Book Title: Jain Gyan Gun Sangraha
Author(s): Saubhagyavijay
Publisher: Kavishastra Sangraha Samiti

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Page 522
________________ 503 श्रीजैनज्ञान-गुणसंग्रह इस के बाद सामायिकविधिसे सामायिक उच्चरते हैं और शाम को जब देशावकाशिक पारते हैं उसी समय सामायिक भी पारते हैं। देशावकाशिक पारते समय इरियावही, मुहपत्तिपडिलेहणा और आदेश लेना आदि विधि पोषध की तरह की जाती है और चरवले पर हाथ स्थापन कर नवकार गिन के 'सागरचंदो' की जगह नीचे की गाथा बोली जाती है "जं जं मणेण बद्धं, जं जं वायाए भासिय पावं / जं जं काएण कयं, मिच्छामि दुक्कडं तस्स // " इस के बाद सामायिक पारते हैं / इति / ज

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