दन कर बाद में खमासमणपूर्वक पोषध पारने की मुहपत्ति पडिलेहते हैं / इसके आगे दोनों प्रकार के पोषध पारने की विधि “पोषध पारने की. विधि" नामक 19 वें प्रकरण में लिखे मुजब है। ' प्रकीर्णक 1 पोषध व्रत के पांच अतिचार(१) शय्या-संथारे की भूमि की पडिलेहणा न करे,अथवा अविधि से पडिलेहण करे। (2) शय्या-संथारे की भूमि की प्रमार्जना न करे, अथवा अविधि से प्रमाजन करे। (3) स्थण्डिलभूमि ( लघुनीति-बडी नीति जाने की जगह) की प्रतिलेखना न करे, अथवा अविधि से प्रतिलेखना करे। (4) स्थंडिलभूमि की प्रमार्जना न करे, अथवा अविधि से - करे। .