________________ श्रीजैनज्ञान-गुणसंग्रह 489 सव्वे जीवा कम्मवस, चउदहराज भमन्त / ... ते मे सब खमाविआ, मुज्झवि तेह खमन्त // 16 // जं जं मणेण बद्धं, जं जं वायाइ भासि पावं / जं जं काएण कयं, मिच्छामि दुक्कडं तस्स // 17 // " समाप्ति में अविधि आशातना का मिच्छामि दुक्कडं - देना / मुहपत्ति कन्दोरे में भरा, कटासन तथा चरवला पथारी के पास एक तरफ रख पहिरने का वस्त्र बदल कर सो जाय। सोने के बाद बातचीत या किसी भी प्रकार की गडबड न करे / अगर नींद न आती हो तो मन में नवकारमन्त्र का ध्यान करे। शरीर-बाधा दूर करने के लिये अथवा अन्य किसी भी कारण से रात को उठना पडे तो दण्डासन से जमीन प्रमार्जन करते हुए चलना चाहिये। ... 5 निद्रात्याग और प्राभातिक प्रतिक्रमण जितना भी हो सके पौषधिक को प्रमाद का सेवन कम करना चाहिये / कम से कम दो मुहूर्त (कच्ची 4 घडी) पिछली रात रहते उठ जाना चाहिये / उठते ही नवकार स्मरण कर धार्मिक भावका पोषक शुभचिन्तन तथा ध्यान करके रात्रिकप्रतिक्रमण करे।