________________ 'पोषधविधि'का परिशिष्ट देशावकाशिक व्रत लेने और पारनेकी विधि श्रावक के बारह व्रतोंमें 5 अणुव्रत और 3 गुणव्रत बार बार लिये नहीं जाते, परन्तु 4 शिक्षाव्रत अभ्यासरूप होने से बार बार लिये और पारे जाते हैं। सामायिक और पोषधवत के लेने तथा पारने की विधि 'पोषधविधि' में लिखी जा चुकी है, और 'अतिथिसंविभागवत' किस प्रकार किया जाय इसकी रीति भी उसके वर्णनमें बता दी गई है। अब रहा 'देशावकाशिकवत' सो इस के लेने तथा पारनेकी विधि यहां पर लिखी जाती है। देशावकाशिकवत लेने की विधि में देशभेदसे कुछ अंतर है / गुजरात में यह व्रत लेने के पहले द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव से सांसारिक प्रवत्तियों का मनमें नियम करने के बाद गुरुमुखसे अथवा स्वमुखसे "देसावगासिय उवभोगं परिभोगं पच्चक्खाई अन्नत्था 1. गुरु या अन्य उच्चराने वाले पच्चक्खाइ' बोले, और उच्चरनेवाला 'पच्चक्खामि बोले, स्वमुखसे उच्चरने वाला केवल 'पच्चक्खामि' ही बोले।