Book Title: Jain Gyan Gun Sangraha
Author(s): Saubhagyavijay
Publisher: Kavishastra Sangraha Samiti

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Page 521
________________ 102 पोषधविधि भोगेणं सहसागारेणं महत्तरागारेणं सबसमाहिवत्तियागारेणं वोसिरई" ___ यह आलावा बोल कर देशावकाशिक उच्चरते हैं और बादमें तत्काल अथवा समयान्तरमें सामायिक करते हैं / कुल 10 सामायिक करके देशावकाशिक पूरा करते हैं / मारवाड में कहीं कहीं तो ऊपर मुजब ही देशावकाशिक किया जाता है, परन्तु कई स्थानों में 'पोषध' की ही तरह यह व्रत भी इरियावहीप्रतिक्रमणपूर्वक मुहपत्तिपडिलेहणा कर के खमा० इच्छा० 'देसावगासिक संदिसाउं', खमा० इच्छा० 'देसावगासिक ठाउं ' 'इच्छं' कह नवकार गिन के नीचेका आलावा बोल कर उच्चरते हैं 'अहं नं भंते तुम्हाणं समीवे देसावगासिय उवभोगं परिभोगं पञ्चक्खामि, दुविहं तिविहेणं-मणेणं वायाए कारणं न करेमि न कारवेमि, तं देसावगासियं चउब्धिहं पनत्तंदव्वओ, खित्तओ, कालओ, भावओ। दव्वओ णं देसावगासियं सम्बदव्याई अहिगिच, खित्तओ णं जाव पोसहसालाए वा, कालओ णं जाव नियमं वा दिवसं, भावओ णं जाव एस परिणामो न परिवडइ, तस्स भंते पडिक्कमामि निंदामि गरिहामि अप्पाणं वोसिरामि // " 1 उच्चरनेवाला 'वोसिरामि' बोले, जो स्वमुखसे उच्च. रता हो तो केवल 'वोसिरामि' ही बोले।

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